एक मां का संघर्ष! बेटी को पालने के लिए 30 साल तक पुरूष बन कर काम किया, साड़ी-ब्लाउज की जगह पहने लुंगी और शर्ट

Published : May 14, 2022, 02:03 PM ISTUpdated : May 14, 2022, 02:32 PM IST
एक मां का संघर्ष! बेटी को पालने के लिए 30 साल तक पुरूष बन कर काम किया, साड़ी-ब्लाउज की जगह पहने लुंगी और शर्ट

सार

अपनी इकलौती बेटी को पालने और खुद को समाज में पुरुषों से सुरक्षित रखने के लिए एक मां 30 साल तक महिला की जगह पुरूष बनकर रही। यह रियल स्टोरी है तमिलनाडु के थुथूकुडी जिले की पेचियाम्मल की। वह करीब 30 साल तक कभी मुथु तो कभी मुथु मास्टर बनकर रही।

नई दिल्ली। तमिलनाडु के थुथूकुडी जिले से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां एक मां ने अपनी बेटी को पालने और समाज में पुरुषों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए करीब 30 साल तक पुरूष का वेश धारण करके रही। यह दिलचस्प कहानी है थुथूकुडी जिले के कटुनायक्कन पट्टी की रहने वाली पेचियाम्मल की। 

दरअसल, पेचियाम्मल जब 20 साल की थी, तब उनकी शादी कर दी गई। 15 दिन बाद पति की मौत हो गई। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। पेचियाम्मल ने करीब नौ महीने बाद बेटी को जन्म दिया। अपना और बेटी का पेट पालने के लिए उसे बाहर काम पर जाना पड़ता था, लेकिन लोग उससे ठीक तरह से पेश नहीं आते और महिला होने के नाते उसका उत्पीड़न किया जाता था। 

दूसरी शादी कर सकती थी, मगर बेटी के लिए नहीं की
वह अपनी सुरक्षा के लिए चाहती तो दूसरी शादी कर सकती थी, मगर बेटी के भविष्य को देखते हुए उसने ऐसा नहीं किया। हालांकि, तब तक उसने एक कड़ा फैसला लेने की ठान ली थी। पेचियाम्मल ने महिला की जगह पुरूष बनकर समाज में रहने और काम करके अपना तथा बेटी का जीवन चलाने का फैसला किया। इसके बाद आदमी की तरह दिखने के लिए उसने अपने बाल कटवाए। साड़ी-ब्लाउज की जगह लुंगी और शर्ट पहने और इस तरह वह पेचियाम्मल से मुथु बन गई। 

सभी दस्तावेजों में मेरा नाम मुथु कुमार 
बीते 30 साल में मुथु ने चेन्नई अैर थुथूकुडी में होटल, ढाबे और चाय की दुकानों पर काम किया। वह जहां भी काम करती थीं, उन्हें अन्नाची (पुरूष का पारंपरिक नाम) कहा जाता। बाद में उन्हें मुथु मास्टर कहा जाने लगा, क्योंकि उन्होंने चाय और पराठे की दुकान लगाई। पेचियाम्मल के अनुसार, मैंने पेंटर, टी मास्टर, पराठा मास्टर जैसे कई तरह के काम किए। इसके अलावा मनरेगा में सौ दिन का काम भी करती। अब मैंने बेटी के सुरक्षित जीवन के लिए एक-एक पैसा बचा लिया है। हालांकि, मुथु अब मेरी पहचान बन गया है। मेरी फोटो के साथ बने आधार कार्ड, वोटर कार्ड और बैंक खाते समेत सभी दस्तावेज में यही नाम है। 

आदमी का वेश धारण करने से सुरक्षित रही
पेचियाम्मल क अनुसार, शुरू में ऐसा करना बेहद कठिन था।लेकिन बेटी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मैंने यह मुसीबत भी झेलने का फैसला किया। जब मैं आजीवका के लिए काम पर जाती, तब आदमी का वेश धारण करने से मुझे रास्ते में और काम करने वाली जगहों पर सुरक्षित रखने में मदद मिली। पुरूष वाली पहचान को असली बनाने के लिए मैंने बसों में पुरूष सीट पर सफर किया। पुरूष शौचालय का इस्तेमाल किया। सरकार ने बसों में  महिला यात्रियों के लिए मुफ्त सेवा की घोषणा की थी, मगर मैंने किराए का भुगतान किया। 

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