जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है। माना जाता है कि यह 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है।
मद्रास। दक्षिण भारत का प्रसिद्ध जलीकट्टू को अनुमति मिल गई है। हालांकि, कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इसकी इजाजत दी है। जलीकट्टू में अब केवल देसी नस्ल के बैलों (सांड़) से ही खेल की अनुमति मिलेगी। मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को यह आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार को आदेशित किया है कि देसी नस्लों के साड़ अधिक तैयार हों और देसी पशुओं पर किसान फोकस करें इसके लिए सरकार सब्सिडी की भी व्यवस्था करे। इससे बैल मालिक और किसान इस ओर आकर्षित होंगे।
क्या है जलीकट्टू, कब होता है आयोजित
जल्लीकट्टू तमिलनाडु का एक परंपरागत खेल है, जो पोंगल त्यौहार पर आयोजित होता है। इसमें बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है। हालांकि, इस खेल में कई बार जानें भी चली जाती हैं। लोगों की जान जाने की वजह से तमाम सामाजिक कार्यकर्ता और जिम्मेदार इस पर बैन की मांग करते रहे हैं।
हालांकि, जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है। माना जाता है कि यह 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है। इस वजह से इस पर बैन की कोशिशें बहुत कामयाब नहीं हो सकी हैं।