Vivah Panchami 2023: धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम और सीता का विवाह अगहन मास में हुआ था। हर साल इस महीने में श्रीराम-सीता का विवाहोत्सव विवाह पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 17 दिसंबर, रविवार को है।
Vivah Panchami 2023 Puja Vidhi: पंचांग के अनुसार, हिंदू वर्ष के नौवें महीने को अगहन कहते हैं। इस महीने में कईं व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं, विवाह पंचमी भी इनमें से एक है। विवाह पंचमी का पर्व अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि त्रेतायुग में इसी तिथि पर भगवान श्रीराम का देवी सीता से विवाह हुआ था। इस बार ये पर्व 17 दिसंबर, रविवार को है। इस दिन प्रमुख मंदिरों में भगवान श्रीराम-सीता की विशेष पूजा की जाती है। कहते हैं कि इस दिन श्रीराम-सीता की पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखी बना रहता है। आगे जानिए विवाह पंचमी का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि…
विवाह पंचमी 2023 शुभ योग (Vivah Panchami 2023 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 16 दिसंबर, शनिवार की रात 08:00 से 17 दिसंबर, रविवार की शाम 05:33 तक रहेगी। इस दिन सूर्य धनु राशि में बुध के साथ रहेगा। बुध और सूर्य के साथ होने से बुधादित्य नाम का राजयोग बनेगा। इस राजयोग में की गई पूजा शुभ फल प्रदान करती है।
इस विधि से करें श्रीराम-सीता की पूजा (Vivah Panchami 2023 Puja Vidhi)
- 17 दिसंबर, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और अपनी इच्छा के अनुसार व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- घर का कोई हिस्सा गंगाजल या गौमूत्र से पवित्र करें। यहां एक चौकी स्थापित करें, उसके ऊपर लाल कपड़े बिछाएं।
- श्रीराम-सीता की प्रतिमा स्थापित करें। फूलमाला अर्पित करें। कुंकुम से तिलक लगाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- इसके बाद अबीर, गुलाल, रोली भी चढ़एं। भगवान श्रीराम को पीले और सीता जी को लाल वस्त्र अर्पित करें।
- अंत में भगवान को भोग लगाएं और आरती करें। इस तरह पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
भगवान श्रीराम की आरती (Lord ShriRam Aarti)
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
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