Who is KC Tyagi: नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के सीनियर लीडर केसी त्यागी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता पद छोड़ दिया है। माना जा रहा है कि केसी त्यागी को दिल्ली में बैठकर हर एक मुद्दे पर अपनी राय रखना भारी पड़ा है। उनके बयानों से कहीं न कहीं ये संदेश जा रहा था कि JDU का मत NDA से अलग है। हो सकता है इसी वजह से हाईकमान उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सका। नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेताओं में से एक माने जाने वाले केसी त्यागी को प्रवक्ता पद से आखिर क्यों इस्तीफा देना पड़ा। आखिर इसके पीछे और क्या वजहें हो सकती हैं, जानते हैं।
वजह नंबर 1 - NDA से समन्वय न बनाना पड़ा भारी
JDU फिलहाल NDA के साथ केंद्र सरकार में शामिल है। सूत्रों की मानें तो जेडीयू के प्रवक्ता के तौर पर केसी त्यागी के कुछ ऐसे बयान सामने आए जो कि NDA की राय से बिल्कुल जुदा थे। ऐसे में माना जा रहा है कि एनडीए के साथ समन्वय बनाकर न रखना केसी त्यागी को भारी पड़ा और उन्हें अपने प्रवक्ता पद से इस्तीफा देना पड़ा।
वजह नंबर 2 - कई मुद्दों पर दिखी पार्टीलाइन से अलग राय
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि केसी त्यागी की राय कई मुद्दों पर पार्टी द्वारा तय की गई लाइन से अलग दिखी। खासकर UPSC में लेटरल एंट्री, SC-ST रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले समेत कई अन्य मुद्दों पर राय देते समय उन्होंने पार्टी नेताओं से किसी तरह की चर्चा तक नहीं की। इससे कहीं न कहीं पार्टी की इमेज को बट्टा लगा।
वजह नंबर 3 - इजराइल मुद्दे पर किया INDI नेताओं का समर्थन
विदेश नीति के मामले में भी केसी त्यागी विपक्ष के सुर में सुर मिलाते नजर आए। इजराइल को गोला-बारूद की आपूर्ति रोकने के लिए विपक्ष ने विरोध जताया, जिसे त्यागी ने अपना समर्थन दिया। मतलब, यहां भी JDU का मत NDA से अलग रहा।
वजह नंबर 4 - UPSC में लेटरल एंट्री के खिलाफ दिखे
KC त्यागी ने UPSC में लेटरल एंट्री के मुद्दे पर भी विपक्ष का साथ देते हुए अलग राय रखी। इसके लिए उन्होंने पार्टी के सीनियर नेताओं से बातचीत करना भी जरूरी नहीं समझा। उन्होंने इस मुद्दे पर NDA से अलग राय रखते हुए कहा- लोगों को कई सौ सालों तक समाज में रहते हुए पिछड़ेपन के दंश को झेलना पड़ा तो फिर आप मेरिट क्यों तलाश रहे हैं।
वजह नंबर 5 - वक्फ एक्ट, यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड पर भी अलग मत
सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन के अलावा यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसले पर भी केसी त्यागी की राय पार्टीलाइन से बिल्कुल अलग दिखी। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना के मामले में भी पार्टी से बातचीत किए बिना ही अपना मत रखा।
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