राजस्थान में बोर्ड परीक्षा का कांग्रेसीकरण: पॉलिटिकल साइंस के पेपर में पूछे कांग्रेस महिमामंडन वाले 7 सवाल

प्रश्न पत्र सामने आने के बाद बीजेपी ने इसे बनाने वाले को निलंबित करने की मांग की है। पार्टी का कहना है कि बच्चों के साथ कांग्रेस ऐसे खिलवाड़ ना करे। बीजेपी का कहना है कि ऐसे सवालों पर तो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है न कि बच्चों की भविष्य।
 

सीकर : राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (RBSE) की परीक्षा विवादों में घिर गई है। बोर्ड की 12वीं कक्षा के राजनीतिक विज्ञान के प्रश्न पत्र में कांग्रेस से जुड़े छह प्रत्यक्ष और एक अप्रत्यक्ष सवाल पूछा गया था। सभी पार्टी का महिमामंडन करने वाले हैं। अब चूंकि प्रदेश में कांग्रेस (Congress) की ही सरकार है। लिहाजा विपक्ष ने बोर्ड परीक्षा का कांग्रेसीकरण करने का आरोप लगाते हुए सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। बोर्ड के प्रश्न पत्र के खिलाफ शिक्षक संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया है। 

प्रश्न पत्र के इन सवालों पर घिरा बोर्ड

1. कांग्रेस की सामाजिक एवं विचारधारात्मक गठबंधन के रूप में संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
2. 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल कितनी सीटें जीती थी?
3. भारत में प्रथम तीन आम चुनावों में किस दल का प्रभुत्व रहा?
4. कांग्रेस ने 1967 का आम चुनाव किन परिस्थितियों में लड़ा व इसका क्या जनादेश मिला? विवेचना कीजिए।
5. आम चुनाव 1971 कांग्रेस की पुर्न स्थापना का चुनाव साबित हुआ। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
6. गरीबी हटाओ का नारा किसने दिया था?
7.  लोकसभा चुनाव 2004 के बाद अनेक महत्वपूर्ण मसलों पर अधिकतर दलों के बीच व्यापक सहमति बनी। इनमें से किन्हीं दो की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।

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माकपा और बसपा से भी जुड़ा सवाल
इस प्रश्न पत्र में कांग्रेस के छह सवालों के अलावा कम्यूनिस्ट पार्टी और बसपा से जुड़ा सवाल भी पूछा गया है। ऐसे में बोर्ड पर प्रश्न पत्र का पूरा राजनीतिकरण करने का आरोप भी लग रहा है। विपक्ष का कहना है कि सरकार अब पढ़ाई को भी राजनीति का हिस्सा बना रही है। यह कहीं से भी उचित नहीं है। वहीं, बोर्ड पर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

शिक्षा का राजनीतिकरण करना उचित नहीं
वहीं, राजस्थान शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री शेखावत उपेन्द्र शर्मा ने भी इसको लेकर सरकार और बोर्ड पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का राजनीतिकरण करना उचित नहीं है। पहले तो राजनीतिक दल सत्त में आते ही अपने हिसाब से सिलेबस में ही बदलाव करते थे लेकिन अब तो मामला खुद के महिमामंडन तक पहुंच गया है। शिक्षा के क्षेत्र में ये परंपरा कतई उचित नहीं है।

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