सार

राजेंद्र सिंह इन दिनों जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उनका कहना है कि पानी का मोल समझना होगा। उनका कहना है कि जल हमें ही नहीं पृथ्वी और पर्यावरण को भी बचाती है। इसलिए सभी को एकजुट होकर बूंद-बूंद बचाने की जरुरत है।

Changemaker : भारत की आजादी का पर्व इस बार खास होने जा रहा है। 15 अगस्त, 2022 को आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं। देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) चल रहा है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं देश के उन शख्सियत के बारें में जिनकी एक आवाज ने बदलाव का ऐसा बीज बोया कि जो आज 'संरक्षण' का पेड़ बन गया है। जिन्होंने अपने  काम के दम पर दुनिया में हिंदुस्तान का नाम सबसे ऊपर रखा है। 'Changemaker'सीरीज में बात 'वाटरमैन ऑफ इंडिया'
राजेंद्र सिंह  (Rajendra Singh)  की...

बागपत के राजेंद्र को आज कौन नहीं जानता
हिंदुस्तान के वाटरमैन ऑफ इंडिया राजेंद्र सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत के एक छोटे से गांव डौला में हुआ था।  6 अगस्त, 1959 को जन्मे राजेद्र अब 63 साल के हो गए हैं और दुनियाभर में देश का नाम सबसे आगे की पंक्ति में रखने वालों में से एक हैं। राजेंद्र की शुरुआती पढ़ाई गांव से ही हुई। यहीं से हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आयुर्वेद की डिग्री ली और गांव के लोगों की ही सेवा में जुट गए।

पॉलिटिक्स में जाना चाहते थे, दुनिया बचाने निकल पड़ें
आयुर्वेद से ग्रेजुएशन, हिंदी से एमए करने के दौरान राजेंद्र का पॉलिटिक्स की तरफ रुझान बढ़ा। इसी दिशा में वे आगे बढ़ने लगे। कॉलेज में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से  जुड़े और इसी बीच वे समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए। जयप्रकाश नारायण से वे इतने प्रभावित हुए कि राजनीति को लेकर उनके अंदर अलग ही जुनून दिखने लगा। फिर 1980 में उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई और 'नेशनल सर्विस वालेंटियर फॉर एजुकेशन' जयपुर में जॉब करने चले गए। गांव छूटा तो उनका राजनीति में जाने का जुनून भी खत्म हो गया।

एक चुनौती और बदल गया उद्देश्य
साल 1975 की बात है राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर में अग्निकांड पीड़ितों की सेवा के लिए उन्होंने 'तरुण भारत संघ' की स्थापना की। उस दौरान अलवर के एक गांव में पहुंचे, जहां एक बुजुर्ग ने उनसे कहा कि अगर गांव का इतना ही विकास करना है तो बातें छोड़ गेंती और फावड़ा पकड़ो। गांव वालों की मदद ही करनी है तो गांव में पानी लाओ। राजेंद्र सिंह ने यह चुनौती स्वीकार कर ली और अपने दोस्तों के साथ फावड़ा पकड़ जुए गए इस काम में। उन्होंने एक पहल की तो उनके पीछे हजारों की संख्या में युवाओं का बल मिलने लगा। 

प्राचीन भारतीय तकनीकि से बदल दी गांव की तस्वीर
उन्होंने बारिश के पानी को रोकने के लिए 6,500 छोट-छोटे जोहड़ यानी तालाब बनाए। इसका नतीजा यह हुआ कि गांव में पानी की कमी दूर हो गई। आसपास के 7 जिलों में जलस्तर 60 से 90 फीट तक ऊपर आ गया। अरवरी, भगाणी, सरसा, जहाजवाली और रूपारेल जैसी छोटी-बड़ी कई नदियों में फिर से पानी की धार फूट गई और करीब एक हजार गांवों तक पानी पहुंचने लगा।  जब यह बात गांव से पलायन कर गए लोगों को पता चली तो वे वापस लौट आए और खेती-किसानी में जुए गए। आलम यह रहा कि गांव की तस्वीर ही पूरी तरीके से बदल गई। इस चमत्कार की बात फैली तो तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन भी गांव तक पहुंच गए और राजेंद्र सिंह के प्रयास की खूब तारीफ की। यहां से निकला उनका काम पूरे देश में चर्चा का विषय बना और वे जलपुरुष और 'वॉटरमैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर हो गए।

राजेंद्र सिंह की उपलब्धियां एक नजर में...

  • साल 1975 में राजेंद्र सिंह ने 'तरुण भारत संघ' की नींव रखी। करीब एक हजार गांवों तक पानी पहुंचाया। 
  • बारिश का पानी बचाने की प्राचीन भारतीय तकनीक का आधुनिक तरीका से इस्तेमाल करते हैं।
  • साल 2008 में गार्डियन ने उन्हें दुनिया के उन 50 लोगों में शामिल किया जो पृथ्वी बचा सकते हैं।
  • साल 2001 मे उन्हें रमन मैग्सेसे अवॉर्ड से नवाजा गया।
  • साल 2015 में स्टॉकहोम वॉटर प्राइज यानी पानी के लिए मिलने वाला 'नोबेल पुरस्कार' से सम्मानित
  • 2018 में हाउस आफ कामन्स, यूनाइटेड किंगडम में अहिंसा सम्मान
  • 2019 में अमेरिका सियटल से अर्थ रिपेयर और नई दिल्ली में पृथ्वी भूषण सम्मान
  • भागीरथी पर बनने वाले लोहारीनाग पाला हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका

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