RSS से जुड़े संगठन के पास है गोल्डन इंक से लिखी दुर्लभ कुरान, दुनिया में 4 कॉपी, 385 पेज, जीरो प्रूफ मिस्टेक

ये है सोन की स्याही(Gold ink Quran) से लिखी गई दुनिया की दुर्लभ पवित्र कुरान। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित एक संगठन द्वारा 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस(108th Indian Science Congress-ISC) में प्रदर्शित किया गया है, जिसका मंगलवार को उद्घाटन किया गया। 

नागपुर(Nagpur). ये है सोन की स्याही(Gold ink Quran) से लिखी गई दुनिया की दुर्लभ पवित्र कुरान। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित एक संगठन(Rashtriya Swayamsevak Sangh-inspired organisation) द्वारा 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस(108th Indian Science Congress-ISC) में प्रदर्शित किया गया है, जिसका मंगलवार को उद्घाटन किया गया। यह कुरान 16वीं शताब्दी की बताई जाती है। पढ़िए एक दिलचस्प खबर...


1. महाराष्ट्र में 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस (ISC) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित संगठन द्वारा संरक्षित स्वर्ण स्याही से लिखी गई 16वीं सदी की पवित्र कुरान की एक दुर्लभ प्रति प्रदर्शित की गई है।

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2. मंगलवार को सोने की स्याही वाली इस कुरान को प्रदर्शित करने वाली संस्था के एक पदाधिकारी ने बताया कि दुनिया में इस पवित्र ग्रंथ की केवल चार प्रतियां हैं।

3. आईएससी प्रदर्शनी में नागपुर बेस्ड रिसर्च फॉर रिसर्जेंस फाउंडेशन (RFRF) द्वारा लगाए गए एक स्टाल पर कुरान की कुछ प्रतियां और  कुछ प्राचीन पांडुलिपियां(ancient manuscripts), जिनमें से कुछ को सदियों पुराना माना जाता है, प्रदर्शित की गई हैं।

4. RFRF भारतीय शिक्षण मंडल का रिसर्च विंग है। यह प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों(ancient Indian knowledge systems) के संरक्षण और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसे लागू करने के लिए काम करता है।

5. मंडल की वेबसाइट के अनुसार, शिक्षा के क्षेत्र में एक राष्ट्रीय पुनरुत्थान को पूरा करने के लिए मंडल का गठन किया गया था।

6.RFRF नॉलेज रिसोर्स सेंटर के निदेशक भुजंग बोबडे ने कहा कि यह सोने की स्याही वाली कुरान 16वीं शताब्दी में लिखी गई थी। दुनिया में इस कुरान की केवल चार प्रतियां हैं। बोबडे, जो नई दिल्ली में राष्ट्रीय पांडुलिपि प्राधिकरण(National Manuscript Authority in New Delhi) के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर भी हैं, ने कहा कि इस कुरान के फुटनोट नस्तालिक लिपि(Nastaliq script) में लिखे गए हैं।

7. बोबडे ने कहा कि नस्तालिक और कुफी फारसी में प्रयुक्त होने वाली दो लिपियां हैं। नस्तालिक को दुनिया की सबसे बेहतरीन स्क्रिप्ट माना जाता है।

8. दुर्लभ सोने की स्याही वाली कुरान पांडुलिपि की एक और खासियत यह है कि इसमें एक भी गलती के बिना 385 पेज हैं।

9. बोबडे ने कहा, "इसमें 385 पृष्ठ हैं, जिनमें सोने की स्याही से लघु लेख(miniature writings) हैं। छोटे आकार के बावजूद इनमें से किसी भी पृष्ठ पर एक भी गलती नहीं है। यह इस पुस्तक की विशिष्टता है।"

10. बोबडे ने कहा कि हैदराबाद के निजाम के दीवान के परिवार ने उन्हें कुरान की प्रति दी थी। उन्होंने कहा कि ईरान के राष्ट्रपति के सलाहकार विशेष रूप से आरएफआरएफ संग्रह देखने के लिए आए थे। आरएफआरएफ में भारतीय इतिहास, धर्मों और प्राचीन भारत के विज्ञान की 15,000 पांडुलिपियां हैं।

11.बोबडे ने कहा-"1577 में अबू फजल द्वारा लिखित 'अकबरनामा' के बारे में दुनिया जानती है। आरएफआरएफ के पास वह किताब है, लेकिन हमारे पास फारसी में 'तिब्ब-ए-अकबर' भी है, जिसके बारे में दुनिया नहीं जानती। 'तिब्ब-ए-अकबर' 17वीं शताब्दी में लिखा गया था।"

12.बोबडे ने कहा कि  आरएफआरएफ के संग्रह में 'तारीख-ए-ताज' भी शामिल है, जो ताजमहल के इतिहास की व्याख्या करता है। उन्होंने कहा-"दुनिया ताजमहल के बारे में जानती है, लेकिन वे इसके वास्तविक इतिहास को नहीं जानते हैं जैसे मुमताज महल की मृत्यु की सही तारीख। 'तारीख-ए-ताज' बताती है कि मुमताज महल की मृत्यु 17 जून, 1631 को बुधवार रात 9.30 बजे हुई थी। इसी तरह, इसमें यह भी बताया गया है कि वहां कौन-कौन काम करता था और कहां से पत्थर और कंचे लाए गए थे।"

13.आरएफआरएफ संग्रह में महाराष्ट्र के बीड जिले के मंजरथ गांव में रामचंद्र दीक्षित द्वारा लिखित छत्रपति शिवाजी महाराज पर पहली पांडुलिपि भी शामिल है। बोबडे ने कहा, "हमारे पास 17वीं सदी के मराठा राजा द्वारा उनके मूल लेखन में लिखा गया आखिरी पत्र भी है।"

14. बोबडे ने कहा कि ताड़ के पत्तों पर लिखे गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण, जो हजारों साल पुराने हैं, वे भी आरएफआरएफ के संग्रह में हैं।

15. बोबडे ने कहा-"आरएफआरएफ ने अब तक पांच करोड़ पृष्ठों की 1.5 लाख प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया है और उन्हें शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराया है। हमने 3,441 अभिलेखागार और संग्रहालयों से 25 लाख से अधिक पांडुलिपियों का एक डेटाबेस एकत्र किया है। इन सभी पांडुलिपियों को उन लोगों के लिए डिजिटाइज़ किया गया है, जो शोध करना चाहते हैं। हम इन प्राचीन पांडुलिपियों को इकट्ठा करने और उन्हें संरक्षित करने के लिए पिछले 16 वर्षों से काम कर रहे हैं।"

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