मौत का पुल: कहानी सैकड़ों जान लेने वाले मोरबी ब्रिज की, जानें सबसे पहले कब और किसने बनवाया था ये झूलता पुल

Published : Oct 30, 2022, 11:49 PM ISTUpdated : Oct 31, 2022, 10:44 AM IST
मौत का पुल: कहानी सैकड़ों जान लेने वाले मोरबी ब्रिज की, जानें सबसे पहले कब और किसने बनवाया था ये झूलता पुल

सार

गुजरात के मोरबी में रविवार शाम 7 बजे के आसपास केबल सस्पेंशन ब्रिज टूटने से करीब 400 लोग मच्छु नदी में समा गए। इस हादसे में अब तक 77 लोगों की मौत हो चुकी है। मृतकों में 25 से ज्यादा बच्चे हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में महिलाओं के शव भी बरामद किए गए हैं। करीब 70 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं।

Morbi Bridge Collapse: गुजरात के मोरबी में रविवार शाम 7 बजे के आसपास केबल सस्पेंशन ब्रिज टूटने से करीब 400 लोग मच्छु नदी में समा गए। इस हादसे में अब तक 77 लोगों की मौत हो चुकी है। मृतकों में 25 से ज्यादा बच्चे हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में महिलाओं के शव भी बरामद किए गए हैं। करीब 70 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। प्रशासन और सेना की तरफ से लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। बता दें कि सैकड़ों जान ले चुका यह झूलता पुल करीब 140 साल पुराना है। 

पहली बार कब बना मोरबी ब्रिज?
मोरबी का यह झूलता पुल आजादी से पहले का है। इसे सबसे पहले उस समय के राजा वाघजी रावाजी ठाकोर ने 1880 में बनवाया था। इसका उपयोग नदी के शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने के लिए किया जाता था। मच्छु नदी पर बना यह ब्रिज मोरबी के लोगों के लिए एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी था।

आधुनिक तकनीक से बनाया गया था पुल : 
मोरबी के राजा ने इस पुल के निर्माण के लिए यूरोप से बेहद आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया था। इसके बाद अंग्रेजों ने इस पुल की मरम्मत करवाई और इसे पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बनाया। पिछले कई सालों से समय-समय पर इसकी मरम्मत होती थी। 

PHOTOS: दिवाली के 1 दिन बाद ही खुला था 765 फीट लंबा मोरबी पुल, केबल टूटते ही नदी में समा गईं 400 जानें

1.25 मीटर चौड़े पुल पर खर्च हुए थे 2 करोड़ : 
दिवाली के ठीक एक दिन बाद खोले जाने से पहले यह पुल पिछले 6 महीने से बंद पड़ा था। पुल के रेनोवेशन का काम चल रहा था, जिसके चलते इसे बंद किया गया था। रविवार को बच्चों की छुट्टी होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग इसे देखने पहुंचे थे। यह पुल 1.25 मीटर चौड़ा था। यह ब्रिज दरबार गढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता है। इसकी मरम्मत पर 2 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।

इस कंपनी को 15 साल के लिए मिला था मेंटेनेस का ठेका : 
पुल की मरम्मत के लिए सरकारी टेंडर ओरेवा ग्रुप को दिया गया था। इसी ग्रुप को अगले 15 साल तक इस ब्रिज की देखरेख यानी मेंटेनेंस भी करना था। लेकिन यह ब्रिज खुलने के 120 घंटे बाद ही टूट कर नदी में समा गया। बता दें कि पुल पर क्षमता से ज्यादा लोग पहुंच गए थे, जिसकी वजह से वो भार नहीं सह पाया और टूट गया। 

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