शीला माता मंदिरः राजस्थान के आमेर में मौजूद मां के इस मंदिर में लगता है शराब का भोग, टेढ़ा है मां का मुंह

आज से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है, देश के हर देवी मां के मंदिर में भक्तों की भीड़ लग रही है। राजस्थान के आमेर की संरक्षक मानी जाने वाली देवी शिला माता मंदिर भी दो साल बाद खोला गया है। जहां लोग अपनी मुराद पूरी करने के लिए मां को प्रसन्न करने में लगे हुए हैं।
 

Asianet News Hindi | Published : Apr 2, 2022 6:00 AM IST / Updated: Apr 02 2022, 12:33 PM IST

जयपुर (राजस्थान). आज से पूरे देश में चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है। नवरात्रि का यह त्योहार पूरे 9 दिनों का है। जहां लाखों देवी भक्त अपने घरों में कलश स्थापना करके मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की नौ दिन पूजा-व्रत और आराधना करते हैं। वहीं इसी दिन गुड़ी पड़वा भी बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं राजस्थान के आमेर की शीला माता मंदिर के बारे में जहां पर देवी मां के दर्शन के लिए सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। 

आज दो साल के बाद खोला गया शीला माता का मंदिर
दरअसल, पहाड़ों पर बने महल में रहने वाली आमेर की शीला माता का मंदिर आज दो साल के बाद भक्तों के लिए खोला गया है। अनुमान है कि दो साल के बाद इन नौ दिनों में दस लाख से भी ज्यादा भक्त मां के दर्शन करेंगे। दो साल के बाद इतने भक्त आने के बाद हाथी सवारी कराने वालों के चेहरे पर भी खुशी है। माता के दर्शनों के लिए आज सवेरे से ही भक्तों का रेला शुरु हो गया है। 

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1580 ईस्वी में लाई गई थी माता, जयपुर के महाराज लाए थे
माता के जयपुर आगमन को लेकर इतिहास कारों के अलग अलग मत हैं। उनमें से जो सबसे प्रबल है वह यह है कि 1580 ईसवी में शिला माता की प्रतिमा को आमेर जयपुर के राजा मानसिंह लेकर आए थे। माता की प्रतिमा को बंगाल से लाया गया था और उसके बाद महल में स्थापित किया गया था। एक मत यह है भी है कि राजा केदार नाम के एक राजा, आमेर के राजा मानसिंह से हार गए थे और उसके बाद उन्होनें माता की प्रतिमा और अपनी बेटी दोनो उन्हें सौंप दी थी। तब से पहले राजा फिर उनके वंशज लगातार माता के दरबार में पूजा पाठ करते आ रहे हैं। बंगाल और जयपुर के विशेष पुजारी माता को भोग लगाते हैं। 

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नरबलि देने की प्रतिज्ञा ली थी मां ने, नरबलि बंद हुई तो मुंह फेर लिया...
कहा जाता है कि जब मां को महल में स्थापित किया गया था तब मां ने राजा से यह वचन लिया था कि उन्हें हर रोज नरबलि देनी होगी। कुछ सालों तक यह जारी रहा। लेकिन उसके बाद पशु बलि देना शुरु कर दिया गया। इससे मां रुष्ठ हो गई और मां ने मुंह फेर लिया। पशु बलि भी करीब चालीस साल पहले पूरी तरह से बंद कर दी गई। कहा जाता है कि मां को खुश करने के लिए हर रोज विशेष पूजा अर्चना की जाती है लेकिन मां का मुंह अभी भी टेढा ही है। 

शराब का भोग लगता है, चरणामृत में शराब देते हैं पुजारी
मां को शराब का भोग लगाया जाता है और साथ ही जयपुर के आमेर की विशेष मिठाई गुजिया का भोग भी लगाया जाता है। मावे और चीनी से बनने वाली गुजिया को प्रसाद के रुप में दिया जाता है। साथ ही भक्तों की मांग पर शराब का भोग लगाने के बाद उसे भी चरणामृत के रुप में भक्तों को दिया जाता है। दुनिया भर से माता की एक झलक पाने के लिए भक्त जयपुर आते हैं।

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