क्या है परमाणु पनडुब्बी, कैसे करता है काम, क्या भारत के पास है यह ताकत?

Published : Sep 05, 2025, 12:43 PM IST
Ohio class nuclear powered ballistic missile submarine

सार

न्यूक्लियर सबमरीन को न्यूक्लियर रिएक्टर से ऊर्जा मिलती है। इसे लंबे वक्त तक पानी के नीचे रखा जा सकता है। इसकी रफ्तार अधिक होती है। आकार में बड़े होते हैं। भारत के पास ऐसे दो सबमरीन हैं। ये परमाणु हमला करने में सक्षम हैं।

Nuclear Submarine: परमाणु पनडुब्बी वो सबमरीन है जिसे न्यूक्लियर रिएक्टर से ताकत मिलती है। परमाणु ऊर्जा से चलने के चलते इसकी रफ्तार अधिक होती है। इसे बेहद लंबे मिशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कई सप्ताह तक पानी के नीचे छिपाकर रखा जा सकता है। परमाणु पनडुब्बी में समृद्ध यूरेनियम को इंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती। इसके चलते ऐसी पनडुब्बी पानी के नीचे रहते हुए बेहद लंबे वक्त तक काम करती है।

पारंपरिक पनडुब्बी से किस प्रकार अलग है परमाणु पनडुब्बी?

पारंपरिक पनडुब्बी और परमाणु पनडुब्बी में मुख्य अंतर उसके प्रोपल्शन सिस्टम का है। परमाणु पनडुब्बी में इंजन की जगह न्यूक्लियर रिएक्टर होता है। इसे ऊर्जा पैदा करने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती। परमाणु पनडुब्बी सतह पर हो या नीचे, काम करती रहती है। एक बार रिएक्टर शुरू हो गया तो लगातार चलता रहता है।

दूसरी ओर पारंपरिक पनडुब्बी में डीजल इलेक्ट्रिक सिस्टम होता है। पनडुब्बी सतह पर हो तब डीजल इंजन चलता है। इससे सबमरीन की बैटरी चार्ज होती है। गोता लगाने पर पनडुब्बी को अपनी बैटरी से ऊर्जा मिलती है। बैटरी के डिस्चार्ज होने पर पनडुब्बी को सतह पर या उसके पास आना होता है। इसलिए इसे लंबे समय तक पानी के नीचे नहीं रखा जा सकता। दूसरी ओर परमाणु पनडुब्बी को जब तक उसमें मौजूद लोगों की जरूरत न हो पानी के नीचे रखा जा सकता है।

परमाणु पनडुब्बी को किससे ताकत मिलती है?

परमाणु पनडुब्बी को अपने न्यूक्लियर रिएक्टर से ताकत मिलती है। न्यूक्लियर रिएक्टर में परमाणु विखंडन होता है, जिससे भारी मात्रा में गर्मी पैदा होती है। इससे भाप टरबाइन को शक्ति मिलती है जो प्रोपेलर को चलाता है। बहुत अधिक ऊर्जा पैदा होने के चलते ये पनडुब्बी आकार में बड़ी होती हैं। इन्हें ज्यादा हथियारों से लैस किया जा सकता है।

परमाणु पनडुब्बी कितनी देर तक पानी के भीतर रह सकती है?

परमाणु पनडुब्बियां अनिश्चित काल तक पानी के नीचे रह सकती हैं। उनके रिएक्टरों को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती। ऊर्जा के लिए थोड़ी मात्रा में संवर्धित यूरेनियम का इस्तेमाल होता है। इससे वे बिना सतह पर आए तेज रफ्तार से आगे बढ़ती हैं।

दूसरी ओर डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की पानी के अंदर रहने की क्षमता सीमित होती है। ये कम गति पर आमतौर पर एक सप्ताह से 10 दिन तक पानी के नीचे चलती हैं। कुछ आधुनिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों में फ्यूल सेल्स का इस्तेमाल करने वाली AIP (Air Independent Propulsion)प्रणालियां होती हैं। इससे वे एक महीने तक पानी के भीतर काम कर सकती हैं। एआईपी के बिना, उन्हें अपनी बैटरियों को रिचार्ज करने के लिए सतह पर आना पड़ता है या स्नोर्कल का उपयोग करना पड़ता है। इससे उनके पता लगने का जोखिम बढ़ जाता है।

यह भी पढ़ें- China Military Parades: हाइपरसोनिक मिसाइल से लेकर समुद्री ड्रोन तक, जानें ड्रैगन ने दिखाए कौन से खास हथियार

क्या भारत के पास है परमाणु पनडुब्बी?

इस समय इंडियन नेवी के पास दो परमाणु पनडुब्बी है। एक का नाम आईएनएस अरिहंत और दूसरे का नाम आईएनएस अरिघात है। ये 6,000 टन के सबमरीन हैं। इन पनडुब्बियों को परमाणु हमला करने में सक्षम K-15 मिसाइलों से लैस किया गया है। इस मिसाइल का रेंज 700 km है। 7000 टन के दो परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण चल रहा है।

PREV
Read more Articles on

Recommended Stories

इंडिगो क्राइसिस के बीच बड़ी राहत: सरकार ने तय किए फ्लाइट टिकट रेट्स, जानें नई कीमतें
'बाबरी मस्जिद बनकर रहेगी, कोई एक ईंट नहीं हिला सकता', हुमायूं कबीर ने किया 300 cr. का ऐलान