आखिर क्यों और कब सस्पेंड किए जाते हैं सांसद, कैसे होती है पूरी प्रॉसेस, जानें सबकुछ

बेरोजगारी, महंगाई, जीएसटी जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष सदन में लगातार हंगामा कर रहा है। इसी बीच, राज्यसभा के 19 सांसदों को एक हफ्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया है। इससे पहले भी सोमवार को कांग्रेस के चार सांसदों को निलंबित किया गया था। आखिर क्या होता है निलंबन और क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया, जानते हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 26, 2022 9:47 AM IST / Updated: Jul 26 2022, 03:21 PM IST

नई दिल्ली। मॉनसून सत्र में बेरोजगारी, महंगाई, जीएसटी और जांच एजेंसियों के एक्शन को लेकर विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है। इसी बीच, खबर है कि राज्यसभा के 19 सांसदों को एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया है। इससे पहले भी सोमवार को कांग्रेस के चार सांसदों को सस्पेंड किया गया था। वैसे, सांसदों को सस्पेंड करने की कार्रवाई पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी कई सांसदों को संसदीय शिष्टाचार के नियमों का पालन न करने पर सस्पेंड किया जा चुका है। आखिर क्यों और किन हालातों में सस्पेंड किए जाते हैं सांसद, आइए जानते हैं। 

संसदीय शिष्टाचार का पालन जरूरी : 
दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में सांसदों को संसदीय शिष्टाचार को मानना बेहद जरूरी होता है। इन नियमों के तहत कई बाते हैं। जैसे, सांसदों को दूसरों के भाषण को बाधित नहीं करना, सदन में शांति बनाए रखना, बहस के दौरान कमेंट करके सदन की कार्यवाही में बाधा नहीं डालने जैसी कई बातें शामिल होती हैं। हालांकि, विपक्ष द्वारा विरोध के नए तरीकों के चलते 1989 में इन नियमों को अपडेट भी किया गया है। 

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पीठासीन अधिकारी कर सकता है सांसद की शिकायत : 
नए नियमों के मुताबिक, दोनों सदनों में नारेबाजी, विरोध में डॉक्यूमेंट्स को फाड़ना, सदन में कैसेट या टेप रिकॉर्डर बजाना, तख्तियां दिखाना जैसी चीजें नहीं की जा सकतीं। सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले, इसके लिए दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों के पास कुछ पावर होती है। इसके तहत पीठासीन अधिकारी किसी भी सांसद को संसदीय आचरण के मुताबिक व्यवहार न करने पर विधायी कक्ष से हटने का निर्देश दे सकता है। पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही में लगातार और जानबूझकर बाधा डालने पर संबंधित सांसद की शिकायत कर सकता है। ऐसे केस में आमतौर पर संसदीय कार्य मंत्री सांसद को सदन की सेवा से सस्पेंड करने का प्रस्ताव पेश करते हैं। ऐसे में कई बार सांसद का निलंबन एक पूरे सत्र के लिए भी हो सकता है। 

क्या कहता है नियम 256 : 
- सभापति चाहे तो किसी भी ऐसे सांसद को निलंबित कर सकता है, जो जानबूझकर राज्यसभा के काम में बाधा डालते हुए सदन के नियमों की अनदेखी कर रहा हो। सस्पेंड होने के बाद उस सांसद को फौरन राज्यसभा से बाहर कर दिया जाता है। 
- सभापति चाहे तो सांसद को तब तक के लिए निलंबित कर सकता है जब तक कि संसद सत्र पूरा नहीं हो जाता। 

लोकसभा में इस नियम से होता है निलंबन : 
लोकसभा में नियम 373 के जरिए स्पीकर चाहे तो किसी भी सांसद को सस्पेंड कर सकता है। लोकसभा के नियम 373 के मुताबिक, अगर स्पीकर को लगता है कि कोई सांसद लगातार और जानबूझकर सदन की कार्यवाही में बाधा डालने की कोशिश कर रहा है तो वह उसे एक दिन या फिर पूरे सत्र के लिए भी सस्पेंड कर सकता है।

जानें कब-कब हुआ सांसदों का निलंबन : 
1963 : सांसद के निलंबन की पहली कार्रवाई 1963 में हुई थी। तब राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित करने के दौरान कुछ लोकसभा सांसदों ने जानबूझकर इसे बाधित करने का प्रयास किया। बाद में वॉकआउट कर गए।

1989 : राजीव गांधी सरकार के दौरान कुछ सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। इस पर विपक्ष के 63 सांसदों को निलंबित किया गया था। 

2013: मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही में बाधा डालने के लिए 12 सांसदों को निलंबित किया था। तब लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने नियम 374 ए के तहत सांसदों को 5 दिन के लिए निलंबित कर दिया था।

2015: कांग्रेस के 25 सांसदों को काली पट्टी बांधने और सदन की कार्यवाही को जानबूझकर बाधित करने की वजह से सस्पेंड किया गया था।

2021: संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के दौरान राज्यसभा में 12 सांसदों को पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। दरअसल, विपक्ष कृषि कानूनों के बहाने सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा था। लेकिन सरकार ने बिना चर्चा के ही कृषि कानून रद्द करने का बिल पास करा लिया। इस पर विपक्ष ने हंगामा किया तो 12 सांसदों को पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया।  

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