
जोधपुर ( Rajsthan). देशभर में 5 अक्टूबर को दशहरा पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। जगह-जगह रावण का पुतला दहन भी किया जाएगा। लेकिन राजस्थान में एक जगह ऐसी भी है जहां इस दिन लोग शोक मनाएंगे। यहां बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के बजाए मातम छाया रहेगा। हम बात कर रहे हैं राजस्थान की जोधपुर जिले के मंडोर गांव की। जहां के लोग न तो रावण का पुतला दहन करते हैं और न ही इस दिन खुशियां मनाते हैं।
मान्यता है कि रावण का ससुराल राजस्थान के मंडोर में था। यहां के राजा की बेटी मंदोदरी से रावण का विवाह भी हुआ था। यहां के घरों में आज भी अहंकारी रावण की पूजा की जाती है। विजयादशमी को सुबह यहां हवन और यज्ञ भी होते हैं। वहीं जोधपुर में मेहरानगढ़ में रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर भी है। इसके साथ ही रावण की कुलदेवी खरानना देवी का भी मंदिर है। यहां भी दशहरे के दिन मातम मनाया जाता है।
सालों से हो रही है रावण की पूजा
रावण मंदिर के करीब 200 मीटर के दायरे में रावण दहन नहीं किया जाता है और ना ही यहां के कोई लोग रावण दहन देखने के लिए जाते हैं। इस मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी भी शाम को रावण दहन होने के बाद स्नान कर जनेऊ बदलते हैं। पुजारियों का कहना है कि भले ही रावण को बुराई का प्रतीक माना जाए। लेकिन उनके पूर्वजों ने रावण की पूजा की है। ऐसे में वह भी रावण की पूजा करते चले आएंगे।
ससुराल में हमेशा होती रहेगी रावण की पूजा
मंदिर के पुजारियों के मुताबिक रावण का जोधपुर में ससुराल था। ऐसे में यहां रावण के प्रति आज भी आज भी उतना ही मान सम्मान बना हुआ है। भले ही लोग रावण को कुछ भी मानते हो। लेकिन जोधपुर में आजीवन यही प्रथा चली आएगी।
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