Bhai Dooj Ki Katha: यमराज और यमुना से जुड़ी है भाई दूज की कथा, जानें क्यों मनाया जाता है ये पर्व?

Bhai Dooj 2023: हर साल कार्तिक मास में भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। ये पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का उदाहरण है। इस पर्व से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। भाई दूज के दिन ये कथा जरूर सुननी चाहिए।

 

Manish Meharele | Published : Nov 14, 2023 12:32 PM IST

Bhai Dooj 2023 Kab Hai: धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 15 नवंबर, बुधवार को है। इस दिन बहनें अपने भाई को भोजन के लिए आमंत्रित करती हैं और तिलक लगाकर उसकी सुख-समृद्धि की कामना करती है। इस पर्व से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। भाई दूज पर ये कथा जरूर सुननी चाहिए। आगे जानिए भाई दूज की ये कथा…

ये है भाई दूज की कथा (Yamraj-Yamuna Ki Katha On Bhai Dooj)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्यदेव की पत्नी छाया से यमराज और यमुना का जन्म हुआ। यमराज ने तपस्या कर ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर लिया और यमलोक के अधिपति बन गए। वहीं यमुना नदी के रूप में धरती पर आकर रहने लगी। यमराज और यमुना भाई-बहन होकर भी मिल नहीं पाते थे।
एक बार यमुना ने अपने भाई यमराज को घर आने का निमंत्रण दिया। बहन के आमंत्रण को यमराज ने स्वीकार कर लिया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को उनके घर पहुंचें। भाई को आया देख यमुना बहुत प्रसन्न हुई। भाई को आया देख यमुना ने कईं तरह के व्यंजन बनाकर उन्हें खिलाए।
इसके बाद यमुना ने अपने भाई यमराज को तिलक लगाकर आरती भी उतारी। यमराज भी बहन का प्रेम देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने अपनी बहन से वरदान मांगने को कहा। बहन ने कहा कि ‘जो भी भाई इस तिथि पर अपनी बहन के घर भोजन करे, उसकी अकाल मृत्यु न हो।’ ऐसा वरदान दीजिए।
यमराज ने अपनी बहन को खुशी-खुशी ये वरदान दे दिया। तभी से भाई दूज मनाने की परंपरा चली आ रही है। ये पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक भी है। इस दिन जो ये कथा सुनता है, उसे शुभ फल मिलते हैं। मान्यता है कि आज भी इस तिथि पर यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने धरती पर आते हैं।

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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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