अमेरिका और भारत की दोस्ती से चीन की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस योजनाओं को पहुंचेगा धक्का

भारत और अमेरिका एक साथ मिल कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चीन के वर्ल्ड लीडर बनने की योजनाओं को सफल होने से रोक सकते हैं।

जब मैं ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में एक स्टूडेंट था तो मैंने बहुत कुछ नया सीखा। मैंने सीखा कि हमारा पर्सनल डाटा बहुत मायने रखता है। इसकी कीमत काफी है और यह किसी को बेचा जा सकता है, जिसका किसी भी तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। जिनके पास डाटा है, वे ताकतवर होते हैं। इसलिए अगर हम संवेदनशील जानकारी कॉरपोरेट्स या सरकारों को देते हैं, तो हम उन्हें खुद पर नियंत्रण करने का मौका दे देते हैं। स्विट्जरलैंड में लोग अपनी प्राइवेसी को लेकर काफी सजग रहते हैं और सरकार भी इस मामले में सचेत रहती है। वहां के अनुभवों से मैंने सीखा कि प्राइवेसी सबसे अहम है और इससे ताकत जनता के पास रहती है। क्या यह डेमोक्रेसी के लिए मूलभूत जरूरत नहीं है?

दूसरी तरफ, चीन में फेशियल रिकग्निशन कंपनियों की बाढ़ आ गई है। ऐसा घरेलू बाजार के विस्तार और सर्वसत्तावादी सरकार की वजह से हो रहा है, जिसके लिए लोगों की प्राइवेसी और मानवाधिकार कोई मायने नहीं रखते। हम बीबीसी रिपोर्टर जॉन सुडवर्थ का वह मामला नहीं भूल सकते, जिसमें उन्हें सिर्फ 7 मिनट के भीतर सीसीटीवी नेटवर्क और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लेकर ट्रैक कर लिया गया था। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि ऐसा सिर्फ सरकार ही कर सकती है, प्राइवेट कंपनियां भी अपने वर्कर्स के संवेदनशील डाटा का इस्तेमाल उन्हें मॉनिटर करने के लिए कर सकती हैं। चीन के नागरिक अपने निजी डाटा की सुरक्षा कर पाने में असमर्थ हो चुके हैं। 

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ऐसे कई टेक्नोलॉजी आ चुकी है, जिनका समाज पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा बदलाव लाने वाली टेक्नोलॉजी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है, जो इंसानों की जगह ले सकती है। इसका किसी देश की आर्थिक और सैन्य ताकत पर बहुत गहरा असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से इकोनॉमिक प्रोडक्टिविटी बहुत तेजी से बढ़ेगी और इसमें आर्थिक विकास की दर को दोगुना कर सकने की ताकत है। इसलिए यह हर देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। अब सभी देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक के मामले में आगे बढ़ना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से युद्धों का स्वरूप बदल जाएगा। जानकारियां बहुत तेजी के साथ मिलेंगी और निर्णय लेने की पद्धति में भी बदलाव आएगा। इसके जरिए जटिल ऑपरेशन्स को अंजाम देना भी बहुत आसान हो जाएगा। हाल ही में ड्रोन के इस्तेमाल से यह बात प्रमाणित होती है। ये छोटे स्वचालित ड्रोन बहुत ताकतवर सेनाओं को भी बिखेर देने की क्षमता रखते हैं। इसलिए अब सारी बहस इस बात पर केंद्रित हो गई है कि दुनिया का नेतृत्व कौन करेगा - अमेरका या चीन? यह इस पर निर्भर करता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में सबसे ज्यादा ताकतवर कौन बनता है। इसके साथ ही यह बात भी मायने रखती है कि इसके लिए किस तरह की सरकार ज्यादा बेहतर होगी, जनतांत्रिक या सर्वसत्तावादी। 

यह देखना जरूरी है कि चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल अपने नागरिकों को आतंकित करने के लिए किस तरह कर रहा है। चीन की एक योजना है जिसे सोशल क्रेडिट सिस्टम कहा जाता है। इसका इस्तेमाल नागरिकों को सरकार के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए पुरस्कृत करने और दंड देने के लिए किया जाता है। अब चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल लोगों की निगरानी करने और लोगों की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए बेहद कम खर्च में कर रहा है। चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल गलत जानकारियां फैलाने और दूसरे देशों में डेमोक्रेटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाने के लिए भी कर रहा है। 

चीन की सर्वसत्तावादी सरकार ने इसके लिए ऐसी नीतियां बनाई है कि इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ सके। इसके लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा है और कॉरपोरेट्स की मदद भी की जा रही है। यह आकलन किया गया है कि चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास करने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है। बैदू इंक और अलीबाबा जैसी कंपनियां सरकार के इस कदम का समर्थन कर रही हैं। जबकि दूसरे देशों में कॉरपोरेट्स से सरकारों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसके इस्तेमाल में कोई मदद नहीं मिल रही है। चीन ने बड़े पैमाने पर अपने नागरिकों का निजी डाटा जुटा लिया है। इसका इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में इनोवेशन के लिए आसानी से किया जा सकता है, जबकि यह पूरी तरह से अनैतिक है और अंतरराष्ट्रीय कानून और प्राइवेसी के मानकों के विरुद्ध है।

फिर भी हमारे लिए संभावनाएं बची हुई हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में इनोवेशन के लिए चीन का पागलपन से भरा प्रयास उसकी गहरी असुरक्षा की भावना को दिखाने वाला है। चीन के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्टार्टअप्स में निवेश 2018 में 124.3 बिलियन युआन से घट कर 2019 में 84.1 बिलियन युआन हो गया। डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल सिस्टम वाले देशों को कई तरह के फायदे हैं। इसे कॉरपोरेट्स धीरे-धीरे पर लगातार समझ रहे हैं। भारत इसका एक अच्छा उदाहरण है, जो उन स्टार्टअप्स के लिए बहुत बढ़िया जगह बनता जा रहा है, जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और इससे जुड़े दूसरे कॉम्पलेक्स सिस्टम को विकसित करने के लिए काम करना चाहते हैं। 

आज गूगल, ऑरेकल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी कंपनियां क्लाउड कम्प्यूटिंग और मशीन लर्निंग से जुड़े क्षेत्र में अमेरिकी सरकार के लिए काम करना चाह रही हैं और इसे लेकर उनमें प्रतियोगिता भी चल रही है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि भारत में भी 3 से 5 साल के भीतर ऐसा होगा। भारत की सरकार डिजिटाइजेशन के लिए गंभीर प्रयास कर रही है और इसके लिए कॉरपोरेट्स को इन्शेंटिव व बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स भी दे रही है। देश में भी अच्छी-खासी संख्या में स्टार्टअप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यह इस बात का सबूत है कि भारत भी इस क्षेत्र में पीछे नहीं है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा से इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए और भी ताकत मिली है। अमेरिका के तकनीकी कौशल और भारतीय प्रतिभाओं की क्षमता से हम इस क्षेत्र में चीन को मात दे सकते हैं, जो पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। अमेरिका के साथ साझेदारी में हम ऐसे कदम उठा सकते हैं, जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में चीन को पीछे छोड़ा जा सके। चीन की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंडस्ट्री ने 2012 से लेकर इस साल की शुरुआत तक डील नंबर्स से लेकर वेंचर कैपिटल (उद्यमिता पूंजी) और प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टमेंट में एक नया मोड़ लिया है। इसलिए भारत और अमेरिका को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इनोवेशन के क्षेत्र में साथ मिल कर काम करने की जरूरत है, ताकि चीन के प्रभुत्व को चुनौती दी जा सके। 

कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीइओ हैं और 'डीप डाइव विद एके' नाम के डेली शो के होस्ट भी हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का बेहतरीन कलेक्शन है। उन्होंने दुनिया के करीब 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा की है। वे एक टेक आंत्रप्रेन्योर हैं और पॉलिसी, टेक्नोलॉजी. इकोनॉमी और प्राचीन भारतीय दर्शन में गहरी रुचि रखते हैं। उन्होंने ज्यूरिख से इंजीनियरिंग में एमएस की डिग्री हासिल की है और लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए हैं।    
 

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