पूर्व सीएम बेअंत सिंह की हत्या में दोषी बलवंत सिंह राजोआना को पैरोल मिली, पिता के भोग में शामिल हो पाएगा

पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की 31 अगस्त 1995 को सिविल सचिवालय के बाहर एक विस्फोट में हत्या कर दी गई थी। इसका आरोप बलवंत सिंह राजोआना पर लगा था। इस मामले में राजोआना को साल 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 29, 2022 5:16 AM IST

चंडीगढ़। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या मामले में दोषी और फांसी के सजायाफ्ता कैदी बलवंत सिंह राजोआना को हाइकोर्ट से पैरोल मिल गई है। कोर्ट ने उसे अपने पिता के भोग में शामिल होने की इजाजत दी है। जस्टिस अजय तिवारी और जस्टिस पंकज जैन की जॉइंट बेंच ने पुलिस को आदेश दिए हैं कि वह पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम करे और पुलिस एस्कॉर्ट में बलवंत सिंह राजोआना को 31 जनवरी को दोपहर 1 से 2 बजे के बीच अपने पिता के भोग में शामिल होने के लिए लेकर जाएं। बलवंत की बहन ने पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में दया याचिका दायर की थी और पिता की मौत के बाद आयोजित भोग में शामिल होने के लिए पैरोल की मांग की थी।

बता दें कि बलवंत सिंह राजोआना के पिता की 22 जनवरी को मृत्यु हो गई थी। वह पिछले 26 सालों से जेल में हैं और उसे 27 जुलाई, 2007 को मौत की सजा दी गई थी। याचिका में कहा गया कि पिछले 26 साल से लगातार उससे मिलने वाले उनके पिता ही एकमात्र व्यक्ति थे। ऐसे में उन्हें भोग में शामिल होने की अनुमति दी जाए। कोर्ट में आने से पहले घरवालों ने जेल अधिकारियों से पैरोल की मांगी थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। राजोआना की बहन कमलदीप कौर ने यह जानकारी दी है। 

कांस्टेबल पद पर हुआ था भर्ती, तत्कालीन सीएम की हत्या की साजिश स्वीकारी
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की 31 अगस्त 1995 को सिविल सचिवालय के बाहर एक विस्फोट में हत्या कर दी गई थी। इसका आरोप बलवंत सिंह राजोआना पर लगा था। इस मामले में राजोआना को साल 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। बलवंत सिंह राजोआना यहां राजोआना गांव का रहने वाला है। वह पुलिस में कांस्टेबल पद पर भर्ती हुआ था। आरोप है कि बेअंत सिंह हत्याकांड के लिए राजोआना ने दिलावर सिंह को सुसाइड बॉम्बर बनाया था। खुद बलवंत सिंह ने इस घटना की साजिश में शामिल होने की बात स्वीकार की थी।

राजोआना को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद विरोध
हत्याकांड में बलवंत राजोआना को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद सिख समुदाय में नाराजगी देखी गई और सजा का जमकर विरोध किया गया। तत्कालीन बादल सरकार ने फांसी की सजा रोकने की पूरी कोशिश की। राष्ट्रपति और केंद्रीय गृह मंत्रालय में दया याचिका दायर की गई। तब से अभी तक याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है।

केस की पैरवी के लिए नहीं किया था कोई वकील 
इस केस की कोर्ट में पैरवी के लिए राजोआना ने वकील तक नहीं किया था। उन्होंने साफ कहा था- हां, मैंने हत्या की साजिश की है। इस कांड को अंजाम देने के लिए मुझे किसी तरह का अफसोस नहीं है। उन्होंने अपनी सजा पर भी स्वयं कोई याचिका नहीं लगाई। राजोआना को पंजाब के सिख समुदाय में सम्मान की नजर से देखा जाता है। उनकी फांसी की सजा को रुकवाने के लिए लगातार सिख समुदाय भी काम कर रहा है। इसलिए पंजाब की राजनीति में राजोआना का मुद्दा भी काफी मायने रखता है। 

कांग्रेस भी इस मसले पर साधे रहती चुप्पी
राजोआना के पैरोल पर बाहर आने के कोर्ट के निर्णय पर कांग्रेस की भी नजर टिकी हुई है। क्योंकि राजोआना का एक भी शब्द कांग्रेस के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है। इसलिए भले ही बेअंत सिंह कांग्रेस के सीएम थे, लेकिन पंजाब के कांग्रेसी नेता भी राजोआना के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलते हैं।

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