राजस्थान में अक्षय तृतीया पर बाल विवाह बहुत ज्यादा होते हैं। इनको रोकने के लिए सरकार ने शिक्षकों की भी मदद ली ताकि वे स्कूल से लगातार छुट्टी में रह रहे बच्चों के घर जाकर यह पता लगा सकें का कहीं उनका भी बाल विवाह तो नहीं हो रहा है। सरकार बाल विवाह रोकने के लिए कई प्रयास कर रही है। सरकार के साथ कई ट्रस्ट व संस्थाएं भी इसी प्रयास में लगी हैं।
जोधपुर. अक्षय तृतीया में राजस्थान में होने वाले बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जाते हैं। इसी कड़ी में मारवाड़ में अक्षय तृतीया पर बाल विवाह नहीं हो इसके लिए शिक्षा विभाग ने विद्यालयों के टीचर्स तक को जिम्मेदारी दी है। टीचर्स उन बच्चों के बारे में जानकारी लगा सकें जो बच्चे इन दिनों लगातार छुट्टी पर हैं उनके घर जाकर यह सुनिश्चित करेंगे की कहीं उनका बाल विवाह तो नहीं हो रहा है। राजस्थान सहित पूरे देश में में बाल विवाह रोकने के लिए प्रयास होते रहते है। लेकिन जोधपुर में इस मुहिम को बाल विवाह रोकने से कहीं आगे है साथ ही जिनके बाल विवाह हो चुके है उन्हे निरस्त करवाने में भी आगे है और यह सब डॉ कृति भारती की कड़ी मेहनत के कारण हो पा रहा है।
मिल चुके हैं कई सम्मान
डॉ कृति भारती अब तक 43 लड़कियों को बाल विवाह से मुक्ति दिलवा चुकी हैं। इतना ही नहीं वह अब तक डेढ़ हजार से अधिक बाल विवाह रुकवा चुकी हैं। बाल विवाह रुकवाने की इस पहल के लिए उन्हें देश विदेश के कई सम्मान मिल चुके हैं। 2012 में पहला बाल विवाह कैंसल करवाने पर कृति भारती के द्वारा संचालित सारथी ट्रस्ट को लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में जगह मिली थी । 2015 में कृति भारती को बीबीसी ने अपनी सौ श्रेष्ठ प्रेरणास्पद महिलाओं की सूची में शामिल कर चुका है। पिछले महीने ही सूर्यनगरी के सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी एवं पुनर्वास मनोवैज्ञानिक डॉ.कृति भारती को बाल विवाह निरस्त कराने के साहसिक कदम के लिए केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने वीमेन हीरोज ऑफ नेशन के अवॉर्ड से सम्मानित किया है।
कहां से मिली प्रेरणा
डॉ भारती को बाल विवाह रोकने की प्रेरणा नींबू नाम की लड़की की मदद करने के बाद मिली। नींबू जोधपुर के बाप तहसील में रहती हैं। उसका विवाह बिकानेर में हुआ था। उम्र बढ़ने के साथ वह विवाह के बंधन से मुक्त होना चाहती थी। तब उसने कृति की मदद ली और जोधपुर के फैमिली कोर्ट में केस फाइल किया और वो ये केस जीत गई। नींबू ने बताया - ''बाल विवाह ने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया था। लेकिन कृति दीदी की मदद से मुझे नई जिंदगी मिली। अब मैं पढ़-लिखकर पुलिस ऑफिसर बनना चाहती हूं''। नींबू का 18 साल पहले उस वक्त बाल विवाह हुआ था जब वो महज दो साल की थी। सिर्फ नींबू ही नहीं बल्कि ऐसी कई बाल वधु आज भी राजस्थान जैसे इलाकों में जिंदगी भर परेशान रहते हुए अपना जीवन गुजार देती हैं। डॉ भारती ऐसी ही लड़कियों का बचपन बचाने की मुहिम में लगी है और अक्षय तृतीया पर होने वाले अवसर पर उनकी निगाहें टिकी है।
क्या है बाल विवाह निषेध अधिनियम
इस अधिनियम का उद्देश्य बाल विवाह और इससे जुड़े और आकस्मिक मामलों पर पूर्ण प्रतिबंध (प्रतिबन्ध) लगाना है। यह सुनिश्चित करना है कि समाज के भीतर से बाल विवाह का उन्मूलन किया जाता है, भारत सरकार ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 के कानून के स्थान पर बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 को पारित किया है। यह नया अधिनियम बाल विवाह पर रोक लगाने, पीड़ितों को राहत देने और इस तरह के विवाह को बढ़ावा देने या इसे बढ़ावा देने वालों के लिए सजा बढ़ाने के जैसे प्रावधानों को बतलाता है।
इस अधिनियम के बारे में कृति बताती है कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम में बहुत सारी खामियां हैं। इसमें नियमों की कमी है। सही मायने में यह दिखावे का कानून है। नियमानुसार बालिग होने के दो वर्ष तक बालविवाह निरस्त करवा सकते है। अगर ऐसा नही होता है उसे तलाक लेना पड़ता है। इसे उम्र की सीमा में इसे नहीं बांधना नहीं चाहिए। एक लड़की जिसका विवाह हुआ वह भी गलत होता है लेकिन इस नियम के कारण उसे तलाकशुदा कहलाते हुए अपना जीवन जीना पड़ता है। डा भारती का ट्रस्ट इस कानून में बदलाव की मांग कर रहा है सरकार के पास प्रावधान भी भेजे है। इनका कहना है नियम में कुछ बदलाव हो जिससे कि नाबालिग अपना बाल विवाह आसानी से निरस्त करवा सके।