रूस में होने वाले ब्रिक्स समिट 2024 में पीएम मोदी समेत सदस्य देशों के लीडर शामिल होंगे। ब्रिक्स दुनिया का तीसरा सबसे मजबूत आर्थिक संगठन है। इसके नाम की कहानी दिलचस्प है।
BRICS 2024 : ब्रिक्स का 16वां शिखर सम्मेलन 22-23 अक्टूबर को रूस (Russia) के शहर कजान (Kazan) शहर में होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) इस समिट में शामिल होने रूस जाएंगे। जहां सदस्य देशों के नेताओं के साथ उनकी द्विपक्षीय बातचीत भी होगी। इस समिट में पीएम मोदी की मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) से भी हो सकती है। ब्रिक्स समिट (BRICS Summit 2024) ऐसे समय हो रही है जब दुनिया में हलचल और कई देशों के बीच जंग चल रही है। ऐसे में इस समिट पर पूरी दुनिया की नजर है। आइए जानते हैं आखिर ब्रिक्स का क्या मतलब है, इसका नाम कैसे पड़ा और यह संगठन कितना मजबूत है?
BRICS क्या है, कब और कैसे बना
रूसी लीडर और पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव के नेतृत्व में 1990 के दशक में रूस, भारत और चीन (RIC) मिलकर एक संगठन बनाते हैं। इस संगठन का मकसद दुनिया की विदेश नीति (Foreign Policy) में अमेरिकी दबदबे को कम करना और अपने संबंधों को मजबूत बनाना था। 2001 में इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स ने इन तीनों देशों समेत ब्राजील को दुनिया की सबसे तेज बढ़ती इकोनॉमी बताया था। इसके बाद 2009 में ब्राजील को मिलाकर RIC का नाम BRIC (ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन) हो गया। 2010 में अफ्रीका महाद्वीप को रिप्रेजेंट करने वाले देश साउथ अफ्रीका को संगठन का हिस्सा बनाया गया। तब इसका नया रूप तैयार हुआ, जिसका नाम BRICS (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका) रखा गया।
BRICS का नाम कैसे पड़ा
2000 दशक की बात है। ब्राजील, रूस, भारत और चीन दुनिया के चार ऐसे देश थे, जो तेजी से आर्थिक विकास कर रहे थे। तब इनकी आर्थिक मजबूती देखते हुए ब्रिक (BRIC) मतलब ईंट कहा गया। साल 2001 में ब्रिटिश इकोनॉमिस्ट और गोल्डमैन सैक्स में शामिल Jim O'Neill ने यह नाम रखा, जो बाद में साउथ अफ्रीका के आने के बाद BRICS हो गया। इस संगठन का मतबल ईंट जैसी मजबूत इकोनॉमी है।
BRICS कितना ताकतवर है
ब्रिक्स आज EU को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा ताकतवर आर्थिक संगठन है। 2008-2009 में जब पश्चिमी देशों में आर्थिक मंदी आई थी, तब भी ब्रिक्स के देश तेजी से आगे बढ़ रहे थे। इस संगठन की नींव ही राइजिंग इकोनॉमी पर टिकी है। मतलब साफ है कि इन देशों में पश्चिमी देशों को टक्कर देने और तेजी से आगे बढ़ने की ताकत है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है, क्योंकि पहले पश्चिमी देश दुनिया की 60-80% इकोनॉमी कंट्रोल करते थे, जो अब कम हो गया है और ब्रिक्स के देश उनकी जगह ले रहे हैं।
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