जब मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तो मैं बहुत घबरा गई थी, लेकिन देखिए..मैं लड़ाई जीतकर आ गई हूं

यह हैं 21 साल की नियोमी शाह। ये 31 दिनों बाद हॉस्पिटल से ठीक होकर घर लौटी हैं। कोरोना को लेकर लोगों में डर स्वाभाविक-सी बात है, लेकिन यह भी सच है कि इससे डरने नहीं, लड़ने की जरूरत है। नियोमी को भी जब मालूम चला था कि उन्हें कोरोना हुआ है, तो वो घबरा गई थीं। फिर हिम्मत जुटाई और अब कहती हैं कि लोग डरें नहीं, कोरोना से लड़ें। नियाेमी अहमदाबाद की रहने वाली हैं। जानिए वे क्या कहती हैं..
 

अहमदाबाद, गुजरात. कोरोना संक्रमण ने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। यह बीमारी उतनी खतरनाक नहीं है, जितना लोग डरे हुए हैं। दरअसल, यह एक ऐसी महामारी है, जिसे सतर्कता से रोका जा सकता है। हाथ बार-बार साफ करना..लोगों से डिस्टेंस बनाए रखना और सबसे बड़ी बात...संक्रमण के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाना। यह हैं 21 साल की नियोमी शाह। ये 31 दिनों बाद हॉस्पिटल से ठीक होकर घर लौटी हैं।

कोरोना को लेकर लोगों में डर स्वाभाविक-सी बात है, लेकिन यह भी सच है कि इससे डरने नहीं, लड़ने की जरूरत है। नियोमी को भी जब मालूम चला था कि उन्हें कोरोना हुआ है, तो वे घबरा गई थीं। फिर हिम्मत से जुटाई और अब कहती है कि लोग डरें नहीं, कोरोना से लड़ें। नियोमी शुक्रवार की रात एसवीपी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आईं, तो उनकी आंखों से आंसू बह निकले। ये आंसू कोरोना को हराने की खुशी के थे। नियोमी बताती हैं कि उनके साथ के कई मरीज ठीक होकर जाते रहे, लेकिन उनकी रिपोर्ट लगातार पॉजिटिव आ रही थी। शुरू में वे घबराईं, लेकिन फिर सोचा कि डरने से क्या होगा? जानिए नियोमी की जुबानी..

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हॉस्पिटल में समय काटना मुश्किल हो रहा था
जब मेरी पहली रिपोर्ट पॉजिटिव आई, ताे मैं भी बाकियों की तरह बहुत घबरा गई थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था। हॉस्पिटल में इतना लंबा समय काटना मुश्किल हो रहा था। शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से खुद को टूटा हुआ महसूस करने लगी थी। फिर सोचा कि इंसान की ताकत से बड़ा कोई नहीं होता। इसके बाद मैं अच्छा फील करने लगी। लोगों से मैं यही कहूंगी कि कोरोना से डरे नहीं, उसका मुकाबला करें..सतर्कता बरतें।

डॉक्टर से पूछती थी कि सब ठीक तो हो जाएगा
हर 2-3 दिनों में मेरा टेस्ट होता था। हर बार रिपोर्ट पॉजिटिव निकलती। मैं डॉक्टर से पूछती कि मैं ठीक तो हो जाऊंगी? डॉक्टर मुस्कराकर कहते कि बिलकुल..धैर्य रखो..सब अच्छा होगा। सबसे बड़ी बात, जब आप कोरोना का इलाज कराने हॉस्पिटल में होते हैं, तो आपके साथ अपना कोई नहीं होता। संक्रमण के कारण किसी को भी मिलने की इजाजत नहीं होती। ऐसे में मानसिक तनाव होना लाजिमी है। ऐसे में डॉक्टर और मनोचिकित्सकों ने काउंसिलिंग करके मेरा हौसला बढ़ाया। मैंने भी खुद को संभाला।

आप हिम्मत न हारें
कोरोना संक्रमण को हराना है, तो लॉकडाउन का पालन करना होगा। जो लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं, उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मैं डिस्चार्ज होकर घर आ गई हूं, फिर भी मुझे 14 दिनों तक बड़ी सतर्कता बरतनी होगी। मेरे लिए डॉक्टर सचमुच रियल हीरो हैं।

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