PM Modi Repeals Farm Bills: 14 महीने बाद तीनों कृषि कानून वापस, जानिए आंदोलन से लेकर PM के ऐलान तक का सफर

आज से ठीक एक साल पहले यानी 17 सितंबर 2020 को ये तीनों कानून संसद से पास हुए थे। इनके विरोध में पंजाब, हरियाणा, यूपी और हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में किसान लगातार आंदोलन कर रहे थे। पिछले साल 26 नवंबर से किसानों का दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन शुरू हुआ, जो अब तक जारी था। इस बीते एक साल में क्या-क्या हुआ? आइए जानते हैं...

नई दिल्ली। आखिरकार किसान आंदोलन को बड़ी कामयाबी मिली। पिछले एक साल से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे किसानों को गुरु पर्व पर ये जीत मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने खुद तीनों नए कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया। मोदी ने कहा कि हमने वो सारी कोशिशें की, जिसमें ये बता सकें कि ये तीनों कृषि कानून (Agricultural Laws) किसानों के हित में लाए गए हैं। लेकिन, ये बात कुछ किसानों को नहीं समझा पाए। शायद मेरी तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी। इसलिए खुले मन से ये तीनों कृषि कानून वापस लेंगे और संसद सत्र में संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करेंगे।

आज से ठीक एक साल पहले यानी 17 सितंबर 2020 को ये तीनों कानून संसद से पास हुए थे। इनके विरोध में पंजाब, हरियाणा, यूपी और हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में किसान लगातार आंदोलन कर रहे थे। पिछले साल 26 नवंबर से किसानों का दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन शुरू हुआ, जो अब तक जारी था। इस बीते एक साल में क्या-क्या हुआ? आइए जानते हैं...

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ऐसे शुरू हुआ किसानों का आंदोलन...
पिछले साल संसद के मॉनसून सत्र के अंतिम दिनों में 14 सितंबर को ये कृषि सुधार अध्यादेश वित्त विधेयक के तौर पर संसद में लाया गया। 17 सितंबर को लोकसभा ने इसे पारित किया। इसके बाद 3 नवंबर से किसानों के बीच उबाल आना शुरू हुआ और संगठन सड़क पर उतर आए। कृषि मंडियों, जिलाधिकारियारें के दफ्तरों और सड़कों पर छुटपुट प्रदर्शनों और विरोध का सिलसिला शुरू हुआ। 25 नवंबर को दिल्ली कूच करने का ऐलान किया गया। पंजाब, हरियाणा, यूपी और अन्य राज्यों के किसान संगठन संयुक्त मोर्चे के बैनर तले एकत्रित हुए और 26 नवंबर से दिल्ली बॉर्डर पर धरना देना शुरू कर दिया। यहां पुलिस ने दिल्ली बॉर्डर पर सभी रास्ते बंद कर दिए थे।

सरकार ने सुझाव पर जोर दिया, किसान रद्द करने की मांग पर अड़े थे
दिल्ली के बॉर्डर पर पश्चिम की ओर से पंजाब, हरियाणा और पूरब की ओर से यूपी, उत्तराखंड के किसानों ने डेरा डाल लिया था। इस बीच, केंद्र सरकार की तरफ से बातचीत की पेशकश की गई। इस बातचीत के चार दौर चले। मोदी सरकार के मंत्रियों के साथ किसानों ने अपने पक्ष रखे। सरकार ने सुधार के लिए सुझाव देने पर जोर दिया। लेकिन, किसान नेता इन तीनों कानूनों को वापस लेने पर ही अड़े रहे। ऐसे में बातचीत के सभी दौर फेल रहे और किसान अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर तंबू डालकर डटे रहे।

सुप्रीम कोर्ट ने समिति बनाने का आदेश दिया
इसी बीच, 7 जनवरी को तीनों कृषि कानून रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिकाएं दायर की गईं। कोर्ट ने विशेषज्ञों की समिति बनाई। इस समिति में किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर किसान नेता जीएस मान को भी शामिल किया गया। बाद में मान ने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि सभी सदस्य सरकार और कृषि कानूनों के समर्थक हैं।

भारत बंद और दिल्ली कूच में लाल किले पर सिख निशान फहराया
इसके बाद किसान मोर्चे ने भारत बंद का ऐलान किया, जिसका पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में छिटपुट असर दिखा। फिर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर किसान प्रदर्शनकारियों का ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया गया। ये ट्रैक्टर परेड दिल्ली बॉर्डर से लाल किले तक निकाली जानी थी। पुलिस और प्रशासन ने इजाजत नहीं दी तो बीच का रास्ता निकाला गया। इस बात पर किसानों ने सहमति जताई कि प्रदर्शनकारी किसान ट्रैक्टरों से हरियाणा और यूपी की सीमा से दिल्ली में बस घुसने की सांकेतिक घोषणा कर वापस अपने-अपने राज्यों में लौट जाएंगे। लेकिन, प्रदर्शनकारी पुलिस को चकमा देते हुए गणतंत्र दिवस सुबह दिल्ली में घुस गए और फिर दिल्ली की सड़कों पर जो तांडव हुआ, वो इतिहास ने दर्ज कर लिया। लाल किले पर सिख निशान लहराया गया। लाल किले में तोड़फोड़ और बवाल किया गया गया। आंसू गैस की गोलीबारी की। पुलिसवालों को प्रदर्शनकारियों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। एक युवक की मौत भी हुई।

विशेषज्ञों की कमेटी की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने गणतंत्र दिवस से पहले ही विशेषज्ञों की समिति बनाई थी। हालांकि, 20 मार्च को समिति ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है, लेकिन अब तक रिपोर्ट न तो सार्वजनिक हुई और न ही इस पर कोई बात आगे बढ़ी। रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए समिति के सदस्य अनिल धनवत ने चीफ जस्टिस को चिट्ठी भी लिखी थी। अभी भी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का जमावड़ा देखने को मिल रहा है।

धरने से अब तक नहीं हटे किसान
06 फरवरी 2021 को विरोध करने वाले किसानों ने दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे तक तीन घंटे के लिए देशव्यापी 'चक्का जाम' किया। इसके बाद 06 मार्च 2021 को दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन को 100 दिन पूरे हुए। जुलाई 2021 में करीब 200 किसानों ने तीन कृषि कानूनों की निंदा करते हुए संसद भवन के पास किसान संसद के समानांतर ‘मॉनसून सत्र’ शुरू किया। 7 सितंबर से 9 सितंबर, 2021 तक किसान बड़ी संख्या में करनाल पहुंचे और मिनी सचिवालय का घेराव किया। 15 सितंबर, 2021 को किसान आंदोलन के कारण बंद पड़े सिंघु बॉर्डर पर रास्ता खुलवाने के लिए सरकार ने एक प्रदेश स्तरीय समिति का गठन किया। 19 नवंबर को पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया। मगर, किसान अभी भी धरने पर डटे हैं।

ये तीन कृषि कानून...
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020

इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया था। ऐसा माना जा रहा था कि इस कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा, क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी। साल 1955 के इस कानून में संशोधन किया गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए उनके उत्पादन, सप्लाई और कीमतों को नियंत्रित रखना था। अहम बात ये है कि समय-समय पर आवश्यक वस्तुओं की सूची में कई जरूरी चीजों को जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए कोरोनाकाल में मास्क और सैनिटाइजर को आवश्यक वस्तुओं में रखा गया। 

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020
इस कानून के तहत किसान एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के बाहर भी अपने उत्पाद बेच सकते थे। इस कानून में बताया गया था कि देश में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जाएगा, जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने का आजादी होगी। प्रावधान के तहत राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने का भी जिक्र था। नए कानून के मुताबिक, किसानों या उनके खरीदारों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देना होती। 

कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020
इस कानून का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलवाना था। इसके तहत कोई किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकता था। इस समझौते में फसल की कीमत, फसल की गुणवत्ता, मात्रा और खाद आदि का इस्तेमाल आदि बातें शामिल होनी थीं। किसान को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान किया जाता और बाकी पैसा 30 दिन में देना होता। इसमें यह प्रावधान भी किया गया था कि खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी व्यापारी की होती। अगर एक पक्ष समझौते को तोड़ता तो उस पर जुर्माना लगाया जाता। माना जा रहा था कि यह कानून कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता।

इन कानूनों का विरोध क्यों हो रहा था?
किसान संगठनों का आरोप था कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा। नए बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण करती। ऐसे प्रयास अकाल, युद्ध, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा के दौरान किए जाते। नए कानून में उल्लेख था कि इन चीजों और कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर एक्शन लिया जाएगा। सरकार इसके लिए तब आदेश जारी करेगी, जब सब्जियों और फलों की कीमतें 100 फीसदी से ज्यादा हो जातीं। या फिर खराब न होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 फीसदी तक इजाफा होता। किसानों का कहना था कि इस कानून में यह साफ नहीं किया गया था कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता था कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें। तीसरा कारण यह था कि सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है, लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वे सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें। 

आज मोदी ने ये कहा...
पीएम मोदी ने आज देश को संबोधित किया और कहा कि मैं देशवासियों के क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से कहना चाहता हूं कि हमारे प्रयास में कमी रही होगी कि हम उन्हें समझा नहीं पाए। आज गुरू नानक जी का पवित्र प्रकाश पर्व है। आज मैं आपको यह बताने आया हूं, कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे। मेरी किसानों से अपील है कि अपने घर लौटें, खेतों में लौटें। हमनें फसल बीमा योजना को अधिक प्रभावी बनाया, उसके दायरे में ज्यादा किसानों को लाए। किसानों को ज्यादा मुआवजा मिल सके, इसके लिए पुराने नियम बदले। इस कारण बीते चार सालों में एक लाख करोड़ से ज्यादा का मुआवजा किसान भाईयों के मिला है। किसानों को उनकी उपज के बदले सही कदम मिले इसके लिए कदम उठाए गए। हमने एमएसपी बढ़ाई साथ ही साथ रिकॉर्ड सरकारी केंद्र भी बनाए। हमारी सरकार के द्वारा की गई खरीद ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए। हमने किसानों को कहीं पर भी अपनी उपज बेचने का प्लेटफॉर्म दिया। 

गुरु पर्व पर PM मोदी ने किसानों को दिया बड़ा तोहफाः 14 महीने बाद तीनों कृषि कानून वापस, कहा- अब किसान घर जाएं

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