India@75: ब्रिटिश अफसर ने खोजे थे सांची के स्तूप, जानें क्यों इसी जगह बनाए गए ऐतिहासिक बौद्ध स्तूप

भारत इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो गए हैं। बता दें कि भारत में कई ऐसी धरोहरें हैं, जो कई हजार साल पुरानी हैं। इन्हीं में से एक हैं सांची के स्तूप, जिनका निर्माण मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक सम्राट अशोक ने करवाया था। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 14, 2022 2:18 PM IST / Updated: Aug 14 2022, 09:16 PM IST

India@75: भारत इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो गए हैं। आजादी का अमृत महोत्सव अगले साल यानी 15 अगस्त, 2023 तक चलेगा। बता दें कि भारत में कई ऐसी धरोहरें हैं, जो कई हजार साल पुरानी हैं। इन्हीं में से एक है सांची का स्तूप। इन स्तूपों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 46 किलोमीटर दूर सांची गांव में स्थित बौद्ध स्तूप पूरी दुनिया में मशहूर हैं। सांची को 1989 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल किया गया है। 

मौर्य शासक अशोक ने बनवाए स्तूप : 
इस ऐतिहासिक स्तूप का निर्माण मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पू. में किया गया था। इसे बौद्ध अध्ययन और शिक्षा केंद्र के तौर पर बनवाया गया था। इसके केन्द्र में एक ईंटों से बना एक अर्द्धगोलाकार ढांचा था, जिसे शुंग काल के दौरान पत्थरों से ढंक दिया गया था। सांची के स्तूप देखने के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों पर्यटक आते हैं।  

इसलिए सांची में बना बौद्ध स्तूप : 
सांची के स्तूप का व्यास 36.5 मीटर, जबकि ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर है। इस स्तूप को सांची में इसलिए बनवाया गया क्‍योंकि सम्राट अशोक की पत्नी भले ही विदिशा के व्यापारी की बेटी थीं, लेकिन उनका संबंध सांची से था। इस स्तूप में तोरण द्वारों और कटघरों का निर्माण सातवाहन काल में किया गया था, जिन्हें सुंदर रंगो से रंगा गया था। तोरण द्वार पर बनी खूबसूरत कलाकृतियों को भारत की प्राचीन और सर्वोत्तम कलाकृतियों में से एक माना जाता है।

1818 में जनरल टेलर ने की थी खोज : 
सांची के स्तूप 14वीं शताब्दी तक निर्जन हो गए था, क्‍योंकि इनके संरक्षण के लिए उस समय किसी भी शासक ने इन पर ध्यान नहीं दिया। इन स्तूपों की खोज साल 1818 में एक ब्रिटिश अफसर जनरल टेलर ने की थी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण का काम सौंपा था। साल 1912-1919 तक इस स्तूप की संरचना कर इसे फिर से खड़ा किया गया।

कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग :  सबसे नजदीकी एयरपोर्ट भोपाल। 
रेल मार्ग :  सबसे करीबी रेलवे स्टेशन भोपाल है, जो सभी प्रमुख शहरों के साथ रेल संपर्क से जुड़ा है।
सड़क मार्ग : यह भोपाल-विदिशा रोड़ पर स्थित है और भोपाल से सिर्फ 45 किलोमीटर की दूरी पर है। 

कब जाएं :
अगर आप सांची के स्तूप घूमने का मन बना चुके हैं तो यहां किसी भी सीजन में जा सकते हैं। यह सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। यहां घूमने में करीब 2 घंटे का समय लगता है। यहां फोटोग्राफी करने की परमिशन है। साथ ही गाइड की सुविधा भी मौजूद है। 

ये भी देखें : 

कभी कोणार्क सूर्य मंदिर में लगा था 51 टन का चुंबक, यहां से गुजरते ही भटक जाते थे बड़े-बड़े समुद्री जहाज !

इंडिया गेट की जगह कभी हुआ करता था रेलवे ट्रैक, दिलचस्प हैं इस स्मारक से जुड़े फैक्ट्स

Share this article
click me!