Vat Savitri Amawasya Vart 2024: हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस व्रत का महत्व अनेक ग्रंथों में मिलता है। इस व्रत को करने से घर-परिवार में सुख-शांति रहती है और सौभाग्य अखंड रहता है।
Vat Savitri Vart 2024 Kab Hai: धर्म ग्रंथों में ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि इस दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस व्रत का महिलाओं को विशेष रूप से इंतजार रहता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और संतान सुख भी मिलता है। इस व्रत का महत्व अनेक पुराणों में बताया गया है। आगे जानिए वट सावित्री व्रत की पूजा विधि, शुभ योग और मुहूर्त के बारे में…
कब करें वट सावित्री व्रत 2024? (Vat Savitri Vart 2024 Date)
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस बार ये तिथि 6 जून, गुरुवार को है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र पूरे समय रहेगा, जिससे धृति नाम का शुभ योग बनेगा। साथ ही इस समय वृषभ राशि में सूर्य और बुध की युति भी रहेगी, जिससे बुधादित्य नाम के राजयोग का निर्माण होगा। इन शुभ योगों के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
वट सावित्री व्रत 2024 शुभ मुहूर्त (Vat Savitri Vart 2024 Shubh Muhurat)
- सुबह 10:45 से दोपहर 12:25 तक
- दोपहर 12:25 से 02:05 तक
- दोपहर 02:05 से 03:46 तक
- शाम 07:06 से 08:26 तक
इस विधि से करें वट सावित्री व्रत-पूजा (Vat Savitri Vart 2024 Puja-Vrat Vidhi)
-6 जून, गुरुवार को वट सावित्री व्रत किया जाएगा। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और हाथ में जल-चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। बिना संकल्प के किए गए व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
- सबसे पहले एक टोकरी में सात तरह के अनाज रखें और इसके ऊपर ब्रह्मा-सावित्री की प्रतिमा रखकर बरगद के पेड़ के पास जाकर इनकी पूजा करें। साथ ही शिव-पार्वती, यमराज और सावित्री-सत्यवान की पूजा भी करें। नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए देवी सावित्री को अर्घ्य दें या जल चढ़ाएं-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तुते।।
- इसके बाद वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ पर भी जल चढ़ाएं और ये मंत्र बोलें-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमै:।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैस्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।
- बरगद के पेड़ पर कच्चा सूत लपेटते हुए 11 या 21 परिक्रमा करें। पूजा करने के बाद अपने परिवार की बुजुर्ग महिलाओं जैसे सास आदि का आशीर्वाद लेना न भूलें। अंत में आरती करें और सावित्री-सत्यवान की कथा भी अवश्य सुनें। बिना कथा सुने व्रत का संपूर्ण फल नहीं मिलता।
ये है सावित्री और सत्यवान की कथा (Vat Savitri Vrat ki Katha)
- पुराणों के अनुसार, किसी समय भद्र देश नाम का एक राज्य था। उसके राजा थे अश्वपति। राजा अश्वपति की पुत्री का नाम था सावित्री। राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री का विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से करवाया था।
- दुश्मनों ने राजा द्युमत्सेन का राज्य छिन लिया था, जिसके कारण वे अपने परिवार के साथ वन में रहते था। सत्यवती भी उनके साथ वन में रहने लगी। एक दिन सत्यवती को पता चला कि उसके पति सत्यवान की आयु कम है।
- जब सावित्री को पता चला कि आज उसके पति की मृत्यु होने वाली है तो वह जिद करके उसके साथ जंगल में गई। यहां आकर सत्यवान की तबियत अचानक खराब हो गई और वे सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गए।
- तभी यमराज आकर उसके प्राण निकालकर ले गए। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे यमलोक तक पहुंच गई। यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए और सावित्री की जिद के हारकर उन्हें सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े।
- इस तरह सावित्री के पतिव्रत धर्म के आगे यमराज को भी झुकना पड़ा। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत करने से महिलाओं का सौभाग्य अखंड रहता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
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