हिंदी दिवस विशेष: गायब हो रही भाषा इसलिए मनाना पड़ रहा यह दिन,सरकारी जगहों पर अभी भी उर्दू फारसी शब्दों का चलन

पूरे देश में बुधवार के दिन हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन जानते है कुछ ऐसे शब्द जिन्हे आप सुनते है तो लगते हिंदी है लेकिन है वो उर्दू और फारसी के। पर जिनका प्रयोग सालों से सरकारी कामकाज में हो रहा है। देश में बदलाव के लिए सरकारे बोलती है लेकिन बदलाव आज तक नहीं आया। 

जयपुर. रोजनामचा, जमा तलाशी,  फौजदारी , दरियाफ्त मौजा,  हंसू हुकम , हिकमत,  अमली , मुखबिर , मजमून , फिकरा,  तहरीर।  शहादत ...... यह कुछ ऐसे शब्द हैं जो वह हर व्यक्ति जानता होगा जो अपने जीवन में कभी ना कभी पुलिस थानों और कचहरी के चक्कर में पड़ा हो।  राजस्थान समेत देशभर के पुलिस थानों में और कोर्ट कचहरी  में अभी भी यह शब्द काम में लिए जा रहे हैं। हर रोज हजारों लाखों बार काम में आने वाले यह शब्द हमारी भाषा हिंदी के नहीं है।  उर्दू और फारसी के यह शब्द अंग्रेजों के जमाने से भी पहले के हैं। अंग्रेज भी इन्हें नहीं बदल पाए और अब देश की सरकारे भी इन्हें बदलने की सफल कोशिश नहीं कर पा रही हैं। हर रोज यह शब्द काम में जरूर आते हैं लेकिन 150 साल से भी ज्यादा इन पुराने शब्दों का अर्थ समझना बहुत मुश्किल है। आज हिंदी दिवस है और इसीलिए हिंदी दिवस मनाने की जरूरत पड़ती है ताकि हिंदी को उसका सही दर्जा दिया जा सके। सरकार सरकारी काम ही पूरी तरह से हिंदी में नहीं कर पा रही है। वर्तमान में राजस्थान के सरकारी कार्यालयों समेत अन्य राज्यों के सरकारी कार्यालयों में भी हिंदी को अंग्रेजी, उर्दू एवं फारसी में मिक्स करके काम में लिया जा रहा है। 

हिंदी साहित्य प्रोफेसर ने बोली ये बड़ी बात
 हिंदी साहित्य के प्रोफेसर रहे राम प्रकाश शर्मा का कहना है कि सरकारें हर बार साल में 1 दिन ही हिंदी को याद करती हैं । जब तक हिंदी को लेकर कोई सख्त निर्णय लेने की कोशिश की जाती है तब तक हिंदी दिवस का यह दिन पूरा हो जाता है और अगले दिन से वही  ढररा शुरू हो जाता है।  राजस्थान के साथ-साथ देश के पुलिस थानों और न्यायालयों में सबसे ज्यादा समस्या हिंदी को लेकर है।  वहां अभी भी कई साल पुराने शब्द उर्दू एवं फारसी के काम में लिए जा रहे हैं। 

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कानूनी उपयोग में आने वाले  शब्द
हिंदी दिवस पर पढ़िए वे शब्द जिन को पढ़ने के लिए दो से तीन बार ध्यान देने की जरूरत होती है ,सबसे ज्यादा समस्या पुलिस थानों और न्यायालयों में काम करवाने के दौरान आती है। यह कुछ शब्द है जिन का हिंदी अनुवाद भी साथ में लिखा जा रहा है,  शायद यह पहली बार होगा कि इन शब्दों का हिंदी में अर्थ आपके सामने आएगा ।

हस्ब कायदा - नियमानुसार!   मूर्तिब- तैयार करना!  फिकरा- पैराग्राफ!  मौत बिरान -  गवाह ! अदम तमिल - नोटिस वापस लौट आना!  अहकाम - महत्वपूर्ण!  फर्द अपराध - थाने पर किसी घटना की सूचना देना ! मालमसरुका -  चोरी की संपत्ति!   मालमगरका -  डकैती से प्राप्त संपत्ति !  मसकन - वांछित अपराधी का मकान या संभावित स्थान !  मिनजानिब - देरी का कारण !  रोजनामचा -  सामान्य दैनिक डायरी ! रोजनामचा खास - अपराध दैनिक डायरी!   सहवन - भूलवश !  हस्व हुकम - मौखिक आदेश!  मातहत - अधीनस्थ!  फौत - मृत्यु!  इस्तगासा - दावा ! इमदाद-  मदद ! दफा -  धारा!  इत्तला नामा - सूचना पत्र!  कलम बंद - बयान लिखना!   जमा तलाशी  - कपड़ों की तलाशी!  खाना तलाशी - घर या निवास की तलाशी ! नक्शे अमन-  शांति भंग!  नजूल - जिस भूमि पर किसी का अधिकार नहीं ! मुल्तवी - स्थगित! 

 यह तमाम वह शब्द है जो आज के नए अधिवक्ता (वकील) भी नहीं जान पाते, लेकिन इन शब्दों से पुलिस और उस जनता को हर रोज रूबरू होना पड़ता है। जो किसी न किसी कारण से पुलिस या कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंसे होते हैं। यह तमाम शब्द मुगलों एवं फारसियों  ने अपने अपने राज पाठ के दौरान दिए थे। कई साल गुजरने के बाद भी इन्हें नहीं बदला गया है और हिंदी को हिंदी की तरह काम में नहीं लिया जा रहा है।

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