कौन हैं सुनीता नारायण जो पर्यावरण के लिए हैं पूरी तरह समर्पित, भारत सरकार ने 17 साल पहले दिया था पद्मश्री

भारत इस साल अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। बता दें कि आजादी के बाद भारत में प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के लिए कई लोगों ने अहम योगदान दिया। इन्हीं में से एक हैं मशहूर पर्यावरणविद् सुनीता नारायण। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 14, 2022 3:06 PM IST

India@75: प्रदूषण के चलते आज पूरी दुनिया परेशान है। हर किसी को साफ और प्रदूषण रहित हवा और पानी की जरूरत होती है। यह न सिर्फ आम लोगों की जरूरत बल्कि उनका अधिकार भी है। हालांकि, काफी प्रयासों के बाद भी आम जनता को उसके ये बुनियादी हक नहीं मिल पाए हैं। लेकिन देश और दुनिया में कई ऐसी हस्तियां हैं, जो पर्यावरण की दिशा में बदलाव लाने के लिए लगातार काम कर रही हैं। इन्हीं में से एक हैं सुनीता नारायण। 60 साल की सुनीता नारायण ने पर्यावरण को बेहतर बनाने की दिशा में कई बड़े काम किए हैं। 

सुनीता नारायण का जन्म 23 अगस्त, 1961 को दिल्ली में हुआ था। उनकी मां का नाम उषा और पिता का राज नारायण है। सुनीता चार बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी रहे और 1947 में भारत के विभाजन के बाद उन्होंने हस्तकला उत्पादों का निर्यात शुरू किया था। सुनीता मात्र आठ साल की ही थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया। उनके पिता के चले जाने के बाद उनकी मां ने कारोबार संभालने के साथ ही अपनी चार बेटियों की परवरिश की। 

1982 में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट से जुड़ीं : 
सुनीता नारायण ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में 1980 से 1983 के बीच ग्रैजुएशन की डिग्री ली। इसी बीच 1982 में उन्होंने सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट के साथ काम करना शुरू कर दिया। 1985 में उन्होंने भारत की पर्यावरण रिपोर्ट की स्टडी करने के साथ ही फॉरेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े मुद्दों का भी अध्ययन किया। सुनीता नारायण के मुताबिक, 70 के दशक में हिमालयी क्षेत्र में जंगलों को बचाने के लिए महिलाओं ने चिपको आंदोलन शुरू किया था। इसी दौरान उन्होंने तय कर लिया था कि वो पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ही काम करेंगी।

कार्तिकेयन साराभाई के साथ मिलकर किया काम : 
1980 में उनकी मुलाकात प्रख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के बेटे कार्तिकेयन साराभाई से हुई, जो उस समय अहमदाबाद में विक्रम साराभाई इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड रिसर्च के डायरेक्टर थे। उन्होंने सुनीता को संस्थान में रिसर्च असिस्टेंट के रूप में काम करने की पेशकश की। इसके बाद तो सुनीता नारायण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो 1982 से भारत स्थित ‘विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र’ से जुड़ गई थीं। पर्यावरण और जलवायु संरक्षण के क्षेत्र में विश्व की कई प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी उन्हें मानद डिग्री से सम्मानित कर चुकी हैं। 

सीएसई की महानिदेशक हैं सुनीता नारायण : 
सुनीता नारायण हरित विकास और अक्षय विकास पर जोर देती हैं। वो इस समय ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट’(सीएसई) के महानिदेशक पद की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। दिल्ली में 1982 में छुट्टियां बिताने के दौरान सुनीता नारायण की मुलाकात अनिल अग्रवाल से हुई जो एक मशहूर पर्यावरणविद् थे और सीएसई की स्थापना की दिशा में काम कर रहे थे। इसी दौरान सुनीता ने असिस्टेंट स्कॉलर के तौर पर उनके साथ काम करना शुरू किया। इस तरह वो सीएसई से जुड़ गईं और आज उसकी महानिदेशक हैं। बता दें कि 1990 के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने कई ग्लोबल एन्वायर्नमेंट मुद्दों पर स्टडी शुरू कर दी थी। कई पत्र-पत्रिकाओं में पयार्वरण पर उनके लेख लोगों को जागरूक करने का काम करते थे। 

कई पुरस्कारों से नवाजी गईं सुनीता नारायण : 
सुनीता नारायण को पर्यावरण के क्षेत्र में काम के लिए साल 2005 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 2016 में उन्हें टाइम की 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में भी शामिल किया गया था। 2019 में सुनीता नारायण को टाइम पत्रिका के जरिए जलवायु परिवर्तन से लड़ाई के लिए दुनिया की 15 शीर्ष महिलाओं की सूची में शामिल किया गया था। इसके अलावा पर्यावरण में बेहतरीन काम के लिए उन्हें इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। 

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