राजस्थान के चूरू जिले के बहुचर्चित सफी खां हत्याकांड में एडीजे कोर्ट ने 36 साल बाद फैसला सुनाया है। कोर्ट ने आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी है। 1986 में फिल्म की टिकट को लेकर विवाद शुरू हुआ था। जिसमें एक की मौत हो गई थी।
चूरू. राजस्थान के चूरू जिले के बहुचर्चित सफी खां हत्याकांड में एडीजे कोर्ट ने 36 साल बाद मंगलवार को दो आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारवास की सजा सुनाई है। 1986 में हत्या सिनेमा हॉल की टिकट की बात को लेकर हुए झगड़े में की गई थी। जिसकी हाईकोर्ट में एक बार फाइल तक गुम हो गई थी। पर फाइल दोबारा तैयार करवाकर सुनवाई शुरू की गई। इसी मामले में एडीजे कोर्ट ने मुख्य आरोपी हिदायत खां और निजामुद्दीन को आजीवन कारावास का फरमान सुनाया है।
ये था मामला
9 सितंबर, 1986 को सिनेमा हॉल की टिकट को लेकर सफी खां के बेटे अयूब का कुछ लोगों से झगड़ा हो गया था। इस पर इब्राहिम, जाफर, निजामुद्दीन, हिदायत, हसन, प्रताप खां ने अयूब खां के साथ उसके पिता सफी खां व लाल खां पर लीलगरों की मस्जिद के पास हमला कर दिया। जिसमें उन्हें बुरी तरह लाठियों से पीटा गया। घटना में गंभीर घायल होने पर तीनों को राजकीय भरतिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां तीन दिन बाद सफी खां की मौत हो गई। मामले में कोतवाली थाने ने 7 नामजद आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरु की। जिसमें इब्राहिम को छोड़ बाकी 6 जनों के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया गया।
हाईकोर्ट से गुम हुई फाइल
मामला दर्ज होने के तीन साल बाद 1989 में फाइल को जोधपुर हाईकोर्ट भेजा गया। जहां पत्रावली ही गुम हो गई। 18 साल बाद 2007 में हाईकोर्ट ने नए सिरे से पत्रावली तैयार करने के आदेश जारी किए तो 2008 में फिर मामले की सुनवाई शुरू हुई। इसी बीच 2015 में एडीजे कोर्ट ने प्रताप खां और जाफर खां को आजीवन कारावास की सजा सुना दी।
सजा के बाद फरार हुए मुख्य आरोपी
प्रताप व जाफर को आजीवन कारावास की सजा सुनाते ही मुख्य आरोपी हिदायत खां और निजामुद्दीन फरार हो गए। इस पर सुनवाई फिर अटक गई। बाद में 2018 में दोनों आरोपी न्यायालय में पेश हुए तो सुनवाई फिर आगे बढ़ी। जिसमें मंगलवार को फैसला सुनाते हुए एडीजे अनिता टेलर ने 14 गवाहों के बयान और साक्ष्य के आधार पर दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी। अभियोजन की तरफ से पैरवी एपीपी अनीश और पीड़ित की पक्ष की ओर से रोशन सिंह राठौड़ व महेश प्रताप सिंह राठौड़ ने की।
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