धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने, तब एक दिन महर्षि वेदव्यास पांडवों से मिलने आए। यहां उन्होंने पांडवों को साल भर की एकादशी तिथियों का महत्व बताया। एकादशी व्रत का महत्व सुनकर भीमसेन ने कहा कि ‘हे गुरुदेव, वैसे तो साल में सभी एकादशी पर व्रत करना चाहिए, लेकिन मेरे लिए ये संभव नहीं है, इसलिए कोई ऐसा उपाय बताईए, जिससे मुझे साल भर की एकादशी का पुण्य एक ही व्रत से मिल सके।’
तब महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ‘ हे पाण्डु पुत्र भीम, तुम साल में सिर्फ एक ज्येष्ठ मास में आने वाली निर्जला एकादशी का ही व्रत यदि कर लोगे तो तुम्हें साल भर की एकादशी का पुण्य फल प्राप्त हो जाएगा।’ये सुनकर भीमसेन काफी प्रसन्न हुए और वे ये व्रत पूरी श्रद्धा से करने लगे। भीमसेन सिर्फ निर्जला एकादशी का ही व्रत करते थे। इसलिए इसका का नाम भीमसेनी एकादशी भी है।
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