इस दिन धरती पर आकर दिवाली मनाते हैं देवता, जानिए देव दीपावली का महत्व और कथा

Published : Oct 23, 2025, 02:44 PM IST
Dev Deepawali 2025

सार

देव दीपावली 2025 कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाएगी। इस दिन घाटों पर दीप जलाने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। दीप जलाने से पापों का नाश होता है।

Dev Deepawali 2025 Date: हम मनुष्य कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाते हैं, और कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि देवता कार्तिक पूर्णिमा को दिवाली मनाते हैं। इस दिन पवित्र नदियों के तट पर दीप जलाने की परंपरा है। कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली पर दीप जलाने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मोक्ष के द्वार खुलते हैं और पापों का नाश होता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।

देव दीपावली 2025

पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर को रात्रि 10:36 बजे शुरू होकर 5 नवंबर को शाम 6:48 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर 5 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा तिथि मानी जाएगी। इसी दिन कार्तिक पूर्णिमा व्रत रखा जाएगा और देव दीपावली भी मनाई जाएगी। इस वर्ष देव दीपावली पर संध्या पूजा, आरती और दीपदान का समय शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस वर्ष देव दीपावली पर भद्रासन योग और शिववास योग जैसे शुभ योग बन रहे हैं।

देव दीपावली पर दीप जलाने का महत्व

देव दीपावली के दिन दीप जलाने का विशेष महत्व माना जाता है। इस पावन अवसर पर, श्रद्धालु प्रातःकाल गंगा स्नान करते हैं और फिर भक्तिभाव से घाटों के किनारे पाँच, सात, ग्यारह या अपनी क्षमतानुसार जितने भी दीपक जला सकते हैं, जलाते हैं। मान्यता है कि इस दिन दीपदान करने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।

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क्यों मनाते हैं देव दीपावली, जानें पौराणिक कथा

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, "एक समय की बात है, सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य राक्षस त्रिपुरासुर से परेशान थे। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था और देवताओं की रक्षा की थी। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है।" मान्यता है कि इसी खुशी में देवता कार्तिक पूर्णिमा की रात काशी आए थे और दिवाली मनाई थी। इसलिए इसे देवताओं की दिवाली या देव दिवाली कहा जाता है। साथ ही, काशी के घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं।

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Disclaimer: इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

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