मां जैसा कोई नहीं: 75 साल की उम्र में मजदूरी कर बीमार बेटे को पाल रही, पहले पति फिर बड़े बेटे की मौत

दुनिया में अगर सच्चा प्यार कोई करता है तो वह सिर्फ मां होती है, जो अपने बच्चे से बिना स्वार्थ के प्यार करती है। कुछ ऐसी ही कहानी आज राजस्थान से देखने को मिली है, जिसको पढ़कर आपकी आंखे नम हो जाएंगी। जहां एक बूढ़ी मां अपने बेटे को लिए दिन रात मजदूरी करके उसका पेट पाल रही है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 1, 2020 5:56 AM IST / Updated: Aug 01 2020, 11:27 AM IST

श्रीगंगानगर (राजस्थान). दुनिया में अगर सच्चा प्यार कोई करता है तो वह सिर्फ मां होती है, जो अपने बच्चे से बिना स्वार्थ के प्यार करती है। कुछ ऐसी ही कहानी आज राजस्थान से देखने को मिली है, जिसको पढ़कर आपकी आंखे नम हो जाएंगी। जहां एक बूढ़ी मां अपने बेटे को लिए दिन रात मजदूरी करके उसका पेट पाल रही है।

बूढ़ी मां भगवान से करती है एक ही प्रार्थना...
दरअसल, बेबसी की यह कहानी श्रीगंगानगर जिले के लालगढ़ का गांव सुंदरपुरा की है। जहां 75 साल की मनी देवी अपने 30 वर्षीय बीमार बेटे कृष्ण के साथ एक टूटे-फूटे एक कमरे के घर में रहती है। इस समय वह भगवान से एक ही विनती करती है कि है ईश्वर बरसात मत कराना, क्योंकि उसकी झोपड़ी चारों तरफ से रिसती है। जिस दिन पानी गिराता तो वह पूरा दिन कभी चारपाई इधर तो कभी उधर करती रहती है। सबसे बड़ी दुखद की बात तो यह है कि उसका बेटा बिस्तर से उठ तक नहीं पाता है, क्योंकि  कृष्ण के शरीर का आधा हिस्सा बिल्कुल काम नहीं करता है।

पति की मौत के बाद बड़ा बेटा भी दुनिया छोड़ गया
बता दें कि मानदेवी की जिंदगी में दुखों का पहाड़ ऐसा टूटा है कि जो भी इसको सुनता है उसकी आंखें नम हो जाती हैं। कुछ साल पहले उसके पति मौत हो गई। उसके बाद बड़ा बेटा इस दुनिया से चला गया, वहीं एक साल पहले उसके छोटा बेटा बीमार हो गया। उसको लकवा का अटैक आ गया, गरीबी के चलते मां उसका इलाज तक नहीं करा पाई। 

लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा करके भर रही पेट
मानदेवी की कमर झुक चुकी है, आंखों में दिखना भी बंद हो गया है। लेकिन इसके बाद भी वह अपने बेटे का पेट भरने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा करती है। जो कुछ लोगों ने दे दिया उससे ही अपना खर्च चला रही है, उसके घर में एक गैस सिलेंडर तक नहीं है। वह मिट्टी के चूल्हे पर ही जली-भुंजी रोटी बनाकर पेट भर लेती है। महिला का कहना है कि हम गरीबी रेखा के नीचे आते हैं, लेकिन सरकार की तरफ से हमको कोई मदद नहीं मिली।

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