UP में नहीं चला 'मोदी-योगी' मैजिक, जानें BJP के पिछड़ने की 9 सबसे बड़ी वजहें

Published : Jun 04, 2024, 03:23 PM IST
UP Lok sabha election results 2024

सार

लोकसभा चुनाव 2024 में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा नुकसान होता नजर आ रहा है। यूपी जैसे बड़े राज्य में पिछड़ना बीजेपी के लिए किसी बड़े झटके से कम नही है। आखिर क्या हैं वो कारण, जिनके चलते भाजपा को बड़ा घाटा हुआ। 

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को यूपी में बड़ा नुकसान होता दिख रहा है। ताजा रूझानों के मुताबिक, बीजेपी यूपी में 32 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि सपा 37 और कांग्रेस 8 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। यूपी जैसे बड़े राज्य में हार बीजेपी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। चुनाव के समय ही बेरोजगारी, पेपरलीक, आरक्षण, महंगाई और संविधान बदलने का मुद्दा गहरा रहा था। कैंडिडेट्स का चयन भी इसकी बड़ी वजह बताई जा रही है। आइए जानते हैं बीजेपी की हार की 9 प्रमुख वजहें।

1. जिताऊ प्रत्याशियों का चयन नहीं

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी जिताऊ प्रत्याशियों के चयन में असफल रही। ज्यादातर सीटों पर सिटिंग सांसदों को मौका दिया गया। जैसे- चंदौली लोकसभा सीट से महेंद्र नाथ पांडेय को टिकट दिया गया। पिछली बार चुनाव में जीत के बाद वह क्षेत्र में दिखे नहीं। जनता में उसको लेकर नाराजगी थी। ​दोबारा फिर उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने से बीजेपी के वोटर खुश नहीं थे। मौजूदा रूझानों में वह पीछे चल रहे हैं। इसी तरह घोसी सीट से बीजेपी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को मौका दिया। यहां भी बीजेपी के वोटर प्रत्याशी चयन से खुश नहीं थे। नतीजतन, सवर्ण वोटर्स का सपा के राजीव राय की तरफ झुकाव रहा, जो कि बढ़त बनाए हुए हैं। भाजपा के नुकसान के पीछे दर्जनों सीटों पर प्रत्याशियों की एंटी इन्कमबेंसी को जिम्मेदार बताया जा रहा है।

2. सीएम योगी को हटाने की अफवाह से राजपूतों की नाराजगी

यूपी में सीएम योगी को हटाने की अफवाह से राजपूतों की नाराजगी भी भारी पड़ी है। गुजरात के पुरुषोत्तम रूपाला का क्षत्रियों पर कमेंट करने के बाद शुरू हुआ विवाद थमा नहीं। आम लोगों में यह चर्चा थी कि यदि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 400 सीटें मिल जाती हैं तो सीएम योगी आदित्यनाथ सीएम की कुर्सी पर नहीं रहेंगे। अरविंद केजरीवाल के आरोप ने रही सही कसर पूरी कर दी। कई जिलों में राजपूतों ने बीजेपी को वोट न देने की कसमें खाईं।

3. अग्निवीर योजना का प्रभाव

कैंपेन फॉर विजिल इंडिया ट्रस्ट के संयोजक योगेंद्र उपाध्याय कहते हैं कि अग्निवीर योजना का प्रभाव पड़ा है। यदि एक गांव में अग्निवीर सेलेक्ट हुआ है तो गांव भर के नौजवानों की भावनाओं पर उसका निगेटिव असर पड़ा है कि यदि सेना की नौकरी भी कॉन्ट्रैक्ट की तरह हो जाएगी तो देश की सेवा करने के लिए नौजवान जिस जज्बे के साथ जाता है, यह उसकी भावनाओं के साथ मजाक होगा।

4. पेपरलीक

लोकसभा चुनाव 2024 की आचार संहिता जारी होने से पहले यूपी में पुलिस भर्ती और अन्य परीक्षाओं के पेपर लीक के मामलों ने खूब तूल पकड़ा। युवाओं ने उसको लेकर जबर्दस्त प्रदर्शन भी किया। इसको लेकर भी युवाओं में नाराजगी थी।

5. संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने वाला नैरेटिव

योगेंद्र कहते हैं कि चुनाव के दरम्यान विपक्ष बार—बार सत्ताधारी दल पर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाता रहा। इस संबंध में बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान भी वायरल हुए। हालां​कि बीजेपी ने अपनी तरफ से सफाई दी। पर तब तक देर हो चुकी थी। लोगों को लगा कि यदि बीजेपी सरकार वापस आती है तो उनका आरक्षण का अधिकार प्रभावित हो सकता है। उधर कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना, एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत बढ़ाने संबंधी दांव चला, जो काम आया।

6. युवाओं में नौकरी न​ मिलने को लेकर आक्रोश

युवा अधिकारों को लेकर सजग रहने वाले सुभाष कहते हैं कि खासकर गांव के युवाओं में आक्रोश है, जो नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं। अब यदि नौकरी नहीं निकलेगी तो उनकी मेहनत बेकार हो जाएगी। रोजगार को लेकर कई वर्षों से युवा लगातार निराश हो रहे थे। अब हर युवा आईएएस—पीसीएस तो बन नहीं जाएगा। ऐसे में भर्ती न निकलने से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे युवा घोर निराशा में थे।

7. कर्जमाफी का वादा भाया

पूर्वांचल के किसान अपनी आमदनी को लेकर हमेशा दुखी रहते हैं। खेती की लागत भी निकलनी मुश्किल होती है। कर्जे से दबे हुए हैं। ऐसे में उन्हें कांग्रेस के कर्ज माफी आयोग बनाने और एमएसपी को कानूनी दर्जा देने का वादा भाया है। गांव में इस पर चर्चा थी।

8. सपा की कैंडिडेट चयन में चतुराई

सपा ने कैंडिडेट चयन में चतुराई दिखाई। भले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बार बार प्रत्याशी बदलने को लेकर आलोचना हुई। पर उन्होंने एमवाई समीकरण को ध्यान में रखते हुए ऐसे कैंडिडेट मैदान में उतारें, जिसकी जाति के वोटर उस क्षेत्र में ज्यादा थे। ताकि उसे सपा के वोट बैंक के साथ सजातीय वोटरों का भी सपोर्ट मिले। फैजाबाद, मेरठ, घोसी, मिर्जापुर, चंदौली में प्रत्याशियों का चयन इसका उदाहरण है।

9. बसपा के दांव से बिगड़ा खेल

बसपा सुप्रीमो मायावती ने को भले ही विपक्ष बीजेपी की बी टीम कहकर आलोचना करता रहा हो। पर उनके टिकट के बंटवारे ने एनडीए प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचाया। मेरठ, मुजफ्फरनगर, खीरी, घोसी आदि सीटों पर बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ा।

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