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तस्वीरों में देखें भारत के 21वीं सदी के पुष्पक 'विमान' ने कैसे की लैंडिंग, जानें क्यों है यह खास

बेंगलुरु। भारत के 21वीं सदी के पुष्पक 'विमान' ने शुक्रवार को सफलतापूर्वक लैंडिंग की है। पुष्पक पूरी तरह से विमान नहीं है। यह एक रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल है। SUV के आकार वाले इस वाहन को स्वदेशी स्पेस सटल भी कहा जाता है। 

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Vivek Kumar
Published : Mar 22 2024, 02:46 PM IST
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Image Credit : X-ISRO

पुष्पक को इंडियन एयरफोर्स के चिनूक हेलीकॉप्टर से टांगकर 4.5 किलोमीटर ऊंचाई तक ले जाया गया। इसके बाद उसे छोड़ दिया गया। पुष्पक अपने पंखों की मदद से आकाश में मंडराया फिर लैंडिंग के लिए कर्नाटक के चित्रदुर्ग के एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज के रनवे की ओर बढ़ा।

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Image Credit : X-ISRO

पुष्पक को रनवे से चार किलोमीटर दूर हवा में छोड़ा गया था। इसके बाद पुष्पक खुद रनवे की ओर बढ़ा। यह रनवे पर ठीक से उतरा और अपने ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर रुका।

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Image Credit : X-ISRO

पुष्पक की इस सफलता से अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को बड़ी बढ़त मिलेगी। वर्तमान में किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजना हो तो रॉकेट लॉन्च किया जाता है। रॉकेट लौटकर नहीं आते। हर बार लॉन्च करने के लिए नए रॉकेट की जरूरत होती है।

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Image Credit : X-ISRO

रॉकेट का सबसे महंगा हिस्सा उसके इलेक्ट्रॉनिक्स होते हैं। पुष्पक जैसे रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल को लॉन्च किए जाने पर यह अपने मिशन को अंजाम देकर वापस धरती पर आ जाएगा। इससे हर बार लॉन्च करने के लिए नया रॉकेट बनाने की जरूरत नहीं होगी।

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Image Credit : X-ISRO

पुष्पक का इस्तेमाल उपग्रहों में ईंधन भरने में भी हो सकता है। इससे उनकी लाइफ बढ़ जाएगी। यह उपग्रह को उसकी कक्षा से लेकर धरती पर आ सकता है, ताकि सुधार कर फिर से लॉन्च किया जा सके।

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Image Credit : X-ISRO

उपग्रह को भेजने के लिए हर बार नए रॉकेट लॉन्च करने से अंतरिक्ष में मलबा बढ़ रहा है। भारत इस दिशा में काम कर रहा है। पुष्पक की मदद से उपग्रह भेजने या दूसरे मिशन को अंजाम देने से नया मलबा पैदा नहीं होगा।

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Image Credit : X-ISRO

पुष्पक तैयार करने का काम 10 साल पहले शुरू हुआ था। 6.5 मीटर लंबे और 1.75 टन भारी पुष्पक में छोटे थ्रस्टर्स हैं। ये नीचे उतरने के दौरान वाहन को ठीक उसी स्थान पर जाने में मदद करते हैं जहां उसे उतरना होता है। सरकार ने इस परियोजना में 100 करोड़ रुपए से अधिक निवेश किया है।

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Image Credit : X-ISRO

'पुष्पक' आरएलवी को "स्वदेशी अंतरिक्ष शटल" भी कहा जाता है। इसे अंतरिक्ष में भेजने में अभी कई और साल लग सकते हैं। इससे अंतरिक्ष तक सस्ती और टिकाऊ पहुंच का सपना साकार होगा।

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Vivek Kumar
विवेक कुमार। डिजिटल मीडिया में 12 साल का अनुभव। मौजूदा समय में एशियानेट न्यूज हिंदी के साथ बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रहे हैं। नेशनल, वर्ल्ड, ट्रेन्डिंग टॉपिक, एक्सप्लेनर, डिफेंस, पॉलिटिक्स जैसे टॉपिक में इनका इंट्रेस्ट है। इन्होंने एमएससी किया हुआ है। मूलतः ये बिहार के रहने वाले हैं।
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