
Navratri 2025 Kalash Sthapana Puja Niyam: नवरात्रि का पर्व केवल भक्ति का ही नहीं, बल्कि ऊर्जा का भी उत्सव है। शास्त्रों में कलश स्थापना और मूर्ति की दिशा का अत्यधिक महत्व माना गया है। ऐसे में अगर आप पहली बार नवरात्रि पूजा में कलश स्थापित करने जा रही है तो जानिए किस दिशा में मूर्ति और कलश को स्थापित करना शुभ होता है। देवी पुराण और स्कंद पुराण जैसे ग्रंथ पूजा के महत्व पर विस्तार से बताया गया हैं। हालाँकि ये ग्रंथ किसी विशिष्ट दिशा को एक सख्त नियम के रूप में निर्धारित नहीं करते, लेकिन परंपरा, वास्तु और देवी अनुशासन से संबंधित मंत्र स्पष्ट रूप से बताते हैं कि पूर्व और उत्तर-पूर्व दिशाएं सर्वोत्तम मानी जाती हैं।
नवरात्रि केवल भक्ति का पर्व ही नहीं, बल्कि ऊर्जा संतुलन का भी समय है। शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि कलश स्थापना और मूर्ति की दिशा सही न हो, तो साधना का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। इसका अर्थ है कि नवरात्रि की शुरुआत केवल पूजा सामग्री से नहीं, बल्कि शास्त्रों के निर्देशों से करनी चाहिए, ताकि घर और परिवार पर देवी मां की कृपा सदैव बनी रहे।
स्कंद पुराण देवी पूजा और घटस्थापना के अनुष्ठानों के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालता है। यह पूजा की शुद्धि, आह्वान मंत्रों और नियमों के बारे में विस्तार से बताता है, लेकिन किसी एक दिशा का निर्देश नहीं देता। फिर भी, पंडितों और वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तर-पूर्व दिशा को देवताओं का प्रवेश द्वार माना जाता है। यही कारण है कि इस स्थान पर कलश स्थापित करने की परंपरा चली आ रही है।
देवी पुराण के अनुसार मातृका देवताओं (सप्तमातृकाओं) की पूजा के संदर्भ में, देवी की मूर्तियों को उत्तर दिशा की ओर मुख करके रखना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि देवी पूजा में उत्तर दिशा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। इसी परंपरा के अनुसार, नवरात्रि पूजा के दौरान देवी की मूर्ति को अक्सर पूर्व या उत्तर दिशा में रखा जाता है।
ये भी पढे़ं- Bhagwan Vishwakarma Ke Bhajan: विश्वकर्मा पूजा पर गाएं ये फेमस भजन, जीवन में बनी रहेगी सुख-समृद्धि
पूर्व दिशा को ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है, जबकि उत्तर दिशा को स्थिरता और समृद्धि प्रदान करने वाली माना जाता है। उत्तर-पूर्व कोना देवताओं का प्रवेश द्वार है, जहां पॉजिटिव एनर्जी का प्रवाह सबसे अधिक होता है। इसलिए, इन दिशाओं में कलश और मूर्ति स्थापित करना पारंपरिक है। नवरात्रि में घट स्थापना का महत्व केवल परंपरा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शास्त्रों और पुराणों में भी निहित है। स्कंद पुराण में घट की पूजा विधि और महिमा का वर्णन है, जबकि देवी पुराण में उत्तर दिशा को विशेष महत्व दिया गया है। इन संकेतों के आधार पर, कलश को उत्तर-पूर्व में और मूर्ति को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित करना सर्वोत्तम माना जाता है। इससे नवरात्रि पूजा का लाभ कई गुना बढ़ जाता है और देवी दुर्गा की कृपा सहज ही प्राप्त होती है।
ये भी पढ़ें- शारदीय नवरात्रि 2025 कब से होगी शुरू, कितने दिनों की रहेगी? जानें अष्टमी-नवमी की सही डेट
Disclaimer: इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।