खुलासा: 2008 मुंबई हमलों के बाद ऐसा क्या हुआ, जिस वजह से भारतीय सेना की खुफिया एजेंसी को उठाना पड़ा नुकसान

 पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 2008 में मुंबई में हमला किया था। इस हमले के बाद कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं, जिनके चलते भारतीय सेना की खुफिया एजेंसी को काफी नुकसान उठाना पड़ा। सुमोना चक्रवर्ती नाम की यूजर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर इस घटना का खुलासा किया है।   

नई दिल्ली. पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 2008 में मुंबई में हमला किया था। इस हमले से पूरे में दुख और गुस्सा था। भारत भी इस हमले का बदला लेना चाहता था। तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने सभी सुरक्षाबलों और खुफिया एजेंसी के प्रमुखों को बुलाया, ताकि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में हमले की संभावना तलाशी जा सकें। जब इस मामले में उन्हें नकारात्मक जवाब मिला तो उन्होंने इस मामले में एक टीम बनाने को कहा।  

2010 में तत्कालीन मिलिट्री इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जनरल आरके लूम्बा सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह के पास पहुंचे और प्रस्ताव का समर्थन किया। लूंबा ने कर्नल हनी बख्शी को एक यूनिट बनाने का जिम्मा सौंपा। जल्द ही यूनिट बनाई गई। 

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कर्नल बख्शी, कर्नल बिनॉय बी, कर्नल सर्वेश और कुछ अन्य लोगों ने टेक्निकल सपोर्ट डिवीजन (टीएसडी) का गठन किया। टीएसडी काफी सफल रहा। इस टीम ने पाकिस्तान के आतंकवादी के बुनियादी ढांचे को तोड़ दिया। इसके अलावा एलओसी पर आईईडी लगाने समेत कई गुप्त ऑपरेशन भी किए। इससे ISI की रात की नींद छिन गई। वहीं, जम्मू कश्मीर में भी काफी शांति देखने को मिली। 


 उधर, कश्मीर में शांति बहाल हो रही थी। उसी वक्त जर्नल वीके सिंह ने आरोप लगाए कि उन्हें ट्रकों की खरीज के लिए 14 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की। उन्होंने इस मामले में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से शिकायत भी की। लेकिन एंटनी ने इसके लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया। 

यह बात सामने आई की रिटायर डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के चीफ तेजिंदर सिंह ने वीके सिंह को रिश्वत की पेशकश की थी और उन्हें ब्लैकमेल करने की भी कोशिश की गई थी। इसके अलावा टीएसडी से खुफिया जानकारी लेने के लिए एक क्लर्क श्याम दास को भी रिश्वत दी गई। यह वही वक्त था, जब मीडिया में पैसे देकर वीके सिंह की उम्र पर सवाल उठाए गए। 

इसी के साथ मीडिया पूरी तरह से जासूसी और टाटा ट्रक की खरीदी में रिश्वत के मामले में आरोप लगाने पर उतारू हो गया। उधर, रक्षा मंत्रालय की मौन सहमति से तेजिंदर सिंह ने टीएसडी में भी दखल देना शुरू कर दिया। 

वहीं, पत्रकार शेखर गुप्ता ने यह तक लिखा कि भारतीय सेना तख्तापलट  की कोशिश में है। इस खबर ने देश के राजनेताओं को झकझोर कर रख दिया। हालांकि, वे टीएसडी के काम करने के तरीकों से खुश नहीं थे। जो रिसर्च और एनालिसिस विंग से ज्यादा खुफिया तरीके से काम कर रही थी। 

नेताओं को डर था कि टीएसडी बॉर्डर पर आसानी से फोन टैब कर सकती है। इससे उनकी पोल खुल सकती है। इसलिए एक के बाद एक कर आरोपों की बाढ़ सी आ गई...

1- यह आरोप लगाया गया कि टीएसडी पैसों के दम पर जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की सरकार गिराने की कोशिश में है। 

2- यह भी आरोप लगाया गया कि टीएसडी द्वारा अगले आर्मी चीफ के खिला याचिका लगाई गई। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि 2001 में जिस मुठभेड़ के लिए बिक्रम सिंह को सेना मेडल मिला था, वह फर्जी थी। हालांकि, कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया और बिक्रम सिंह के आर्मी चीफ बनने का रास्ता साफ हो गया।   

सेना को बांटने की कोशिश में कौन जुटा था?

3- टाटा ट्रकों में रिश्वत का घोटाला भी सामने आया। हालांकि, यह उस वक्त तक रक्षा मंत्री और वीके सिंह के बीच में था। इंडियन एक्सप्रेस के एक रिपोर्टर के साथ तेजिंदर सिंह के टीएसडी में घुसपैठ की कोशिश के बाद टीएसडी पर भी सवाल उठाए गए। 

यह भी बताया जाता है कि टीएसडी अफसरों को जानबूझ कर निशाना बनाया जाने लगा। यहां तक की उन्हें सजा के तौर पर पोस्टिंग दी गईं। 

यह सब यहीं नहीं रुका। एक जांच भी बैठाई गई, इसमें यह बात सामने आई की, टीएसडी द्वारा पड़ोसी देशों में 8 ऑपरेशनों को अंजाम दिया गया। यह जांच लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया द्वारा की गई। लेकिन यह अजीब था, जिस तरह से इसकी रिपोर्टों को मीडिया में दिया गया। 

इस तरह से रिपोर्टों के लीक होने से पाकिस्तान को भारत पर आरोप लगाने का मौका मिला। 

इसके बाद सेना की खुफिया यूनिट को भंग कर दिया गया। 

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