राजस्थान में बेरहम हुई पुलिस: शांति भंग में गिरफ्तार हुए युवक को पीटा, अब आईसीयू में इलाज जारी

मामले में सीकर पुलिस का कहना है कि हॉस्पिटल में भर्ती विजेंद्र के परिवार वालों ने शिकायत दी है। लेकिन थाने में मारपीट के सभी आरोप गलत है। वही मामले में एसपी बोल रहे हैं कि मामले की जांच डीएसपी लेवल के अधिकारी से करवाएंगे।

Pawan Tiwari | Published : Sep 18, 2022 3:38 AM IST

सीकर. राजस्थान पुलिस की बेरहमी का मामला सामने आया है। यहां शेखावाटी इलाके के लक्ष्मणगढ़ थाने में शांति भंग में गिरफ्तार एक युवक को पुलिस वालों ने इस कदर पीटा कि पहले तो वह बेहोश हो गया। जमानत होने के बाद जब युवक अपने घर आया तो भी उसकी हालत ठीक नहीं हुई। जिसके बाद उसे इलाज के लिए सीकर रेफर किया गया है। जहां प्राइवेट हॉस्पिटल के आईसीयू में युवक का इलाज जारी है। पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायत की मांग को लेकर परिजनों ने एसपी शिकायत भी दी है।

300 उठक-बैठक लगवाने के लिए कहा
घायल युवक विजेंद्र कुमार ने एसपी को शिकायत देकर बताया है कि उसके बेटे विजेंद्र और विजेंद्र के दोस्त संदीप को लक्ष्मणगढ़ पुलिस थाने के दो हेड कॉन्स्टेबल ने गाड़ी रिपेयरिंग की दुकान के बाहर से गिरफ्तार किया था। जिसके बाद दोनों को थाने पर लाकर पहले तो उनके साथ मारपीट की गई। इसके बाद दोनों को 500 उठक बैठक करने के लिए कहा गया। लेकिन 300 उठक बैठक पूरी नहीं हुई। उससे पहले ही विजेंद्र बेहोश हो गया। इसके बाद लक्ष्मणगढ़ थानाधिकारी अशोक चौधरी ने विजेंद्र के साथ मारपीट की। जिन्होंने विजेंद्र के पेट पर लात मारी। जिससे विजेंद्र बुरी तरह से घायल हो गया। अगले दिन विजेंद्र और संदीप की जमानत भी हो गई। लेकिन जब विजेंद्र घर पर लौटा तो भी उसका दर्द कम नहीं हुआ। ऐसे में जब परिजनों ने गांव में उसे डॉक्टर्स को दिखाया तो वहां से विजेंद्र को इलाज के लिए सीकर रेफर किया। जहां विजेंद्र आईसीयू में भर्ती है। 

सभी आरोप गलत हैं
मामले में सीकर पुलिस का कहना है कि हॉस्पिटल में भर्ती विजेंद्र के परिवार वालों ने शिकायत दी है। लेकिन थाने में मारपीट के सभी आरोप गलत है। वही मामले में एसपी बोल रहे हैं कि मामले की जांच डीएसपी लेवल के अधिकारी से करवाएंगे। राजस्थान में थाने में किसी आरोपी के साथ मारपीट का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं। जिन्हें लेकर पीड़ित परिवार पुलिस को शिकायत भी देते हैं। लेकिन महज 100 में से 1 या 2 मामले ही ऐसे होते हैं जिनमें पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होती है।

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