
Jitiya Vrat Katha: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का विशेष महत्व है, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। माताएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि और दीर्घायु के लिए इस व्रत का संकल्प लेती हैं। इस साल यह व्रत रविवार, 14 सितंबर 2025 को रखा जाएगा। माताएं 14 सितंबर को सूर्योदय से पहले उठेंगी और जल-अन्न ग्रहण करके व्रत की तैयारी करेंगी। सूर्योदय से अगले दिन तक महिलाएं निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं।
महिलाएं निर्जल जितिया व्रत रखती हैं। निर्जला व्रत में महिलाएं इस दिन शाम को जीमूतवाहन देव की पूजा करती हैं और परंपरा के अनुसार चील और सियार की कथा सुनती हैं।
कथा यह है कि एक बार चील और सियार ने निश्चय किया कि वे जितिया व्रत रखेंगी और दोनों ने निश्चित तिथि पर अपना व्रत आरम्भ किया। चील ने श्रद्धापूर्वक और नियमानुसार व्रत रखने का संकल्प लिया। उसने बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखा और शाम तक नियमानुसार व्रत रखा और पूजा-अर्चना की। उधर, सियार ने व्रत रखने का संकल्प लिया लेकिन जब वह कठिन व्रत सहन नहीं कर सकी तो उसने व्रत तोड़ दिया और भोजन कर लिया। उधर, व्रत समाप्त होने पर धर्मराज प्रकट हुए और उन्होंने पहले दोनों के आचरण का अवलोकन किया और फिर उसके अनुसार फल बताया। धर्मराज ने कहा कि नियमानुसार व्रत रखने के कारण चील को पुण्य मिलेगा। दूसरी ओर, सियार को व्रत का कोई फल नहीं मिलेगा। इस प्रकार चील के बच्चे की आयु लंबी हुई और उसका जीवन सुखी और समृद्ध रहा, जबकि सियार के बच्चे को अल्पायु में ही कष्टमय जीवन मिला।
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इस प्रकार कठिन परिस्थितियों में भी चील ने अपने व्रत का व्रत नहीं तोड़ा। उसके धैर्य के कारण उसकी संतान को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। ऐसे में इस कथा का महत्व यह है कि इस व्रत को सदैव श्रद्धापूर्वक किया जाना चाहिए। तभी व्रत का फल संतान के लिए लाभकारी होगा। ऐसे में जितिया व्रत में पूजा के दौरान चील और सियार की कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है।
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