कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने एक महत्वपूर्ण मामले में कहा है कि पति या पत्नी (Spouse) द्वारा सेक्स के लिए मना करना आईपीएस नियमों (IPC Rules) के तहत क्रूरता नहीं है।
High Court On Spouse Sex. कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पति या फिर पत्नी द्वारा सेक्स के लिए मना करना क्रूरता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम में क्रूरता को तलाक का आधार माना गया है। लेकिन जीवनसाथी द्वारा सेक्स से इंकार करना आईपीसी नियमों के तरह क्रूरता नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी विशेष मामले में प्रस्तुत खास परिस्थियों और सबूतों पर यह निर्भर करता है कि इसे किस श्रेणी में रखा जाए। हालांकि ऐसे ही दूसरे मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का रूख अलग है।
कर्नाटक हाईकोर्ट क्रूरता मानता लेकिन अपराध नहीं
हालिया समय में देश के दो अलग-अलग हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति-पत्नी द्वारा यौन संबंध से इनकार करने के माले में दो तर्क प्रस्तुत किए हैं। कोर्ट के इन तर्कों ने लोगों का ध्यान इस तरफ खींचा है कि क्या जीवनसाथी द्वारा सेक्स के लिए मना करना वास्तव में मानसिक क्रूरता है या नहीं। क्या यह तलाक लेने का आधार बन सकता है या नहीं। 16 जून को कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में यह कहा कि पति द्वारा सेक्स से इनकार करना हिंदू विवाह अधिनियम के तरह क्रूरता तो है लेकिन यह भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध नहीं है।
सेक्स से इनकार मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक मामले में जज एम नागाप्रसन्ना की सिंग बेंच ने धारा 498 ए (महिलाओं के प्रति क्रूरता) के तहत पति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। दरअसल, पूर्व पत्नी ने शादी के 28 दिन बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी शादी से इंकार करना आईपीसी के तहत क्रूरता है। इस जोड़े ने दिसंबर 2019 में शादी की थी लेकिन महिला सिर्फ 28 दिनों के बाद अपने वैवाहिक घर से बाहर निकल गई। फिर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता के आधार पर शादी को रद्द करने की मांग की। अपनी शिकायत में पत्नी ने कहा कि उसका पति हमेशा ब्रह्मचर्य की वकालत करता है और आध्यात्मिक संस्था ब्रह्माकुमारीज के वीडियो देखता है। इस मामले में फैमिली कोर्ट ने उसकी तलाक याचिका को अनुमति दी और 2022 में शादी को रद्द कर दिया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेक्स से इंकार को मानसिक क्रूरता कहा
बीते 25 मई की बात करें तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक पारिवारिक अदालत द्वारा तलाक की याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ सुनवाई की। उस दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी पर्याप्त कारण के जीवनसाथी के साथ लंबे समय तक सेक्स से इनकार करना मानसिक क्रूरता के समान है।
सेक्स से इनकार मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट
ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि लंबे समय से विवाह के पक्षकार अलग-अलग रह रहे थे और पत्नी ने वैवाहिक दायित्व का निर्वहन करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा उनकी शादी पूरी तरह से टूट गई है। दरअसल, इस इस जोड़े की शादी 1979 में हुई थी और सात साल बाद, पत्नी का गौना हुआ। याचिकाकर्ता के अनुसार उसकी पत्नी ने वैवाहिक जीवन के अपने दायित्व को पूरा करने से इनकार कर दिया और बाद में अपने माता-पिता के घर लौट आई। पति ने दावा किया कि उसने उसे समझाने की कई कोशिशें कीं लेकिन महिला ने उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने से साफ इनकार कर दिया। जुलाई 1994 में पंचायत ने उन्हें आपसी तलाक की अनुमति दे दी, तब व्यक्ति ने पत्नी को 22,000 रुपये का गुजारा भत्ता दिया।
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