सफल होना हैं तो पढ़ें सिपाही की बेटी की कहानी: पति और सास-ससुर सबको खो दिया, 17 साल मेहनत कर बनी अफसर

राजस्थान के जयपुर से एक ऐसी कामयाबी की कहानी सामने आई है, जो हर किसी के लिए प्रेरणा देती है। यहां  रिचा शेखावत राठौड़ नाम की महिला आरजेएस अफसर बनी है। पति और सास-ससुर सबकी मौत हो गई, लेकिन महिला ने हार नहीं मानी। आखिर 17 साल बाद उसे कामयाबी मिल गई।
 

जयपुर. कहते हैं जो पहाड़ सा हौंसला रखते हैं उनके आगे छोटी मोटी परेशानी तो वैसे ही घुटने टेक देती है। शादी के बाद अक्सर विवाहताएं अपनी पहली जिम्मेदारी परिवार ही मानती हैं लेकिन जयपुर की रहने वाली रिचा शेखावत राठौड़ ने पहली जिम्मेदारी के पद पर दो जिम्मेदारियां एक साथ रखीं और दोनो ही मोर्चे पर डटीं रही। 17 साल तक लगातार जिम्मेदारी निभाती रहीं और आखिर सफलता ने भी घुटने टेक ही दिए। वे आरजेएस बनी हैं और उनकी रेंक 88वीं बनी हैं। परिवार में खुशी का माहौल है लेकिन जिसनें उन्हें संघर्ष के रास्ते पर खुशी मनाने के लिए भेजा आज वे ही उनके साथ नहीं है। जयपुर की रिचा शेखावत राठौड की जर्नी फिल्मी दुनिया सी लगती है लेकिन वे इसे असल में जी रहीं हैं। 

साल 2006 में हुई थी रिचा की शादी, ससुराल और पीहर दोनो अनुशासित पुलिस परिवार 
दरअसल बीकानेर में रहने वाली रिचा शेखावत के पिता रतन सिंह पुलिस में है। सिपाही के पद से कार्य संभालने वाले रतन सिंह इंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए। उन्होनें साल 2006 में अपनी बेटी रिचा की शादी जयपुर में रहने वाले रिटायर्ड आरपीएस पृथ्वी सिंह के बेटे नवीन सिंह राठौड से की। शादी के तीन महीने के बाद ही सास का देहावसान हो गया। नई बहू पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई। परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होनें साल 2009 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। जीवन पटरी पर पूरी तरह आता इससे पहले साल 2017 में पति साथ छोड़ गए और उसके बाद 2020 में ससुर भी दुनिया से विदा हो गए। रिचा के दो बेटे हैं। 

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सफलता के बाद युवाओं की दी कभी हार नहीं मानने की सीख 
पति की मौत के बाद उन्होनें साल 2018 में लीगल और फोरेंसिक सांइस में डिप्लोमा किया। 2021 में आरपीएससी से चयनित होकर विधी अधिकारी का पद चुना। उसके बाद भी संघर्ष नहीं छोड़ा। लगातार डटीं रहीं और आरजेएस बनने की अपनी मंजिल पा ही ली। मंगलवार को आए आरजेएस के परिणाम में उनकी 88वीं रैंक बनी है। उनका कहना है कि परिवार के जिन लोगों ने संघर्ष करने और कभी हार नहीं मानने की सीख दी, उनमें से बहुत से आज इस खुशी को शेयर करने के लिए दुनिया में ही नहीं है। शायद यही जीवन की यात्रा है।


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