बढ़ी ममता सरकार की मुसीबत, पोस्ट पोल हिंसा की सीबीआई जांच के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में कैविएट

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग(National Human Rights Commission of India-NHRC) ने जुलाई में एक विस्तृत रिपोर्ट बनाकर हाईकोर्ट को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में जिलेवार हिंसा की शिकायतों की संख्या भी है। आंकड़ों पर अगर गौर करें तो चुनाव बाद कूच बिहार सबसे अधिक हिंसाग्रस्त रहा। जबकि दार्जिलिंग सबसे सुरक्षित साबित हुई। कूच बिहार के बाद बीरभूम भी काफी अधिक प्रभावित हुआ। 

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में पोस्ट पोल हिंसा का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। कोलकाता हाईकोर्ट ने यहां हुए चुनाव बाद हिंसा की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया था। अब इस मामले में एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर कर दिया है।

अधिवक्ता अनिंदय सुंदर दास ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा की सीबीआई जांच के कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के संबंध में कैविएट लगाई है। कैविएट का उद्देश्य है कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कोई आदेश बिना सुनवाई के न पास हो। 

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दरअसल, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में राजनीति हिंसा(political violence) का मामला तूल पकड़ा हुआ है। गुरुवार को कलकत्ता हाईकोर्ट ने कोर्ट की निगरानी में इसकी CBI से जांच कराने के आदेश दिए थे। 

ममता सरकार के लिए मुसीबत बन सकती है जांच

बंगाल हिंसा को लेकर कई जनहित याचिकाएं आई थीं। कलकत्ता हाईकोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने 3 अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को मुख्य कार्यवाहक न्यायाधीश राजेश बिंदल सहित सभी पांच सदस्यों की पीठ ने मामले की जांच CBI से कराने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव बाद हुई हिंसा की जांच CBI करेगी। अस्वाभाविक मृत्यु, हत्या और रेप सहित अन्य बड़े अपराधों के मामले भी CBI देखेगी। कम महत्वपूर्ण मामले की जांच 3 सदस्यीय SIT करेगी। दोनों एजेंसियां अपनी जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट को देगी। इसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश करेंगे।

मानवाधिकार आयोग ने सौंपी थी हाईकोर्ट को रिपोर्ट

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission of India-NHRC) ने जुलाई में एक विस्तृत रिपोर्ट बनाकर हाईकोर्ट को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में जिलेवार हिंसा की शिकायतों की संख्या भी है। आंकड़ों पर अगर गौर करें तो चुनाव बाद कूच बिहार सबसे अधिक हिंसाग्रस्त रहा। जबकि दार्जिलिंग सबसे सुरक्षित साबित हुई। कूच बिहार के बाद बीरभूम भी काफी अधिक प्रभावित हुआ। 

रिपोर्ट के अनुसार कूचबिहार में 322 हिंसा के मामले, बीरभूम में 314, दक्षिण 24 परगना में 203, उत्तर 24 परगना में 198, कोलकाता में 182 और पूर्वी बर्दवान में 113 हिंसा के मामले सामने आए हैं। 

बंगाल में सरकार और प्रशासन से डरा आम आदमी

जांच रिपोर्ट में यह कहा गया है कि टीएमसी के लोगों ने बहुत कहर बरपाया है। पुलिस प्रशासन ने वे गुहार लगाते रहे लेकिन कोई मदद को नहीं आया। आलम यह कि आम आदमी सत्ता पक्ष के गुंडों के साथ-साथ पुलिस-प्रशासन से भी डर रहा है। ऐसा लग रहा कि इनका राज्य प्रशासन पर से भरोसा उठ गया है। यौन अपराधों का शिकार होने के बावजूद, कई लोगों ने और नुकसान के डर से अपना मुंह बंद रखा है। जांच कमेटी के प्रतिनिधियों ने पाया कि जिस तरह से शिकायतें आई, उसके सापेक्ष बहुत कम रिपोर्ट दर्ज किए गए हैं। 

रिपोर्ट दर्ज करने में भी काफी लापरवाही

जांच टीम की रिपोर्ट के अनुसार उन लोगों ने 311 मामलों में स्पॉट विजिट की है। इसमें केवल 188 मामलों में एफआईआर नहीं किया गया था। जबकि 123 मामलों में जो एफआईआर हुए थे उसमें 33 केसों में पुलिस ने मामूली रिपोर्ट लिखी। 

29 मर्डर, 12 रेप, 940 आगजनी

जांच कमेटी ने जो रिपोर्ट सौंपी है उसके अनुसार मनुष्य वध या हत्या के 29 केस पुलिस ने दर्ज किए हैं। जबकि 12 केस महिलाओं से छेड़छाड़ व रेप के हैं। 391 मामलों में 388 केस पुलिस ने गंभीर रूप से घायल किए जाने संबंधित दर्ज किए हैं जबकि 940 लूट-आगजनी-तोड़फोड़ की शिकायतों में 609 एफआईआर दर्ज किए जा सके। धमकी, आपराधिक वारदात को अंजाम देने के लिए डराने संबंधित 562 शिकायतों में महज 130 शिकायतें ही एफआईआर बुक में आ सकी हैं। चुनाव बाद हिंसा की पुलिस के पास कुल 1934 शिकायतें गई जिसमें 1168 केस ही दर्ज किया गया।

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