
जयपुर( jaipur). ये नौ साल का वाचस्पति और दस साल के वेदांत हैं। दोनो भाई हैं, आज इनकी बात इसलिए क्योंकि आज बाल दिवस है यानि बच्चों का दिन। इन दोनो बच्चों ने जो काम किया है वह अच्छे अच्छों की बस की बात नहीं है। संस्कृत जैसी क्लिष्ठ भाषा के हजारों श्लोक इनको जुबानी याद हैं जिनको शायद हम में से अधिकतर ने एक बार भी पढ़ा नहीं। जिन्होनें पढ़ा भी है उनको भी याद नहीं होने वाले इन श्लाकों और इन भाईयों के बारे में आज बात करते हैं...
पिता है बड़े संस्कृत विद्वान, कोरोना समय में भाषा पढ़ना शुरू की
वेदांत और वाचस्पति के पिता शास्त्री कौशलेंन्द्र दास संस्कृत के बड़े विद्वान हैं। कोरोना काल में जब दो साल स्कूल बंद रहे तो हर रोज यही परेशानी होती थी कि अब क्या करें क्या ना करें। इस पर दास ने अपने बच्चों को श्लोक पढ़ाना और फिर रटाना शुरु किया। ये श्लोक अमरकोश, स्तोत्र रत्नावली, श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीरामचरितमानस जैसे धर्म ग्रथों के हैं। धीरे धीरे जब बच्चों ने पढ़ना शुरु किया तो उनका भी समय पास होने लगा। फिर दोनो भाईयों ने एक दूसरे से आगे निकलने की चेष्टा की और उसके बाद तो जैसे श्लोक याद करना और परिवार को सुनाना जूनून सा बन गया।
अब 15 सौ से ज्यादा श्लोक है याद, पर नहीं नहीं पता अनुवाद
दोनो बच्चे जयपुर के एक नामी सीबीएसई( CBSE) स्कूल में पढ़ते हैं। दास ने बताया कि परिवार में पहले से ही धार्मिक माहौल हैं। संस्कृत रोज की भाषाा की तरह काम में ली जाती हैं। बच्चों का कहना है कि उन्हें करीब पंद्रह सौ से भी ज्यादा श्लोक कंठस्थ है। हांलाकि अधिकतर का हिंदी अनुवाद नहीं पता, उनके पिता का कहना है कि जब वे बारह साल की उम्र में आ जाएंगे तो उन्हें अनुवाद बताना शुरु करेंगें। दोनो बच्चे अपने पिता को पिताजी कहकर और मां को माताजी कहकर संबोधित करते हैं।
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