हट्टी समुदाय को ST में शामिल करने पर हिमाचल प्रदेश के CM जयराम ठाकुर, शिमला ने कहा-"मुझे खुशी है केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। ट्रांस गिरि क्षेत्र में रहने वाले हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया है।
शिमला. हिमाचल प्रदेश के एक महत्वपूर्ण हट्टी समुदाय( Hatti Community) को अनुसूचि जनजाति(Schedule Tribe) में शामिल कर लिया गया है। भौगोलिक स्थितियों से हुए नुकसान(topographical disadvantages) के कारण हिमाचल प्रदेश के कामरौ, संगरा और शिलियाई क्षेत्रों में रहने वाले हट्टी एजुकेशन और रोजगार दोनों में पिछड़े हुए हैं। बता दें कि सिरमौर और शिमला क्षेत्रों में लगभग 9 विधानसभा सीटों पर इनकी संख्या अधिक है। राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ने 2009 में विधानसभा के लिए और 2014 में लोकसभा के चुनावी घोषणापत्र में हट्टियों(हत्तियों) को एसटी का दर्जा देने का उल्लेख किया था। सिरमौर जिले में इनकी संख्या करीब 300,000 बताई जाती है।
पहले ये जानें
इस समुदाय को ST में शामिल करने पर हिमाचल प्रदेश के CM जयराम ठाकुर, शिमला ने कहा-"मुझे खुशी है केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। ट्रांस गिरि क्षेत्र में रहने वाले हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया है। इसके लिए बहुत लंबे समय से संघर्ष चल रहा था। मैं PM मोदी का आभार व्यक्त करता हूं। इस निर्णय से लगभग 1 लाख 60 हज़ार लोग लाभान्वित होंगे। इन लोगों को योजनाओं का लाभ मिलेगा और इस क्षेत्र के विकास की दृष्टी से बजट में प्रावधान दिए जाएंगे।
1967 से करते आ रहे थे मांग
भारत की 2011 की जनगणना( 2011 Census of India) के अनुसार हिमाचल प्रदेश की कुल जनजातीय जनसंख्या(tribal population) 3,92,126 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5.7% है। पिछले दिनों खबर आई थी कि केंद्र सरकार हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के तान-गिरी क्षेत्र के हट्टी समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने पर विचार कर रही है। ये लोग वे 1967 से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे थे। उनका तर्क था कि, जब उत्तराखंड के जौनसार बावर में रहने वाले लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया जा चुका है, जिसकी सीमा सिरमौर जिले से लगती है, तो उन्हें क्यों नहीं? हालांकि अब जाकर उनकी मांग पूरी हो गई है।
जानिए कौन हैं हट्टी समुदाय
हट्टी एक घनिष्ठ समुदाय(close-knit community) है। यानी ये लोग मिलजुलकर सद्भाव के साथ रहने के आदी हैं। ये लोग कस्बों में लगने वाली 'हाट' में अपने प्रॉडक्ट्स जैसे-सब्जियां, फसल, मांस और ऊन आदि बेचकर गुजर-बसर करते आए हैं। ये इनकी परंपरा का हिस्सा है। हट्टी पुरुष पारंपरिक रूप से औपचारिक अवसरों जैसे-शादी-ब्याह, धार्मिक या अन्य सामाजिक कार्यों के दौरान एक विशिष्ट सफेद टोपी पहनते हैं। इनका निवास यमुना की दोनों सहायक नदियों, गिरि और टोंस नदियों की घाटी(basin) में हिमाचल-उत्तराखंड सीमा तक फैला हुआ है। टोंस दोनों राज्यों के बीच की सीमा को बांटती है। 1814 में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र जौनसार-बावर के अलग होने तक हिमाचल प्रदेश के ट्रांस-गिरी क्षेत्र और उत्तराखंड के जौनसार बावर में रहने वाले हट्टी कभी सिरमौर जिले की की शाही संपत्ति का हिस्सा थे।
ये परंपराएं भी जानिए
ट्रांस-गिरी और जौनसार बावर में हट्टी के दो वंश हैं, जो एक-से ट्रेडिशन को मानते हैं। इनमें अंतर-विवाह(nter-marriages) आम है। हालांकि इनमें भी जातिवाद हावी है। जैसे-भट और खश ऊंची जातियां मानी जाती हैं, जबकि बधोई नीची जाति। इसमें अंतर-जाति विवाह पारंपरिक रूप से नहीं होता है। परम्परागत रूप से भारत एवं नेपाल के हिंदुओं में अन्तरजातीय विवाह बहुत कम होते रहे हैं, हालांकि अब अपेक्षाकृत अधिक स्वीकृति मिलने लगी है। हट्टियों को 'खुम्बली' नामक एक पारंपरिक परिषद( traditional council) कंट्रोल करती है। इसे हरियाणा की खाप पंचायत जैसा मान सकते हैं। यानी पंचायती राज सिस्टम लागू होने के बावजूद ये अपने मसले खुंबली में निपटाते हैं।
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