
भगवान शिव से संबंधित अनेक व्रत-उपवास हर महीने किए जाते हैं, मासिक शिवरात्रि भी इनमें से एक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस बार ज्येष्ठ मास की मासिक शिवरात्रि का व्रत जून 2024 में किया जाएगा। आगे जानिए इसकी सही डेट, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा व अन्य बातें…
कब है ज्येष्ठ मास की मासिक शिवरात्रि?
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 04 जून, मंगलवार की रात 10 बजकर 01 मिनिट से शुरू होगी जो अगले दिन यानी 05 जून, बुधवार की शाम 07 बजकर 55 मिनिट तक रहेगी। चूंकि मासिक शिवरात्रि व्रत में पूजा रात में की जाती है, इसलिए ये व्रत 4 जून, मंगलवार को किया जाएगा।
ज्येष्ठ मासिक शिवरात्रि के शुभ मुहूर्त (June Masik Shivratri 2024 Shubh Muhurat)
मासिक शिवरात्रि व्रत में भगवान शिव की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में की जाती है। 4 जून, मंगलवार की रात का प्रथम प्रहर शाम 6 से रात 9 बजे तक रहेगा। यानी प्रथम पूजा इस प्रहर में करें। दूसरे प्रहर की पूजा रात 9 से 12 बजे के बीच करें। तीसरे प्रहर की पूजा रात 12 से 3 बजे के बीच करें। चौथे और अंतिम प्रहर की पूजा तड़के 3 बजे से सुबह 6 बजे के बीच करें।
मासिक शिवरात्रि व्रत-पूजा की विधि (Masik Shivratri Vrat-Puja Vidhi)
- 4 जून, मंगलवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और हाथ में जल-चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। एक समय फलाहार कर सकते हैं। रात को शुभ मुहूर्त से पहले पूजा की तैयारी कर लें।
- रात के पहले पहर में यानी शाम 6 से 9 बजे के बीच शिवलिंग स्थापित कर पूजा शुरू करें। सबसे पहले फूल आदि चढ़ाएं।
- कुमकुम से तिलक करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शिवलिंग का पंचामृत और फिर शुद्ध जल से अभिषेक करें।
- इसके बाद अबीर, गुलाल, रोली, बिल्व पत्र, धतूरा आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। इसी प्रकार तीन प्रहरों में भी पूजा करें।
- चौथे प्रहर की पूजा के बाद शिवजी की आरती कर भोग लगाएं। इस प्रकार व्रत-पूजा करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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