राजस्थान के कोटा में एक 7 साल का बच्चा कैंसर की बीमारी में मात्र हड्डियों का ढांचा भर रह गया है। बेटे को कंकाल बनते देख मां हर रोज अस्पताल में उसके पास बैठ बिलख-बिलखकर रोती रहती है।
कोटा (राजस्थान). बच्चों में मां-बाप की जान बसी होती है। अगर बच्चे को खरोंच भी आ जाए तो किसी भी माता-पिता की सांसे अटक जाती हैं। पर क्या हो अगर एक बेबस और मजबूर पेरेंट्स को अपने मासूम को दिन-रात बिस्तर मौत और जिंदगी से लड़ते देखना पड़े। राजस्थान के कोटा में एक 7 साल का बच्चा कैंसर की बीमारी में मात्र हड्डियों का ढांचा भर रह गया है। बेटे को कंकाल बनते देख मां हर रोज अस्पताल में उसके पास बैठ बिलख-बिलखकर रोती रहती है।
शरीर में चिपक गईं सारी पसलियां
मामला जयपुर के मनिपाल अस्पताल का है। जहां 100 रूपये रोज की दिहाड़ी कमाने वाले ओमकार के 7 साल के बेटे अमित प्रजापति के कैंसर का इलाज चल रहा है। वह उसका इलाज करवाने को बिल्कुल असर्मथ हैं लेकिन किसी तरह पैसों का इतंजाम कर वह उसे अस्पताल में भर्ती करवा चुके हैं। पिता ओमकार का का कहना है कि, "अपने बेटे को हड्डियों का ढांचा होते, तिल-तिल मरते देखना किसे पसंद होगा। उसके शरीर से चिपके हाथों को देखो, कोई भी उसकी पसलियों तक को गिन सकता है, उसे ब्लड कैंसर है और मौत से लड़ रहा है। यहां तक कि जो दवाइयां उसे दी जा रही उनका भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा।"
बेटो को दर्द से चीखते देख बिलखकर रोने लगती हैं मां
ब्लड कैंसर में बच्चे अमित को तेज पेट और सिर दर्द होता, तेज बुखार के कारण उसका शरीर जलता है। इसका इलाज कीमोथेरेपी है लेकिन इस इलाज के लिए करीब 12 लाख रूपये की जरूरत होगी जो उसके मां-बाप कभी इंतजाम नहीं कर सकते। डॉ़क्टर का कहना है कि अमित की कीमोथेरेपी जल्दी ही शुरू करनी होगी। पिता ओमकार ने तीन महीने में कुछ पैसों ही जुटाए हैं लेकिन अभी तक 12 लाख रूपये पूरे नहीं हुए। अमित की मां सरोज बेटो को दर्द से चीखते हुए देख बिलख-बिलखकर रोने लगती हैं, जब बेटे को तेज पेट दर्द होता है और उसके मसूढ़ों से खून बहने लगता तो मां की सांसे अटक जाती हैं कि कब किस वक्त वो उसे खो सकती है।
पिता बोला-मैं 12 लाख रुपए कहां से लाउंगा
पिता ने कहा- मैं रोजाना 300-400 रुपये कमाने लायक मजदूरी करता हूं। बेटे का इलाज करवाने के लिए मजदूरी भी छूट गई है। “हर बार जब हम डॉक्टर के पास टेस्ट और दवाइयों के लिए आते हैं तो छह से सात हजार रुपये का खर्च आता है। मेरे पास जो भी पैसा था, मैंने खर्च कर दिया, मुझे नहीं पता कि अब मुझे क्या करना है। मैं सिर्फ एक मजदूर हूं ... 12 लाख रुपये मैं कहां से लाउंगा? "
कई एनजीओ से डोनेशन की हैं मांग
मां ने कहा कि, जो बेटा हमेशा बाहर खेलता रहता था, मेरे लाख डांटने के बाद घर लौटता था आज वो महीनों से बिस्तर पर पड़ा है। अब मैं चाहती हूं कि वो बाहर जाकर खेले लेकिन उसे सिर्फ दर्द से तड़पते देखती हूं। मां-बाप अपने इकलौते बच्चे को अपनी आंखों के सामने नहीं मरते देख सकते इसलिए वह दुनिया भर में लोगों से मदद मांग रहे हैं। कई एनजीओ और लोगों से उन्होंने डोनेशन की मांग की ताकि वह अपने बच्चे को बचा सके।