सार
भारत इस साल अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। बता दें कि आजादी के बाद भी भारत में प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के लिए कई आंदोलन हुए। इन्हीं में से एक था चिपको आंदोलन और इसके प्रणेता थे सुंदरलाल बहुगुणा।
India@75: भारत इस साल अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। इस महोत्सव की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से की थी। आजादी का अमृत महोत्सव अगले साल यानी 15 अगस्त, 2023 तक चलेगा। बता दें कि आजादी के बाद भी भारत में प्रकृति और पर्यावरण को बचाने की दिशा में कई आंदोलन हुए। इन्हीं में से एक था चिपको आंदोलन। इस आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा थे, जिनके नेतृत्व में वनों की कटाई को रोकने के लिए कानून बन सका। आइए जानतें हैं सुंदरलाल बहुगुणा के बारे में।
कम उम्र से ही आजादी के आंदोलन में शामिल हुए :
मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा चिपको आंदोलन के प्रणेता रहे। उनका नाम दुनिया के सबसे बड़े प्रकृति और पर्यावरण संरक्षक के तौर पर लिया जाता है। सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के टिहरी जिले में भागीरथी नदी के किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ था। सिर्फ 13 साल की उम्र में ही अमर शहीद श्रीदेव सुमन से मिलने के बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वो बचपन में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे।
टिहरी बांध के विरोध में किया था 84 दिन का अनशन :
सुंदरलाल बहुगुणा ने अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष किया। फिर चाहे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदलन हो या टिहरी बांध के लिए किया गया आंदोलन। नदियों, वनों और प्रकृति से प्रेम करने वाले बहुगुणा उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स लगाने की बात करते थे। यही वजह है कि उन्होंने टिहरी बांध का विरोध किया था। यहां तक कि उन्होंने इस बांध के विरोध में 84 दिन का अनशन भी रखा था। उन्होंने इसके विरोध में अपना सिर तक मुंडवा लिया था। पर्यावरण हितैषी सुंदरलाल बहुगुणा हिमालय में बन रहे होटलों की वजह से नेचर को हो रहे नुकसान का भी खुलकर विरोध करते थे।
शर्तों के साथ की थी शादी :
बहुगुणा का विवाह विमला नौटियाल से हुआ था। उन्होंने सिर्फ इस शर्त पर शादी की थी कि वे शादी के बाद भी ग्रामीणों के बीच रहेंगे और गांव में आश्रम स्थापित करेंगे। उनकी पत्नी भी प्रकृति प्रेमी थीं। पत्नी विमला के सहयोग से उन्होंने सिलयारा में पर्वतीय नवजीवन मंडल की स्थापना की। 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने 16 दिन तक अनशन किया।
चिपको आंदोलन की वजह से वृक्षमित्र कहलाए :
चिपको आन्दोलन चमोली जिले में 1973 में प्रारम्भ हुआ। धीरे-धीरे यह पूरे उत्तराखंड में फैल गया। इस आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इसके प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा ही थे। यह पर्यावरण रक्षा का आन्दोलन था, जिसे किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। सभी किसानों ने राज्य में वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा की जा रही वनों की कटाई का विरोध किया था। इस आंदोलन की वजह से बहुगुणा 'वृक्षमित्र' कहलाए। बता दें कि मई, 2021 में 94 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
इसलिए कहा गया चिपको आंदोलन :
इस आंदोलन की वजह से 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 साल के लिए रोक लगा दी थी। धीरे-धीरे यह आंदोलन बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के विंध्य तक फैल गया था। इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाएं पेड़ों से लिपट जाते थे। इस आंदोलन को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था।
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