
उज्जैन. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कईं व्रत किए जाते हैं, इनमें से मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri 2023) का व्रत भी एक है। ये व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इस बार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 13 सितंबर, बुधवार को है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते ये व्रत और भी खास हो गया है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
ये शुभ योग बनेंगे इस दिन (Masik Shivratri 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 12 सितंबर, मंगलवार की रात 02:21 से 14 सितंबर, गुरुवार की सुबह 04:49 तक रहेगी। यानी 13 सितंबर को दिन भर चतुर्दशी का संयोग बन रहा है। बुधवार को मघा नक्षत्र दिन भर रहेगा, जिससे चर नाम का शुभ योग बनेगा। इसके अलावा इस दिन सिद्ध और साध्य नाम के 2 अन्य शुभ योग भी बनेंगे। बुध और सूर्य के सिंह राशि में होने से बुधादित्य नाम का राजयोग भी बनेगा।
इस विधि से करें शिव चतुर्दशी की पूजा विधि (Masik Shivratri Puja Vidhi)
- 13 सितंबर, बुधवार की सुबह जल्दी उठकर, स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इस व्रत में रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा की जाती है।
- रात्रि का पहले प्रहर में शिवजी की पूजा शुरू करें। पहले शुद्ध घी का दीपक जलाएं और शिवलिंग का पंचामृत और फिर शुद्ध जल से अभिषेक करें।
- इसके बाद शिवलिंग पर अबीर, गुलाल, रोली, बिल्व पत्र, धतूरा, भांग आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। इस प्रकार अन्य प्रहर में भी शिवजी की पूजा करें।
- अंतिम प्रहर की पूजा करने के बाद शिवजी की आरती करें और अपनी इच्छा अनुसार भगवान को भोग भी लगाएं। इस विधि से शिवजी की पूजा करें।
- मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से जीवन की परेशानियां दूर हो सकती हैं। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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