देशभर कल यानि 19 अगस्त शुक्रवार के दिन जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा। इसी कड़ी में हम आपको सीकर स्थित विश्व प्रसिद्ध खाटूश्याम से जुड़ी रोचक बात बताने जा रहे है। इनमें जानिए खाटू में बसे श्याम कौन है, और इनका मंदिर क्यों स्थापित हुआ। जानिए सारा इतिहास।
सीकर. राजस्थान के सीकर जिले का विश्व प्रसिद्ध खाटूश्यामजी मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। जहां हर महीने शुक्ल पक्ष की एकादशी पर दो दिवसीय मासिक मेले के अलावा कार्तिक महीने में लघु व फाल्गुन महीने में वार्षिक मेले का आयोजन होता है। जिसमें देश- विदेश के लाखों भक्त शीश के दानी को शीश नवाने पहुंचते हैं। पर खाटू में बसे श्यामजी कौन है और खाटू में ही इनका मंदिर क्यों स्थापित हुआ, ये बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसे में जन्माष्टमी पर आज हम आपको वही रौचक कथा व इतिहास बताने जा रहे हैं।
कौन थे खाटूश्यामजी ?
यहां पहले तो ये जानना जरूरी है कि खाटू में बसे श्यामजी हैं कौन? तो आपको बतादें कि खाटूश्यामजी महाभारत काल के पांच पांडवों में एक भीम के पौत्र व घटोत्कच के पुत्र थे। जो उस काल में बर्बरीक नाम से विख्यात थे। स्कन्दपुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध में जब वीर बर्बरीक ने अपनी मां की इच्छानुसार हारने वाले पक्ष की तरफ से युद्ध में शामिल होने की बात कही तो श्रीकृष्ण ने इससे पांडवों की हार तय मान ली। ऐसे में वे ब्राह्मण का वेश धरकर बर्बरीक पास गए और दान में उनका सिर ही मांग लिया। जिसके चलते बर्बरीक युद्ध में शामिल नहीं हो पाए। बाद में श्रीकृष्ण ने उन्हें कलयुग में अपने श्याम नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था।
गाय के दूध देने से खाटू में स्थापित हुआ मंदिर
श्याम के रूप में बर्बरीक का मंदिर खाटू में ही स्थापित होने के पीछे एक इतिहास बताया जाता है। खाटूश्यामजी के इतिहास पुस्तक में लिखा है कि करीब 1720 में चरने निकली गाय ने खाटू में एक स्थान पर अपने आप दूध देना शुरू कर दिया था। जब लोगों ने ये चमत्कार देखा तो उस स्थान को विशेष जान उन्होंने उसकी खुदाई करवाई। जहां बाबा श्याम का सिर मूर्ति के रूप में निकला। जिसे एक मंदिर में स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू कर दी गई। श्रद्धालुओं की मनौतियां पूरी होने पर इस मंदिर की ख्याति धीरे- धीरे बढऩे लगी। जो अब विदेशों तक पहुंच गई।
इन नामों से जाने जाते हैं बाबा श्याम
खाटू में विराजे बाबा श्याम अन्य कई नामों से भी जाने जाते हैं। श्रीकृष्ण को शीश का दान देने पर ये शीश के दानी, तीन बाण रखने के कारण तीन बाणधारी तथा हारने वाले का साथ देने के प्रण के कारण इन्हें हारे का सहारा कहा जाता है। खाटू में प्रतिष्ठित होने के कारण ये खाटू नरेश तथा दानवीर होने के कारण लखदातार भी कहलाते हैं।
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