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मध्यप्रदेश की 5 हस्तियों को Padma Shri, किसी ने कला के दम पर पाया मुकाम, किसी ने सेवा में दिन-रात एक कर दिया
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दुर्गा बाई व्योम (कला)
मंडला जिले के बुरबासपुर में पैदा हुईं दुर्गाबाई व्योम (Durga Bai Vyom) की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। जब वह छह साल की थीं, तभी से उन्होंने अपनी मां से डिगना की कला सीखी। यह शादी-विवाह और उत्सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित की जाने वाली परंपरागत चित्रकारी है। दुर्गाबाई के चित्र गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल पर आधारित हैं। वे लोककथाओं को भी चित्रित करती हैं। इसके लिए वह अपनी दादी की आभारी हैं जो उन्हें अनेक कहानियां कहती थीं।
राम सहाय पांडे (कला)
बुंदेलखंड के लोक कलाकार रामसहाय पांडे (ramshay pandey) जाने माने राई नर्तक हैं। उनका जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के ग्राम मड़धार पठा में हुआ था। वे गरीब परिवार से थे। पिता की मौत के बाद वे कनेरादेव आ गए थे, तब से यहीं हैं। उनके 4 बेटे और 5 बेटियां हैं। राम सहाय बचपन में मेला देखने गए थे, जहां उन्होंने पहली बार राई नृत्य देखा। तभी से ठान लिया था कि वे भी राई करेंगे। जिसके बाद उन्होंने मृदंग बजाना शुरू किया, लेकिन बुंदेलखंड के सामाजिक नजरिए से राई नृत्य ब्राह्मण परिवारों के लिए अच्छा नहीं माना जाता था। एक तरह से वर्जित था। कई परेशानियों के बीच उन्होंने मृदंग बजाना और राई नृत्य सीख लिया। जिसके बाद वर्ष 1964 में आकाशवाणी भोपाल ने उन्हें मंच दिया। जहां पांडेय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण की उपस्थिति में राई की प्रस्तुति दी। तभी से उनके नृत्य और कला की सराहना शुरू हुई।
डॉ. एनपी मिश्रा (मेडिसिन)
मध्यप्रदेश में मेडिकल क्षेत्र में पितामह के रूप में पहचाने जाने वाले और भोपाल के मशहूर डॉक्टर एनपी मिश्रा (NP Mishra) को मरणोपरांत पद्मश्री से नवाजा जाएगा। डॉ. मिश्रा का पिछले साल 5 सितंबर को निधन हो गया था। डॉ. एनपी मिश्रा ने गांधी मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री ली और कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एचओडी बने। वे गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन भी रहे। भोपाल में वर्ष 1984 में हुई भीषण गैस त्रासदी के दौरान मरीजों क इलाज में उनकी बड़ी भूमिका थी। चिकित्सकों को भी यह जानकारी नहीं थी कि घातक मिथाइल आइसासाइनाइड गैस के दुष्प्रभाव इलाज कैसे करना है। तब उन्होंने अमेरिका और दूसरे देश के डॉक्टरों से बात कर गैस के बारे में इलाज पूछा था। वह लगातार 2 से 3 दिन तक बिना सोए वह मरीजों के इलाज में जुटे रहे।
अर्जुन सिंह धुर्वे (कला)
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के रहने वाले अर्जुन सिंह धुर्वे (Arjun Singh Dhurve) बैगा लोक कला के ध्वजवाहक हैं। बैगा लोकगीत और नृत्य के लिए वे मशहूर हैं। पिछले चार दशकों से वे जनजातीय कला को लोकप्रिय बनने के काम में लगे हैं। वह मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के सामने बैगा नृत्य कर चुके हैं। वे बैगा जनजाति समाज में स्नातकोत्तर करने वाले पहले शख्स हैं। प्रधान अध्यापक भी रह चुके हैं। 1993-94 में मप्र सरकार ने उन्हें तुलसी सम्मान से विभूषित किया। बैगा परधौनी नृत्य बैगा जनजाति का मुख्य नृत्य है। इसमें मोर, हाथी और घोड़ा आदि के मुखौटे में प्रस्तुति दी जाती है।
डॉ. अवध किशोर जड़िया (साहित्य एवं शिक्षा)
बुंदेली कवि अवध किशोर जाड़िया (Awadh Kishore Jadia) का जन्म हरपालपुर में 17 अगस्त, 1948 को हुआ था। उन्हें उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है। हरपालपुर में शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने ग्वालियर से बीएएमएस की डिग्री ली। इसके बाद सरकारी सेवा में रहते हुए वे बुंदेली साहित्य को आगे बढ़ाने में लगातार लगे रहे। वंदनीय बुंदेलखंड, ऊधव शतक, कारे कन्हाई के कान लगी है और विराग माला प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं।
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