
बांसवाड़ा. राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, अजमेर जैसे बड़े जिले छोड़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांसवाड़ा जिले में जा रहे हैं। आदिवासी जिला कहा जाने वाला बांसवाड़ा मोदी के स्वागत की तैयारी में जुट गया है। बीजेपी की पूरी बिग्रेड तैयारियों में जुट गई है और सरकारी नियमानुसार भी इसे फॉलो किया जा रहा है। बांसवाड़ा का नाम बांसवाडा क्यों पड़ा और मोदी यहीं क्यों आ रहे हैं.... आपको बताते हैं इस बारे में सब कुछ।
जलियांवाला हत्याकांड से भी बड़ा था ये नरसंहार
दरअसल. राजस्थान के बांसवाड़ा में पंजाब के जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार हुआ था। बांसवाड़ा की मानगढ़ पहाड़ी जो अब मानगढ़ धाम है, वह आदिवासियों के लिए तीर्थ जैसा है। यहीं पर पंद्रह सौ से भी ज्यादा आदिवासी कुछ घंटों में मौत के घाट उतार दिए गए थे। आज से करीब 109 साल पहले यह हत्याकांड़ अंग्रेजो ने अंजाम दिया था। दरअसल 1890 में गोविंद गुरु नाम के एक आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता ने मानगढ़ धाम में कदम रखा था। वहां पर रहने वाले आदिवासी परिवारों को अच्छा जीवन दिलाना उनका उद्देश्य था। नशे से दूर रखना, पढाना लिखाना और अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने की जिद उन्होनें आदिवासियों में भरना शुरु कर दिया था। भनक अंग्रेजों तक पहुंच चुकी थी।
अंग्रेजों ने निहत्थे लोगों को भून दिया था...पहाड़ी पर बिछा दी थीं लाशें
1890 से शुरु हुआ ये आंदोलन नवम्बर 1913 तक आ पहुंचा था। उस समय अंगेजों के सामने आदिवासियों ने अपनी तीस से ज्यादा शर्तें रख दी थी। उनमें बधुआ मजदूरी की शर्त भी थी। अंगेजों ने इन शर्तों में से ज्यादातर नहीं मानी। तो अंग्रेजों के खिलाफ बड़े आंदोलन के लिए गोविंद गुरु की अगुवाई में मानगढ़ पहाड़ी पर आदिवासी जमा होने लगे। इसकी सूचना अंग्रेजों तक पहुंची तो उन्होनें साजिश रचते हुए पहाड़ी को चारों ओर से घेरते हुए निहत्थे आदिवासियों को गोलियों से भून दिया। बताया जाता है कि उस समय भी मेजर जनरल डायर ने ही इस हत्याकांड को साजिशन अंजाम दिया था। उसके बाद से इस जगह को आदिवासी तीर्थ की तरह पूजते हैं। यहीं पास ही पीएम आ रहे हैं।
इसलिए बांसवाड़ा का नाम बांसवाडा रखा गया.....जानिए कितने आदिवासी हैं यहां
बांसवाड़ा के पहले राजा बांसिया थे। आदिवासी भील राजा बांसिया के नाम पर ही इसका नाम बांसवाड़ा रखा गया था। बांसवाड़ा मे बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय रहता है। हांलाकि उनमें से अधिकतर अब जमाने के साथ बदल गए हैं और अन्य कामों में जुट गए हैं। लेकिन पहाड़ियों पर रहने वाले कुछ आदिवासी कबीले अभी भी बांसवाउ़ा शहर से कम ही ताल्लुक रखते हैं । साल 2011 की जनगणना के अनुसार बांसवाड़ा की जनसंख्या करीब बीस लाख थी। इसमें से 72 प्रतिशत ग्रामीण और 22 प्रतिशत शहरी थे। 72 प्रतिशत ग्रामीण आबादी में से करीब चालीस फीसदी से भी ज्यादा आबादी आदिवासी बेल्ट की है। बांसवाडा के घाटोलाए बागीदौरा ए गढीए कुशलगढ़ और बांसवाडा ग्रामीण में अधिकतर आबादी आदिवासी ही है।
यह भी पढ़ें-PM मोदी का 1 नवंबर से राजस्थान में चुनावी शंखनाद, जानिए बांसवाड़ा जिले को ही क्यों चुना
राजस्थान की राजनीति, बजट निर्णयों, पर्यटन, शिक्षा-रोजगार और मौसम से जुड़ी सबसे जरूरी खबरें पढ़ें। जयपुर से लेकर जोधपुर और उदयपुर तक की ज़मीनी रिपोर्ट्स और ताज़ा अपडेट्स पाने के लिए Rajasthan News in Hindi सेक्शन फॉलो करें — तेज़ और विश्वसनीय राज्य समाचार सिर्फ Asianet News Hindi पर।