कौन हैं उत्तराखंड की बसंती दीदी, मन की बात में पीएम मोदी ने की तारीफ, कहा- अपना पूरा जीवन संघर्षों के बीच जीया

पीएम मोदी ने कहा कि बसंती देवी ने अपना पूरा जीवन संघर्षों के बीच जीया है। कम उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया था और वह एक आश्रम में रहने लगीं। यहां रहकर उन्होंने नदी को बचाने के लिए संघर्ष किया और पर्यावरण के लिए असाधारण योगदान दिया। 

देहरादून : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने रविवार को मन की बात के जरिए 85वीं बार देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पद्मश्री से सम्मानित उत्तराखंड (Uttarakhand) की बसंती देवी (Basanti Devi) का जिक्र किया और उनकी तारीफ की। पीएम ने कहा कि पद्म पुरस्कार पाने वालों में कई ऐसे नाम भी हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जिन्होंने साधारण परिस्थितियों में असाधारण काम किए हैं। जैसे कि उत्तराखंड की बसंती देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

क्या कहा पीएम मोदी ने
पीएम मोदी ने कहा कि बसंती देवी ने अपना पूरा जीवन संघर्षों के बीच जीया है। कम उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया था और वह एक आश्रम में रहने लगीं। यहां रहकर उन्होंने नदी को बचाने के लिए संघर्ष किया और पर्यावरण के लिए असाधारण योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काफी काम किया है।

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12 साल में हो गई थी शादी
पिथौरागढ़ के कनालीछीना की रहने वाली बसंती सामंत शिक्षा के नाम पर मात्र साक्षर थीं। 12 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। कुछ ही समय के बाद पति की मौत हो गई। दूसरा विवाह करने की बजाय उन्होंने पिता की प्रेरणा से मायके आकर पढ़ाई शुरू कर दी। इंटर पास करने के बाद गांधीवादी समाजसेविका राधा बहन से प्रभावित होकर सदा के लिए कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में आ गईं। वर्तमान में आश्रम संचालिका नीमा बहन ने बताया कि बसंती बहन कुछ समय से पिथौरागढ़ में ही रह रही हैं। 

इस साल मिला पद्मश्री
कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम की बसंती देवी को समाज सेवा के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान मिला है। पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्षरत बसंती बहन ने सूखती कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से सशक्त मुहिम चलाई। घरेलू हिंसा और महिला उत्पीडऩ रोकने के लिए उनका जनजागरण आज भी जारी है। बसंती देवी ने समाजसेवा की शुरुआत अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लॉक में बालबाड़ी कार्यक्रमों के माध्यम से की। यहां उन्होंने महिलाओं के भी संगठन बनाए। 2003 में लक्ष्मी आश्रम की संचालिका राधा बहन ने उन्हें अपने पास बुलाया और कोसी घाटी के गांवों में महिलाओं को संगठित करने की सलाह दी। बसंती बहन के प्रयासों से कौसानी से लेकर लोद तक पूरी घाटी के 200 गांवों में महिलाओं के सशक्त समूह बने हैं। उन्होंने महिलाओं और पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए 2008 में काम शुरू किया। गांवों में महिला प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संपर्क रखकर उन्होंने आत्मनिर्भर बनाया। वर्तमान में 242 महिला प्रतिनिधि सशक्तीकरण अभियान से जुड़ी हैं। 

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