प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) 4 जुलाई को आंध्र प्रदेश के भीमावरम में थे। यहां की एक तस्वीर मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल है। तस्वीर में मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर आंध्र प्रदेश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पासाला कृष्ण मूर्ति की बेटी 90 वर्षीय पासाला कृष्ण भारती के आगे झुककर आशीर्वाद लिया।
अमरावती. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) की यह तस्वीर मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) 4 जुलाई को आंध्र प्रदेश के भीमावरम में थे। तस्वीर में मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर आंध्र प्रदेश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पासाला कृष्ण मूर्ति(Pasala Krishna Murthy) की बेटी 90 वर्षीय पासाला कृष्ण भारती के आगे झुककर आशीर्वाद लिया। मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी की बहन और भतीजी से भी मुलाकात की। बता दें कि मोदी ने भीमावरम में महान स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती समारोह का शुभारंभ किया। यह समारोह सालभर चलेगा। कार्यक्रम में अपनी स्पीच के बाद पीएम मोदी व्हील चेयर पर बैठीं पासाला कृष्ण मूर्ति के पास पहुंचे और पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
जानिए कौन हैं ये महान स्वतंत्रता सेनानी पासाल कृष्णमूर्ति
पासाला कृष्णमूर्ति (1900-78) आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के ताडेपल्लीगुडेम तालुका के पश्चिम विपरु गांव से ताल्लुक रखते थे। इनका जन्म 26 जनवरी 1900 को हुआ था। इनके पिता का नाम अदिय्या और मां का नाम सीताम्मा था। पासाल की शादी अंजलक्ष्मी पासाला से हुई थी।
मार्च 1921 में जब महात्मा गांधी विजयवाड़ा गए, तब कृष्णमूर्ति और अंजलक्ष्मी कांग्रेस में शामिल हो गए। 1929 को जब गांधीजी 1929 में चागल्लु में आनंद निकेतन आश्रम पहुंचे, तब कृष्णमूर्ति कपल ने, खद्दर फंड(Khaddar fund) में सोना दिया था। तब कृष्ण भारती का जन्म हो चुका था। पासाल कपल ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था। 6 अक्टूबर 1930 को उन्हें राजमुंदरी और वेल्लोर जेलों में एक साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी।
13 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौते के परिणामस्वरूप उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। पासाल ने ताडेपल्लीगुडेम बाजार में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान एक विदेशी कपड़े की दुकान पर धरना दिया और 26 जून 1932 को भीमावरम उप-कलेक्टर कार्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। तब भी उन्हें गिरफ्तार करके 27 जून 1932 को एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। 400 रुपए का जुर्माना भी किया गया। पासाल को खादी के प्रसार और हरिजनों के उत्थान के लिए की गई लड़ाई के लिए भी जाना जाता है। कृष्णमूर्ति और उनकी पत्नी अंजलक्ष्मी ने पश्चिम विपरू में एक अस्पताल का निर्माण किया था।
देश की आजादी के बाद उन्होंने ताडेपल्लीगुडेम तालुका इंडिपेंडेंट फाइटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने भारत सरकार के स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन को नामंजूर कर दिया था। उन्होंने हरिजनों के लिए घरों के लिए पश्चिम विपरू में दो एकड़ जमीन की पेशकश की। उनके योगदान को याद करने के लिए ताडेपल्लीगुडेम नगरपालिका ने पासाला कृष्णमूर्ति मेमोरियल एलीमेंट्री स्कूल की स्थापना की। 20 सितंबर 1978 को वे इस दुनिया से चल बसे।
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