लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पेश हो गया है। वक्फ बोर्ड के काम को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है। वक्फ संपत्तियों के रेगुलेशन और मैनेजमेंट में आने वाली समस्याओं का समाधान होगा।
Waqf Bill: लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पेश किया गया है। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के काम को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है। इस बिल से वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन होगा। इससे वक्फ संपत्तियों के रेगुलेशन और मैनेजमेंट में आने वाली समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा।
1. भारत में वक्फ मैनेजमेंट के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक निकाय कौन से हैं और उनकी भूमिकाएं क्या हैं?
भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रशासन वर्तमान में वक्फ अधिनियम 1995 द्वारा होता है। इसे केंद्र सरकार द्वारा अधिनियमित और विनियमित किया जाता है। वक्फ प्रबंधन में शामिल प्रमुख प्रशासनिक निकायों में शामिल हैं:
1.वक्फ संपत्तियों को बदल नहीं सकते: "एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ" के सिद्धांत ने विवादों को जन्म दिया है। जैसे कि बेट द्वारका में द्वीपों पर दावे। इन्हें अदालतों ने उलझन भरा माना है।
2. कानूनी विवाद और कुप्रबंधन: वक्फ अधिनियम 1995 और इसका 2013 का संशोधन प्रभावकारी नहीं रहा है। कुछ समस्याओं में शामिल हैं:
• वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा
• कुप्रबंधन और स्वामित्व विवाद
• संपत्ति पंजीकरण और सर्वेक्षण में देरी
• बड़े पैमाने पर मुकदमे और मंत्रालय को शिकायतें
3. कोई न्यायिक निगरानी नहीं: वक्फ न्यायाधिकरणों द्वारा लिए गए फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। इससे वक्फ प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही कम हो जाती है।
4. वक्फ संपत्तियों का अधूरा सर्वेक्षण: सर्वेक्षण आयुक्त का काम खराब रहा है, जिससे देरी हुई है। गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अभी तक सर्वेक्षण शुरू नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश में 2014 में आदेशित सर्वेक्षण अभी भी लंबित है। विशेषज्ञता की कमी और राजस्व विभाग के साथ खराब समन्वय ने पंजीकरण प्रक्रिया को धीमा कर दिया है।
5. वक्फ कानूनों का दुरुपयोग: कुछ राज्य वक्फ बोर्डों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। इस वजह से सामुदायिक तनाव पैदा हुआ है। निजी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 40 का दुरुपयोग किया गया है। इससे कानूनी लड़ाई और अशांति पैदा हुई है।
6. वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता: वक्फ अधिनियम केवल एक धर्म पर लागू होता है, जबकि अन्य के लिए कोई समान कानून मौजूद नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें सवाल उठाया गया है कि क्या वक्फ अधिनियम संवैधानिक है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने विभिन्न हितधारकों से परामर्श किया, जिसमें सच्चर समिति की रिपोर्ट, जन प्रतिनिधियों, मीडिया और आम जनता द्वारा कुप्रबंधन, वक्फ अधिनियम की शक्तियों के दुरुपयोग और वक्फ संस्थाओं द्वारा वक्फ संपत्तियों के कम उपयोग के बारे में उठाई गई चिंताएं शामिल हैं। मंत्रालय ने राज्य वक्फ बोर्डों से भी परामर्श किया। मंत्रालय ने वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों की समीक्षा की है। हितधारकों के साथ बातचीत की गई है।
6. वक्फ विधेयक 1995 और वक्फ संशोधन विधेयक 2024 के बीच मुख्य अंतर क्या हैं?
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 वक्फ अधिनियम 1995 में कई बदलाव पेश करता है, जिसका उद्देश्य वक्फ प्रबंधन में बेहतर प्रशासन, पारदर्शिता और समावेशिता लाना है। नीचे मुख्य अंतर दिए गए हैं:
कैटेगरी | वक्फ अधिनियम, 1995 | वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 |
अधिनियम का नाम | वक्फ अधिनियम 1995 | इसका नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 कर दिया गया है। |
वक्फ का गठन | घोषणा, उपयोगकर्ता या बंदोबस्ती (वक्फ-अलल-औलाद) द्वारा अनुमति दी गई। | उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को हटा दिया गया है। केवल घोषणा या बंदोबस्ती की अनुमति है। दानकर्ता को 5+ वर्षों से मुस्लिम होना चाहिए। महिला उत्तराधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता। |
वक्फ के रूप में सरकारी संपत्ति | कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं | वक्फ के रूप में पहचानी गई सरकारी संपत्तियां वक्फ नहीं रह जाती हैं। विवादों का समाधान कलेक्टर द्वारा किया जाता है, जो राज्य को रिपोर्ट करता है |
वक्फ निर्धारण की शक्ति | वक्फ बोर्ड के पास अधिकार था | प्रावधान हटा दिया गया |
वक्फ का सर्वे | सर्वेक्षण आयुक्तों और अपर आयुक्त द्वारा संचालित | कलेक्टरों को संबंधित राज्यों के राजस्व कानूनों के अनुसार सर्वेक्षण करने का अधिकार दिया गया है |
केंद्रीय वक्फ परिषद | सभी सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए, जिसमें दो महिलाएं शामिल हैं | इसमें दो गैर-मुस्लिम शामिल हैं; सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना ज़रूरी नहीं है। निम्नलिखित सदस्यों का मुस्लिम होना ज़रूरी है: मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, इस्लामी कानून के विद्वान, वक्फ बोर्डों के अध्यक्ष, मुस्लिम सदस्यों में से दो सदस्य महिलाएं होनी चाहिए |
राज्य वक्फ बोर्ड | दो निर्वाचित मुस्लिम सांसद/विधायक/बार काउंसिल सदस्य; कम से कम दो महिलाएं | राज्य सरकार दो गैर-मुस्लिमों, शिया, सुन्नी, पिछड़े वर्ग के मुसलमानों, बोहरा और आगाखानी समुदाय से एक-एक सदस्य को मनोनीत करती है। कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं का होना ज़रूरी है |
न्यायाधिकरण की संरचना | न्यायाधीश के नेतृत्व में, जिसमें अपर जिला मजिस्ट्रेट और मुस्लिम कानून विशेषज्ञ शामिल हैं | मुस्लिम कानून विशेषज्ञ को हटाया गया; इसमें जिला न्यायालय के न्यायाधीश (अध्यक्ष) और एक संयुक्त सचिव (राज्य सरकार) शामिल हैं |
न्यायाधिकरण के आदेशों पर अपील | केवल विशेष परिस्थितियों में उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप | उच्च न्यायालय में 90 दिनों के भीतर अपील की अनुमति |
केंद्र सरकार की शक्तियां | राज्य सरकारें कभी भी वक्फ खातों का ऑडिट कर सकती हैं | केंद्र सरकार को वक्फ पंजीकरण, खातों और लेखा परीक्षा (सीएजी/नामित अधिकारी) पर नियम बनाने का अधिकार दिया गया है |
संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड | शिया और सुन्नी के लिए अलग-अलग बोर्ड (यदि शिया वक्फ 15 प्रतिशत से अधिक है) | बोहरा और अगाखानी वक्फ बोर्ड को भी अनुमति दी गई है |
वक्फ से ट्रस्टों को अलग करना: किसी भी कानून के तहत मुसलमानों द्वारा बनाए गए ट्रस्टों को अब वक्फ नहीं माना जाएगा, जिससे ट्रस्टों पर पूर्ण नियंत्रण तय होगा।
टेक्नोलॉजी और केंद्रीय पोर्टल: एक केंद्रीकृत पोर्टल वक्फ संपत्ति प्रबंधन को स्वचालित करेगा, जिसमें पंजीकरण, ऑडिट, योगदान और मुकदमेबाजी शामिल है। इससे दक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
वक्फ समर्पण के लिए पात्रता: केवल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम (कम से कम पांच साल से) ही अपनी संपत्ति वक्फ को समर्पित कर सकते हैं। यह 2013 से पहले के प्रावधान को बहाल करता है।
'यूजर द्वारा वक्फ' संपत्तियों का संरक्षण: पहले से रजिस्टर्ड संपत्तियां वक्फ ही रहती हैं, जब तक कि विवादित न हों या सरकारी भूमि के रूप में पहचानी न जाएं।
पारिवारिक वक्फ में महिलाओं के अधिकार: महिलाओं को वक्फ समर्पण से पहले अपनी सही विरासत मिलनी चाहिए, जिसमें विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों के लिए विशेष प्रावधान हैं।
पारदर्शी वक्फ प्रबंधन: जवाबदेही बढ़ाने के लिए मुतवल्लियों को छह महीने के भीतर केंद्रीय पोर्टल पर संपत्ति का विवरण दर्ज करना होगा।
सरकारी भूमि और वक्फ विवाद: कलेक्टर के पद से ऊपर का एक अधिकारी वक्फ के रूप में दावा की गई सरकारी संपत्तियों की जांच करेगा, जिससे अनुचित दावों को रोका जा सकेगा।
वक्फ न्यायाधिकरणों को मजबूत करना
गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व: समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्डों में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जाएगा।
कम वार्षिक योगदान: वक्फ बोर्डों में वक्फ संस्थानों का अनिवार्य योगदान 7 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे परोपकारी कार्यों के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा।
परिसीमा अधिनियम का उपयोग: परिसीमा अधिनियम, 1963 अब वक्फ संपत्ति के दावों पर लागू होगा, जिससे लंबें समय तक चलने मुकदमेबाजी कम होगी।
वार्षिक लेखा परीक्षा सुधार: सालाना 1 लाख रुपए से अधिक कमाने वाली वक्फ संस्थाओं को राज्य सरकार द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षकों द्वारा लेखा परीक्षा करानी होगी।
मनमाने ढंग से संपत्ति के दावों को समाप्त करना: यह विधेयक धारा 40 को हटाता है, जिससे वक्फ बोर्ड मनमाने ढंग से संपत्तियों को वक्फ घोषित करने से बाज आएंगे तथा पूरे गांव को वक्फ घोषित करने जैसे दुरुपयोग से बचा जाएगा।
8. गैर-मुस्लिम संपत्तियों को वक्फ घोषित किए जाने के कुछ उदाहरण क्या हैं?
सितंबर 2024 तक, 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के वक्फ बोर्डों के आंकड़ों से पता चलता है कि 5,973 सरकारी संपत्तियों को वक्फ घोषित किया गया है। कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:
• सितंबर 2024 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, 108 संपत्तियां भूमि और विकास कार्यालय के नियंत्रण में हैं, 130 संपत्तियां दिल्ली विकास प्राधिकरण के नियंत्रण में हैं और सार्वजनिक डोमेन में 123 संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है और मुकदमेबाजी में लाया गया है।
• कर्नाटक (1975 और 2020): 40 वक्फ संपत्तियों को अधिसूचित किया गया, जिनमें कृषि भूमि, सार्वजनिक स्थान, सरकारी भूमि, कब्रिस्तान, झीलें और मंदिर शामिल हैं।
• पंजाब वक्फ बोर्ड ने पटियाला में शिक्षा विभाग की भूमि पर दावा किया है।
वक्फ घोषित की गई अन्य गैर-मुस्लिम संपत्तियों के उदाहरण:
• तमिलनाडु: थिरुचेंथुरई गांव का एक किसान वक्फ बोर्ड के पूरे गांव पर दावे के कारण अपनी जमीन नहीं बेच पाया। इस अप्रत्याशित आवश्यकता ने उसे अपनी बेटी की शादी के लिए ऋण चुकाने के लिए अपनी जमीन बेचने से रोक दिया।
• गोविंदपुर गांव, बिहार: अगस्त 2024 में, बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड के पूरे एक गांव पर दावे ने सात परिवारों को प्रभावित किया, जिसके कारण पटना उच्च न्यायालय में मामला चला। मामला विचाराधीन है।
• केरल: सितंबर 2024 में, एर्नाकुलम जिले के लगभग 600 ईसाई परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति में अपील की है।
• कर्नाटक: वक्फ बोर्ड द्वारा विजयपुरा में 15,000 एकड़ जमीन को वक्फ भूमि के रूप में नामित किए जाने के बाद किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया। बल्लारी, चित्रदुर्ग, यादगीर और धारवाड़ में भी विवाद हुए। हालांकि, सरकार ने आश्वासन दिया कि कोई बेदखली नहीं होगी।
• उत्तर प्रदेश: राज्य वक्फ बोर्ड द्वारा कथित भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के खिलाफ शिकायतें की गई हैं।
वक्फ धार्मिक, धर्मार्थ और सामाजिक कल्याण की जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खास तौर पर वंचितों के लिए। हालांकि, कुप्रबंधन, अतिक्रमण और पारदर्शिता की कमी के कारण इसका प्रभाव अक्सर कम हो जाता है। गरीबों के लिए वक्फ के कुछ प्रमुख लाभ:
पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए डिजिटलीकरण
• एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल वक्फ संपत्तियों को ट्रैक करेगा, जिससे बेहतर पहचान, निगरानी और प्रबंधन सुनिश्चित होगा।
• ऑडिटिंग और अकाउंटिंग उपायों से वित्तीय कुप्रबंधन को रोका जा सकेगा और यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि फंड का इस्तेमाल केवल कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए किया जाए।
कल्याण और विकास के लिए राजस्व में वृद्धि
• वक्फ भूमि के दुरुपयोग और अवैध कब्जे को रोकने से वक्फ बोर्डों के राजस्व में वृद्धि होगी, जिससे उन्हें कल्याणकारी कार्यक्रमों का विस्तार करने में मदद मिलेगी।
• स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास और आजीविका सहायता के लिए धन आवंटित किया जाएगा, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सीधे लाभ होगा।
• नियमित लेखा परीक्षा और निरीक्षण से वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा मिलेगा और वक्फ प्रबंधन में जनता का विश्वास मजबूत होगा।
10. वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने से वक्फ प्रबंधन में क्या योगदान होता है और निर्णय लेने में उनकी भूमिका और प्रभाव की सीमा क्या है?
• गैर-मुस्लिम हितधारक: दाता, वादी, पट्टेदार और किरायेदार वक्फ प्रबंधन में शामिल होते हैं, इसलिए निष्पक्षता के लिए वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद (सीडब्ल्यूसी) में उनका प्रतिनिधित्व आवश्यक है।
• धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों का विनियमन: धारा 96 केंद्र सरकार को वक्फ संस्थानों के शासन, सामाजिक, आर्थिक और कल्याणकारी पहलुओं को विनियमित करने का अधिकार देती है, जिसकी पुनः पुष्टि न्यायालय के फैसलों से होती है।
• केंद्रीय वक्फ परिषद की निगरानी भूमिका: सीडब्ल्यूसी राज्य वक्फ बोर्डों की निगरानी करता है, वक्फ संपत्तियों पर सीधे नियंत्रण के बिना अनुपालन सुनिश्चित करता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि वक्फ प्रबंधन धार्मिक पहलुओं से परे आर्थिक और वित्तीय विनियमन तक फैला हुआ है।
• गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व:
राज्य वक्फ बोर्ड: 11 सदस्यों में से 2 (पदेन सदस्यों को छोड़कर) गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।
केंद्रीय वक्फ परिषद: 22 सदस्यों में से 2 (पदेन सदस्यों को छोड़कर) गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।
• हालांकि निर्णय बहुमत से किए जाएंगे, लेकिन गैर-मुस्लिम सदस्य प्रशासनिक और तकनीकी विशेषज्ञता का योगदान दे सकते हैं, जिससे वक्फ संस्थानों की दक्षता और शासन में सुधार होगा।