1000 किमी पैदल चली 8 महीने की गर्भवती, कहीं कोई गाड़ी दिखती, तो हाथ देकर रोकती, लेकिन किसी ने नहीं दी लिफ्ट

लॉकडाउन ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। खासकर प्रवासी मजदूरों के लिए तो कोरोना काल जिंदगी के सबसे बड़े संकट से कम नहीं है। हजारों प्रवासी मजदूरों को पैदल अपने घर जाना पड़ रहा है। सिर पर घर-गृहस्थी का सामान और साथ में बच्चे, मजदूरों के इस सफर के साथी हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है। यह महिला 8 महीने की गर्भवती है। वो गुजरात से पैदल चलकर यूपी के लिए निकली थी।

भरतपुर, राजस्थान.  कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी लॉकडाउन ने लोगों की जिंदगी जैसे तहस-नहस कर दी है। रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। हजारों लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है। लॉकडाउन ने जैसे लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। खासकर प्रवासी मजदूरों के लिए तो कोरोना काल जिंदगी के सबसे बड़े संकट से कम नहीं है। हजारों प्रवासी मजदूरों को पैदल अपने घर जाना पड़ रहा है। यह सिलसिला अभी भी जारी है। यह महिला 8 महीने की गर्भवती है। वो गुजरात से पैदल चलकर यूपी के लिए निकली थी।


किसी ने नहीं की मदद..
यह हैं यूपी के कासगंज की रहने वाली सोनेंद्री। इनका परिवार गुजरात में मजदूर करता था। लॉकडाउन में कामकाज बंद हुआ, तो भूखों मरने की नौबत आ गई। घर लौटना मजबूरी थी, लेकिन कोई साधन भी नहीं था। लिहाजा, इनका परिवार दूसरे मजदूरों के साथ पैदल ही घर को निकल पड़ा। करीब 1000 किमी का यह सफर था। 10 दिन पैदल चलकर जब सोनेंद्री राजस्थान के भरतपुर पहुंचीं, तो वहां खड़ीं बसों को देखकर उन्हें उम्मीद जागी। बताया गया कि ये बसें यूपी के लिए खड़ी हैं। इनसे मजदूरों को यूपी ले जाया जाएगा। लेकिन उनकी यह उम्मीद भी टूट गई, जब मालूम चला कि यूपी सरकार ने बसों को मंजूरी नहीं दी। लिहाजा, सोनेंद्री फिर से पैदल ही अपने घर को निकल पड़ीं। 8 महीने की गर्भवती होने के बाद भी इतना लंबा सफर? इस सवाल वे इतना ही बोलीं,'जो भगवान का मंजूर होगा, वही होगा।'

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किसी ने लिफ्ट नहीं दी..
सोनेंद्री ने बताया कि रास्ते में इक्का-दुक्का वाहन दिखे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। हालांकि उन्होंने कहा कि यह समस्या सबके साथ थी। गाड़ियां भरी हुई थीं या लोग डरके मारे मदद नहीं कर रहे थे। 

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