इसरो ने शुक्रवार को अपने पुष्पक आरएलवी का दूसरा सफल लैंडिंग टेस्ट किया। पुष्पक को चिनून हेलीकॉप्टर की मदद से 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाया गया था।
बेंगलुरु। भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO (Indian Space Research Organisation) द्वारा बनाए गए पुष्पक ने शुक्रवार को सफलता पूर्वक लैंडिंग की। इसे इंडियन एयर फोर्स के चिनूक हेलीकॉप्टर द्वारा आकाश में ले जाया गया था। एसयूवी के आकार वाले पुष्पक को 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा गया। यह अपने पंखों की मदद से पहले खुद आसमान में घूमता रहा, इसके बाद जमीन पर उतर गया।
पुष्पक इसरो द्वारा तैयार किया गया रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल है। इसे अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। मिशन पूरा करने के बाद यह लौटकर आएगा। इसरो ने शुक्रवार को सफलतापूर्वक पुष्पक का दूसरा लैंडिंग टेस्ट किया।
कर्नाटक के चित्रदुर्ग में टेस्ट किया गया पुष्पक
बेंगलुरु से करीब 200 किमी दूर कर्नाटक के चित्रदुर्ग में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में यह टेस्ट किया गया। इस दौरान पुष्पक आरएलवी ने खुद लैंडिंग करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया। पुष्पक के ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम ने टेस्ट के दौरान सही तरह काम किया। इसरो के स्वदेशी रूप से विकसित नेविगेशन और कंट्रोल सिस्टम की मदद से पुष्पक खुद रनवे तक आया और जमीन पर उतरा।
अंतरिक्ष से लौटते समय वाहन की रफ्तार बहुत अधिक होती है। इसके साथ ही उसे बिना इंसान की मदद के खुद ही लैंडिंग करनी होती है। पुष्पक के टेस्ट से पता चला है कि इसरो ने इसके लिए जरूरी टेक्नोलॉजी विकसित कर ली है। पुष्पक का पहला लैंडिंग टेस्ट भी सफल रहा था।
पुष्पक की सफलता ने दिया नई संभावनाओं को जन्म
पुष्पक की सफलता ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में नई संभावनाओं को जन्म दिया है। अभी अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइट को भेजने के लिए रॉकेट लॉन्च किया जाता है। रॉकेट जमीन से अंतरिक्ष की ओर एक तरफा सफर करता है। हर बार लॉन्च करने के लिए नए रॉकेट की जरूरत होती है। पुष्पक जैसे बार-बार इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन को तैयार कर लिया जाता है तो हर बार अंतरिक्ष में कोई सामान भेजने के लिए नए वाहन की जरूरत नहीं होगी। इससे अंतरिक्ष अभियानों की लागत कम होगी। इसरो की यह सफलता स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
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'पुष्पक' आरएलवी को "स्वदेशी अंतरिक्ष शटल" भी कहा जाता है। इसे अंतरिक्ष में भेजने में अभी कई और साल लग सकते हैं। इसका दूसरा सफल टेस्ट अंतरिक्ष तक सस्ती और टिकाऊ पहुंच के सपने को साकार करने की दिशा में एक आशाजनक कदम है।